नई दिल्ली/टीम डिजिटल। ‘‘उमराव जान’’ और ‘‘कभी कभी’’ जैसी फिल्मों में संगीत देने वाले प्रख्यात संगीतकार खय्याम को पूरे राजकीय सम्मान के साथ मंगलवार को सुपुर्दे खाक किया गया। संगीतकार का लंबी बीमारी के बाद सोमवार को यहां के एक अस्पताल में निधन हो गया था। वह 92 वर्ष के थे।
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नके पार्थिव शरीर को जुहू के उनके आवास पर प्रशंसकों और दोस्तों के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। उनके पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटकर तीन किलोमीटर दूर ‘फोर बंगलोज’ कब्रिस्तान में ले जाया गया। कब्रिस्तान पर दिवंगत संगीतकार को उनके परिजन और फिल्म जगत के लोगों की मौजूदगी में मुंबई पुलिस के र्किमयों ने तीन बंदूकों की सलामी दी।
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उन्हें अंतिम विदाई देने में शामिल लोगों में लेखक गुलजार और जावेद अख्तर, फिल्मकार विशाल भारद्वाज, गायक सोनू निगम, उदित नारायण और अलका याज्ञनिक, संगीतकार जतिन- ललित, गजल गायक तलत अजीज और अभिनेत्री पूनम ढिल्लों शामिल थीं। अख्तर ने कहा कि खय्याम के निधन के साथ ही एक युग का अंत हो गया।
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संगीतकार के बारे में बात करते हुए ढिल्लों की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने कहा कि वह उन्हें बेटी की तरह मानते थे। उन्होंने कहा, ‘‘उन्होंने मेरी पहली फिल्म ‘त्रिशूल’ और फिर ‘नूरी’ में संगीत दिया। 15 वर्ष की उम्र में मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई। वह मुझे बच्ची की तरह मानते थे। जब भी वह मिलते थे तो मुझे आशीर्वाद देते थे। दुनिया उनके संगीत की चर्चा करेगी... अपने काम से उन्होंने खुद को अमर कर लिया।’’
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खय्याम का असली नाम मोहम्मद जहूर हाशमी था जिन्हें कुछ दिनों पहले जुहू के सुजय अस्पताल में सांस की दिक्कतों और उम्र संबंधी बीमारी के चलते भर्ती कराया गया था। भले ही उन्होंने ‘‘उमराव जान’’ से बुलंदियां हासिल की हों लेकिन खय्याम को ‘‘बाजार’’, ‘‘त्रिशूल’’, ‘‘नूरी’’ और ‘‘शोला और शबनम’’ के लिए याद किया जाएगा। उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण से भी नवाजा गया था।
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बता दें कि खय्याम का संगीतमय सफर लुधियाना में 1943 में से शुरू हुआ, उस समय वे 17 साल के ही थे। 1953 में फिल्म फुटपाथ से उन्होंने बॉलीवुड सफर की शुरुआत की। 1961 में रिलीज हुई फिल्म 'शोला और शबनम' के म्यूजिक में हिट हो गए। इसके बाद तो उन्होंने 'आखिरी खत', 'कभी-कभी', 'त्रिशूल', 'नूरी', 'बाजार', 'उमराव जान' और 'यात्रा' जैसी फिल्मों में संगीत दिया।
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खय्याम को उनके बेहतरीन योगदान के लिए बहुत अवॉर्ड मिले। 2007 में उन्हें संगीत नाटक एकेडमी अवॉर्ड नवाजा गया, जबकि 2011 में वे पद्म भूषण से भी सम्मानित हुए। फिल्म 'कभी-कभी' और 'उमराव जान' के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड भी उन्हें मिला। उमराव जान के लिए तो उन्होंने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल किया।
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