Tuesday, May 30, 2023
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मुख्य चुनाव आयुक्त बोले- एक साथ नहीं हो सकते लोकसभा, विधानसभा चुनाव

  • Updated on 8/23/2018

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ओ पी रावत ने आज उन सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए साफ कहा कि निकट भविष्य में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ नहीं हो सकते हैं। इसकी कोई संभावना नहीं है। रावत ने कहा कि दोनों चुनाव एक साथ कराने के लिए कानूनी ढांचा स्थापित किए जाने की आवश्यकता है। 

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हाल में ऐसी अटकलें थीं कि इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में निर्धारित विधानसभा चुनावों को टाला जा सकता है और उन्हें अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनावों के साथ कराया जा सकता है। मिजोरम विधानसभा का कार्यकाल 15 दिसंबर को खत्म हो रहा है, जबकि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभाओं का कार्यकाल क्रमश: 5 जनवरी, 7 जनवरी और 20 जनवरी, 2019 को पूरा होगा।

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रावत ने औरंगाबाद में मीडिया से कहा, 'कोई संभावना नहीं।' उनसे सवाल किया गया था कि क्या लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना संभव है। उनकी टिप्पणी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के उस हालिया बयान की पृष्ठभूमि में है, जिसमें उन्होंने दोनों चुनाव एक साथ कराने के लिए सभी पक्षों के बीच स्वस्थ और खुली बहस का आह्वान किया था।

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चुनाव आयुक्त ने कहा कि सांसदों को कानून बनाने के लिए कम से कम एक साल लगेंगे। इस प्रक्रिया में वक्त लगता है। जैसे ही संविधान में संशोधन के लिए विधेयक तैयार होगा, हम समझ जाएंगे कि चीजें अब आगे बढ़ रही हैं। रावत ने कहा कि चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव की तैयारी वोटिंग की निर्धारित समयसीमा से 14 महीने पहले शुरू कर देता है।

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उन्होंने कहा कि आयोग के पास सिर्फ 400 कर्मचारी हैं, लेकिन 1.11 करोड़ लोगों को चुनाव ड्यूटी पर तैनात करता है। ईवीएम मशीनों की नाकामी की शिकायतों से जुड़े एक सवाल पर रावत ने अफसोस जताया कि भारत के कई हिस्सों में ईवीएम प्रणाली के बारे में व्यापक समझ नहीं है। उन्होंने कहा कि नाकामी की दर 0.5 से 0.6 फीसदी है और मशीनों की विफलता की ऐसी दर स्वीकार्य है।

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उन्होंने कहा कि मेघालय विधानसभा उपचुनाव में आज वीवीपीएटी के खराब होने की शिकायतें आईं, लेकिन उनसे बचा जा सकता था,अगर अधिकारियों ने उच्च नमी कागज का इस्तेमाल किया होता। यह ध्यान रखना था कि राज्य में काफी बारिश होती है। रावत ने कहा, 'क्या आप जानते हैं कि चेरापूंजी में सबसे ज्यादा बारिश होती है, उसी राज्य में है।' एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि चुनावों में नोटा विकल्प का फीसद आमतौर पर 1.2 से 1.4 के बीच होता है।   

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एक अन्य सवाल के उत्तर में उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को पूर्ण स्वायत्तता हासिल है और यह देखा जा सकता है कि पिछले साल गुजरात में राज्यसभा चुनाव के दौरान चुनाव अधिकारी राजनीतिक दबाव में नहीं झुके।

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