नई दिल्ली/टीम डिजिटल। दिल्ली के तीनों नगर निगमों के एकीकरण के प्रस्ताव को लेकर मंगलवार को राज्यसभा में कांग्रेस नीत विपक्ष ने सरकार पर तीखा हमला बोला और दावा किया कि वह हार के भय से चुनावों को टालने के लिए ऐसा कदम उठा रही है। वहीं सत्ता पक्ष ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार तीनों निगमों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है और ऐसे में उनका एकीकरण ही बेहतर उपाय है।दिल्ली के तीनों नगर निगमों के एकीकरण के प्रावधान वाले ‘दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2022’ पर उच्च सदन में हुई चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे चुनाव टालने का बहाना और राजनीतिक आडंबर बताया। उन्होंने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि संविधान के अनुसार नगरपालिका संबंधी फैसले लेने का अधिकार राज्यों का होता है और केंद्र सरकार इसकी अनदेखी कर रही है।
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सिंघवी ने कहा कि इस विधेयक का मकसद आम लोगों का कल्याण नहीं बल्कि येन-केन-प्रकारेण अपना नियंत्रण कायम रखना है। उन्होंने न्यायालयों के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि निकाय का कार्यकाल समाप्त होने के पहले ही चुनावों की तारीख की घोषणा की जानी चाहिए और गंभीर प्राकृतिक आपदा जैसी स्थिति में ही इसे टाला जा सकता है। सिंघवी ने कहा कि सरकार को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए और अदालतों के फैसलों पर भी गौर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह विधेयक कानून की समीक्षा में नहीं टिक पाएगा। उन्होंने कहा कि लंबे समय से तीनों निगमों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता विरोधी रूझान से बचने के लिए और राजनीतिक भय से ऐसे कदम उठा रही है।
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उन्होंने प्रस्तावित निकाय में सदस्यों की संख्या 272 के बदले 250 किए जाने के प्रावधान को लेकर भी सवाल किया और कहा कि ऐसी स्थिति में निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाएगा और फलस्वरूप चुनावों में देरी होगी। उन्होंने कहा कि आयोग द्वारा चुनावों की घोषणा से एक दिन पहले सरकार ने तीनों निगमों को एक करने की बात की। उन्होंने दावा किया कि दिल्ली नगर निगम अत्यधिक भ्रष्ट निकाय है। उन्होंने सरकार से सवाल किया कि उसने तीनों निकायों को एक करने का कदम सात साल बाद क्यों उठाया। उन्होंने कहा कि तीनों निगमों का संयुक्त घाटा 2000 करोड़ रुपये है और इस विधेयक में इसे दूर करने के बारे में कोई जिक्र नहीं किया गया है।
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सिंघवी ने कहा कि दिल्ली नगर निगम को तीनों निगमों में बांटने का फैसला आनन-फानन में नहीं किया गया था बल्कि कई समितियों की सिफारिशों पर गौर करते हुए यह कदम उठाया गया था। उन्होंने कहा कि 1989 में बालाकृष्ण समिति ने इसे तीन हिस्से में बांटने का सुझाव दिया था। इसके अलावा कई अन्य समितियों ने तो इसे चार और पांच निकायो में विभाजित करने का सुझाव दिया था। उन्होंने कहा कि यह व्यापक गलतियों से भरा विधेयक है और इसमें निगमों के सुधार के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
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चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा सदस्य सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार संसद को मिले संविधान प्रदत्त अधिकारों के तहत यह कदम उठा रही है। उन्होंने कहा कि जनवरी 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने नगर निगम के नियंत्रण को लेकर सवाल किया था और उसके जवाब में दिल्ली की आप सरकार ने कहा था कि निकाय उसके नियंत्रण में नहीं है। त्रिवेदी ने कहा कि लेकिन दिल्ली सरकार ने मंशा जतायी थी कि वह निगमों को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है। उन्होंने कहा कि हालांकि दिल्ली सरकार निगमों को संसाधनों से वंचित रखना चाहती है।
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