Saturday, Jun 03, 2023
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ब्लॉग: दक्षिण के फिल्म अभिनेता मोहन बाबू का मानना है ‘राजनीतिज्ञों में से 95 प्रतिशत तो उचक्के हैं’

  • Updated on 1/26/2018

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। वह एक अध्यापक, मानवतावादी, अभिनेता तथा निर्माता हैं और उनकी बेटी अपने काम के माध्यम से पिता की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। मिलिए मोहन बाबू और लक्ष्मी मांचू से। जहां पिता ने दशकों तक अनगिनत फिल्मों में काम किया है, वहीं बेटी ने पिता से कोई सहायता लिए बिना खुद नाम कमाया है। 

जाने-माने और अनुभवी अभिनेता ने यह खुलासा किया कि उनके पिता एक अध्यापक थे और चाहते थे कि मैं 10वीं कक्षा तक पढूं और अध्यापक की नौकरी हासिल कर लूं। ‘‘लेकिन साथ ही वह यह भी चाहते थे कि मैं खेतों में भी काम करूं। बाद में उच्च शिक्षा के लिए मैं चेन्नई चला गया।

इसी बीच मैंने सिनेमा में काम हासिल करने के प्रयास शुरू कर दिए। हर रोज मैं किसी न किसी फिल्म के सैट पर किसी न किसी निर्देशक को मिलने पहुंच जाता लेकिन अधिकतर मौकों पर मुझे वहां से खदेड़ दिया जाता था लेकिन 1975 में मेरा जीवन बदल गया। शादी के बाद मुझे पहली फिल्म मिली और पहली ही फिल्म ने कामयाबी के रिकार्ड तोड़ दिए।

उसके बाद मैंने खलनायक, कामेडियन और हीरो तीनों तरह की भूमिकाएं अदा कीं। मैं हर रोज तीन शिफ्टों में काम करता था क्योंकि मुझे यह निश्चय नहीं था कि मैं कितनी देर तक फिल्म उद्योग में टिक पाऊंगा।’’उनकी बेटी लक्ष्मी को भी अपनी जगह संघर्ष करना पड़ा। लक्ष्मी बताती हैं : ‘‘मेरे संघर्ष का शुरूआती बिंदू ही यह था कि मैं एक एक्टर बाप की बेटी थी।

यदि किसी एक्ट्रैस की बेटी होती और अभिनेत्री बनना चाहती तो यह काम बहुत आसान होता। फिलहाल श्रुति हासन को छोड़कर किसी भी एक्टर की कोई बेटी फिल्मी दुनिया में जम नहीं पाई है इसलिए मैंने अमरीका का रास्ता पकड़ा क्योंकि भारत में एक हीरो के फैन केवल पारिवारिक सदस्य होने के नाते अभिनेता की बेटी को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे।

लक्ष्मी कहती हैं कि अभिनेत्री बनना उनका सपना था। ‘‘फिर भी मैं चाहती थी कि मेरे पास विकल्प की गुंजाइश हो।  मैं यह देखना चाहती थी कि क्या एक प्रसिद्ध एक्टर की बेटी होने के कारण मैं लोगों की निगाहों का केन्द्र बनती हूं या अपनी कला प्रतिभा के कारण। अमरीका ने मुझे यह सिखाया कि वास्तव में मैं क्या हूं। यानी मांचू लेबल के बिना मैं क्या हूं।’’

मोहन बाबू के बारे में बतियाते हुए उन्होंने कहा : ‘‘पिता जी बहुत परम्परागत तथा कंजर्वेेटिव विचारों के व्यक्ति हैं और इसी कारण काफी समय तक मैंने उन्हें यह बताया ही नहीं था कि अपनी अंडरग्रैजुएशन करने के बाद से ही मैं अमरीका में एक्टिंग कर रही हूं। मुझे लगातार यह डर सताता रहता था कि यदि उन्हें पता चल गया तो क्या कहेंगे। इतना तो मैं जानती थी कि यदि उन्होंने न कह दी तो मैं उनके विरुद्ध नहीं जा पाऊंगी। मेरी मॉम ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया।’’

लक्ष्मी ने आगे बताया : ‘‘दो दिन पूर्व मैं अपने पिता जी से हंसी-मजाक कर रही थी तो मैंने कहा यदि मैं उनकी बेटी की बजाय उनका बेटा होती तो वह मुझे अपने दूसरे बेटों की तरह ही फिल्मों में लांच करते और अन्य निर्देशक मुझे अपनी-अपनी फिल्म में लेने के लिए आपस में लड़ रहे होते।’’

लक्ष्मी ने बताया कि उनके पिता जी कभी भी  ‘किंग’ बनने में दिलचस्पी नहीं लेते बल्कि वह तो हमेशा से ‘किंग मेकर’ ही रहे। वह राजनीति में अधिक प्रवीण नहीं हैं। इसके उत्तर में मोहन बाबू ने कहा : ‘‘राजनीतिज्ञों में से 95 प्रतिशत तो उचक्के हैं। वे लोगों से झूठ बोलते रहते हैं...मैं ऐेसे लोगों के साथ काम नहीं करता बल्कि वे मेरे साथ काम करते हैं।’’ 

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