नई दिल्ली / टीम डिजिटल। केंद्र सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि देश भर में न्यायाधीशों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) जैसा राष्ट्रीय स्तर का सुरक्षा बल बनाना ‘‘व्यवहार्य’’ और उपयुक्त नहीं होगा। झारखंड के धनबाद में एक न्यायाधीश की कथित हत्या के मद्देनजर देश भर में न्यायाधीशों और वकीलों की सुरक्षा से जुड़े स्वत:संज्ञान वाले एक मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने इस बात से नाराजगी जताई कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और झारखंड जैसे राज्यों ने अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।
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प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, जस्टिस सूर्यकांत तथा जस्टिस अनिरूद्ध बोस की पीठ ने राज्यों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए एक हफ्ते का वक्त दिया, जिसमें उन्हें न्यायाधीशों की सुरक्षा के लिए उठाये गये कदमों का ब्योरा देना होगा। साथ ही, न्यायालय ने कहा कि यदि वे जवाब दाखिल नहीं करते हैं तो मुख्य सचिवों को तलब करने के अलावा उन पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। पीठ ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को इस विषय में एक पक्षकार बनाने और अपना जवाब दाखिल करने की भी अनुमति दे दी।
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सुनवाई शुरू होने पर केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्याधीशों की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा एक गंभीर विषय है। मुद्दे को प्रशासनिक बताते हुए पीठ ने सवाल किया कि क्या केंद्र देश में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों की सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ या रेलवे सुरक्षा बल जैसा कोई बल गठित करने को इच्छुक है। मेहता ने कहा, ‘‘हमारा कहना है कि न्यायाधीशों के लिए सीआईएसएफ जैसा राष्ट्रीय स्तर का एक सुरक्षा बल रखना उपयुक्त या व्यवहार्य नहीं होगा।’’
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पीठ ने उनसे सभी राज्यों की एक बैठक बुलाने और समस्या का हल करने के लिए फैसला करने को कहा। मेहता ने कहा कि इस मुद्दे पर गृह सचिवों या राज्य पुलिस महानिदेशकों की बैठक बुलाई जा सकती है। पीठ ने कहा, ‘‘राज्य अब कह रहे है कि उनके पास सीसीटीवी के लिए पैसे नहीं हैं। इन मुद्दों को आपको और राज्यों को आपस में मिलकर हल करना होगा। हम बहाने सुनना नहीं चाहते। ’’
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उल्लेखनीय है कि सीसीटीवी फुटेज के अनुसार धनबाद के जिला और सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद 28 जुलाई की सुबह वहां सड़क पर टहल रहे थे, तभी एक ऑटो रिक्शा उनकी तरफ आया और उन्हें टक्कर मारकर वहां से फरार हो गया। स्थानीय लोग न्यायाधीश को तुरंत अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 31 जुलाई को मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला किया था।
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