Thursday, Jun 01, 2023
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बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्देश, मर्जी से काम पर न आने वालों की सैलरी काट सकती हैं कंपनियां

  • Updated on 5/2/2020

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। देश में कोरोना वायरस के कारण चल रहे लॉक डाउन (Lockdown) में लगभग सभी कंपनियां अपने कर्मचारियों से घर से ही काम करवा रही है ऐसे में बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) कि औरंगाबाद पीठ ने एक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि एंपलॉयर्स कानून के अनुसार उन कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर सकते हैं जो अपनी मर्जी से काम पर नहीं आते। जिन क्षेत्रों में कोरोना वायरस के चलते लागू प्रतिबंधों में छूट दी गई है।

जस्टिस रविंद्र वी. घुगे ने 5 मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। इस याचिका में 29 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि एंप्लॉयड लॉक डाउन की स्थिति को देखते हुए अपने कर्मचारियों को सैलरी दें, जिसमें प्रवासी, कॉन्ट्रैक्ट बेसिस मजदूर, मासिक वेतन वाले लोग शामिल है।

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वेतन न देने की छूट की मांग
कंपनियों के वकील पीके प्रभाकरण का कहना है कि लॉक डाउन के कारण मैन्युफैक्चरिंग काम बंद है और कई श्रमिक काम पर आने को इच्छुक थे ऐसे में कंपनियां अपने कामगारों को तुरंत वेतन न देने की छूट मांग रही थी। मैन्यूफैक्चर ने कहा कि वे न्यूनतम मजदूरी कानून के अनुसार सकल मजदूरी या मजदूरी की न्यूनतम दरों का 50 प्रतिशत,जो भी अधिक हो उसका भुगतान करेंगे।

वहीं केंद्र की ओर से पेश वकील डीजी नागौर और वकील डीआर काले ने राज्य का पक्ष रखते हुए कहा के अधिकारियों से निर्देश देने के लिए समय मांगा। इसके अलावा जस्टिस घुगे ने इस तरह से एक और मामले को सुप्रीम कोर्ट में लंबित बताया है और एमएचए के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।

सुनवाई कर रहे हैं पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल को दलिलों में कोई भी राहत ना देते हुए सुनवाई स्थगित कर दी थी। वहीं केरल हाईकोर्ट ने राज्य के वित्त मंत्रालय द्वारा जारी एक आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें राज्य कर्मचारियों को 50% भुगतान की अनुमति दी गई थी।

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मामले में अगली सुनवाई 18 मई को होगी
जस्टिस ने कहा कि वे एमएचए के आदेश को रोकने के लिए इच्छुक नहीं है और यदि याचिकाकर्ताओं से अपेक्षा करते हैं कि कर्मचारियों को सकल मासिक वेतन का भुगतान किया जाए। इसके साथ उन लोगों के मामले में जिन्हें काम पर आने की जरूरत नहीं है, उन्हें भत्ते छोड़कर महीने दर महीने के आधार पर सभी भुगतान किया जाए।

हालांकि अदालत ने इसके साथ यह भी कहा कि इस तरह की घटना में अगर कर्मचारी स्वेच्छा से अनुपस्थित रहते हैं तो प्रबंधन इस तरह की कार्रवाई शुरू करते समय उनकी अनुपस्थिति के चलते वेतन में कटौती के लिए स्वतंत्र होगा। यह उन क्षेत्रों में भी लागू होगा जहां लॉक डाउन नहीं हुआ होगा।

इसके साथ ही अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र के कुछ औद्योगिक क्षेत्रों में लॉक डाउन को हटा दिया गया है, ऐसे में श्रमिकों के काम पर लौटने की उम्मीद की जा रही है। अदालत ने ट्रेड यूनियनों और मजदूरों के प्रतिनिधियों को याचिका में हस्तक्षेप आधे आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता दी। इस मामले की अगली सुनवाई 18 मई को होगी।

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