नई दिल्ली/टीम डिजिटल। शुक्रवार की सुबह सबकुछ सामान्य था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के चार सिटिंग जजों ने प्रेस कॉफ्रेंस कर हड़कंप मचा दिया। इस दौरान पूर्व जजों से लेकर वर्तमान के जजों ने बयानबाजी की।जजों की बयानबाजी में जितनी तीव्रता और जल्दी थी ठीक उसी के उलट देश में न्याय व्यवस्था में सुस्ती है।त्वरित न्याय दिलाने के बजाए देश की सभी अदालतों ने आंखें मुंदकर कछुए की गति से सुनवाई कर रही है।
राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के आकड़ें तो यही बयां कर रहे हैं कि न्याय की देवी या तो लापारवाह हो गई है या फिर आलस की अंगड़ाई में मस्त हैं..
सुप्रीम कोर्ट में लगभग 30 प्रतिशत केस पांच साले से ज्यादा वक्त से लटके हैं।सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जो आकड़े दिए हुए हैं उनके अनुसार उच्चतम न्यायालय में 18 दिसंबर 2017 तक 54719 केस लंबे अर्से से लटके हुए हैं। 1550 मामलों को 10 से अधिक समय से निपटने का इंतजार है। हाल ही में जस्टिस दीपक मिश्रा ने सभी 24 बेंच के जजों को आपराधिक मामलों को जल्द निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई के निर्देश दिए थे।
सुप्रीम कोर्ट के जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद शेयर मार्केट गिरा धड़ाम
इन बयानों और घटनाक्रमों के बीच सबसे ज्यादा चुभने वाली बात यह है कि देश की सभी अदालतों में औसतन 1.65 लाख मामले लंबित हैं।
राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के आकड़ों के अनुसार 34.27 लाख मामले देश की सभी उच्च अदालतों में लटके पड़े हैं जिनमें उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर की अदालत को शुमार नहीं किया गया है।उत्तर प्रदेश सरकार के कानून विभाग की साइट पर 3.2 लाख मामले लंबित बताए गए हैं। अब ऐसे में आप खुद सोचिए बहस और प्रेंस कॉफ्रेंस के बीच न्याय की दशा में देरी का कारण क्या है...
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