नई दिल्ली, (नवोदय टाइम्स)। कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ बीते 46 दिनों से चल रहा किसान आंदोलन क्या कांग्रेस के लिए संजीवनी बन सकता है? यह सवाल इसलिए क्योंकि कांग्रेस किसानों के समर्थन में अब खुल कर सामने आ खड़ी हुई है। कृषि सुधार कानूनों की मुखालफत तो वह पहले दिन से कर रही है, अब उसे लग रहा है कि किसान उसकी खोई सियासी जमीन वापस दिलाने में बड़ा मददगार बन सकते हैं। किसानों के समर्थन में कई कार्यक्रमों की घोषणा को कांग्रेस की इसी लालसा का हिस्सा कहा जा रहा है।
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सत्ता से बाहर होने के बाद से ही कांग्रेस गरीब, मजदूर-किसान की बात कर रही है। यह अलग बात है कि सत्ता में रहते कांग्रेस ने तो स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों का लागू किया है और न ही कभी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की गारंटी का कोई प्रावधान किया। लेकिन अब वह इन्हीं मुद्दों पर जोर दे रही है। पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी आए दिन किसान आंदोलन के पक्ष में सरकार की खिंचाई कर रहे हैं।
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कांग्रेस ने दो दिन पहले किसानों के समर्थन में सोशल मीडिया अभियान भी चलाया। अब 15 जनवरी को राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन और राजभवन मार्च की घोषणा की है। यह कार्यक्रम पार्टी की सभी प्रदेश इकाइयों को दिया गया है। इस दिन पार्टी कार्यकर्ता और नेता प्रदेश मुख्यालयों पर रैली, प्रदर्शन का आयोजन करेंगे और उसके बाद राजभवन मार्च कर तीनों कृषि सुधार कानूनों को वापस करने की मांग संबंधी ज्ञापन सौंपेंगे।
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वहीं युवक कांग्रेस को एक मुट्ठी मिट्टी शहीदों के नाम कार्यक्रम दिया गया है, जो पूरे देश में गांव-गांव जाकर युवा कांग्रेस कार्यकर्ता किसानों के खेत से एक मुट्ठी मिट्टी जुटाने का काम करेंगे और तीनों कृषि कानूनों की कमियां-खामियां बताने के साथ इससे होने वाले संभावित दुष्प्रभावों की जानकारी देंगे। एक तरह से यह कृषक जागरूकता अभियान है, जो पार्टी की युवा इकाई किसानों के बीच चलाएगी।
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कांग्रेस के ये कार्यक्रम कितने प्रभावी होंगे, इसका आंकलन आने वाले दिनों में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम से पता चलेगा। इसी साल अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव है। इसी के साथ असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में भी चुनाव होने हैं। लेकिन इन सबसे पहले उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव प्रस्तावित है। किसान आंदोलन में फिलवक्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान ही हिस्सा ले रहे हैं। पूर्वी यूपी के किसान इस आंदोलन से अब तक अलग-थलग दिख रहे हैं। ऐसे हालात में किसान आंदोलन के समर्थन का कांग्रेस को कितना फायदा मिल रहा है, इसका परीक्षण जमीनी स्तर पर पंचायत चुनावों से ही हो सकेगा।
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इसके बाद जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां कांग्रेस की रणनीति का परीक्षण होगा। पुडुचेरी में कांग्रेस की ही सरकार है। जबकि असम में भाजपा, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, केरल में वामदल और तमिलनाडु में एआईएडीएमके की सरकार है। कांग्रेस के सामने अब इन चुनावों में अपना प्रदर्शन बेहतर करने की चुनौती है। पश्चिम बंगाल हो या तमिलनाडु, लंबे समय से इन राज्यों में कांग्रेस लगभग खत्म सी है। केरल में भी उसे सहारे की जरूरत होती है और असम में पार्टी तितर-बितर है। पुडुचेरी में सत्ता विरोधी लहर को अगर पार्टी संभालने सफल रहती है, तो भी मान लिया जाएगा कि किसानों का समर्थन उसके लिए कारगर रहा।
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