नई दिल्ली/ कामिनी बिष्ट। ठंड में कंपकंपाती दिल्ली (Delhi) और झुलसती इमारतों में दम तोड़ती सांसों के चलते राजधानी में नेताओं की संवेदनशीलता बढ़ती जा रही है। राष्ट्रीय राजधानी में आग लगने की घटनाएं आम हो चली हैं। आए दिन दिल्ली में किसी घर में तो कभी किसी फैक्ट्री में आग (Fire) लगने की खबरें आती रहती हैं। आगजनी में हुई मौतों पर राजधानी के संवेदनशील नेता अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाते हुए शोक व्यक्त करते हैं। मुआवजा देने का भी ऐलान करते हैं। सत्तासीन पार्टी चाहे दिल्ली सरकार हो या नगर निगम दोनों के द्वारा बड़ी- बड़ी जांचों का ऐलान किया जाता है।
दिसंबर माह में ही दिल्ली ने अनाज मंडी (Anaj Mandi) में हुए बहुत बड़े अग्निकांड का सामना किया है। जिसमें मरने वालों का आंकड़ा 45 तक पहुंच चुका है। जो लोग घायल हैं उनकी शारीरिक क्षति का कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। डॉक्टरों का कहना है कि घायलों को इस हादसे का दंश आजीवन झेलना पड़ सकता है। इस हादसे पर दिल्ली सरकार, दिल्ली बीजेपी, बिहार सरकार और प्रधानमंत्री मोदी ने मुआवजे का ऐलान किया। इस मुद्दे पर ‘बेशर्मी’ से राजनीति भी हुई और जांच अब भी चल रही है। कई अवैध बिल्डिंगों को सील भी किया गया।
45 मौतों के कुछ दिन बाद 9 और मौतें 45 परिवारों के आंसू रुके भी नहीं थे, अनाज मंडी में झुलसने वाले दर्द से कराह ही रहे थे कि फिर दिल्ली के किराड़ी इलाके में एक इमारत में आग लगने से 9 लोगों को जान गंवानी पड़ी और 3 लोग बुरी तरह झुलस गए। इसमें भी हुकमरानों का वही हाल रहा, जैसा कि पहले हुए हादसों पर। एमसीडी ने अनाजमंडी हादसे की तर्ज पर जांच के आदेश दे दिए। सीएम केजरीवाल ने मुआवजा और घायलों के लिए फ्री इलाज।
10 माह पहले घर बसाने वाले फायर कर्मी की गई जान, मिला मुआवजा इसके बाद नए साल के जश्न का खुमार लोगों के सिर से उतरा भी नहीं था कि पीरागढ़ी में भीषण आग लग गई और एक फायरकर्मी जिसकी 10 माह पहले ही शादी हुई थी उसको अपनी जान गंवानी पड़ी। इसमें कुल 14 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। सीएम केजरीवाल ने तुरंत मृतक के परिवार के लिए एक करोड़ के मुआवजे का एलान किया। इससे ज्यादा नेता कर भी क्या सकते हैं?
दिल्ली में चुनाव भी है तो... अब इसके साथ ही दिल्ली में चुनाव भी है तो राजनीतिक पार्टियों की संवेदनशीलता ज्यादा बढ़ जाती है। मौके पर पहले कौन से नेता पहुंचे, किसने कितनी संवेदनशीलता दिखाई, किसने पहले ट्वीट किया, किसने कितना मुआवजा दिया, आगजनी का कारण क्या था, किसकी गलती थी, ये सारे प्रश्न भी उठने लाज्मी हैं। देशवासियों की सेवा के लिए हर वक्त तैयार राजनेताओं को इस वक्त दिल्ली के लोगों और उसके विकास की बहुत चिंता है। ऐसे में बढ़ती आगजनी की घटनाओं पर न चाहते हुए भी राजनीति हो ही जाती है। नेताओं का बयान तो जरूर होता है कि ये समय आरोप लगाने का नहीं है लेकिन फिरतर से मजबूर नेता करे भी तो क्या करे?
कई सर्वे किए गए जिसमें ये बात सामने आई है कि दिल्ली में कई फैक्ट्रीयां, गोदाम और कंपनियां लक्षागृह बनी हुई हैं। इन फैक्ट्रियों में किसी भी प्रकार की फायर सेफ्टी का इंतजाम नहीं है। कई बिल्डिगं ऐसी हैं जो अवैध हैं। इसके बाद भी आखिर क्यों सरकार हादसे होने का इंतजार करती रहती है? क्यों किसी हादसे से पहले ही इन सारे मुद्दों पर विपक्ष की ओर से सवाल नहीं उठाए जाते? क्या राजनीति मासूमों की जान से महत्वपूर्ण हो गई है? इस प्रश्न का उत्तर न ही मिले तो बेहतर, क्योंकि संवेदनशील नेताओं के सामने मानवता को शर्मसार करना भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए सही नहीं होगा!
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