नई दिल्ली/ प्रियंका शर्मा। कोरोना महामारी ने दुनिया में लगभग सभी देशों पर नकारात्मक असर डाला है। वहीं भारत में रोज़गार से लेकर शिक्षा पर इसकी गहरी छाप रही। शिक्षा को देखें तो सबसे ज्यादा गांव के छात्रों को इसका नुकसान सहना पड़ा है। देश में कोरोना संकट के साथ ही ऑनलाइन पढ़ाई की घोषणा कर दी गई। शहर में ज्यादातर छात्रों के अभिभावकों ने मोबाईल, लैपटॉप जैसी उपकरण का इंतज़ाम अपने बच्चों के लिए कर लिए लेकिन इन सुविधाओं से कोसों दूर गांव के छात्रों के लिए ये उतना ही कठिन रहा। सरकार ने तो मोबाइल के जरिए पढ़ाई की घोषणा कर दी लेकिन इस बात से अनजान बने रहे कि आज भी कई ऐसे गांव भारत में बसते हैं जहां के लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती, ऐसे में उनके पास स्मार्ट मोबाइल फोन होना अपने आप में सवाल है। इन सब का परिणाम ये रहा कि जब से ऑनलाइन पढ़ाई की शुरूआत हुई है तब से देश के 37 प्रतिशत छात्रों का पढ़ाई से नाता टूट गया।
ऑनलाइन कक्षाओं को लेकर सर्वेक्षण देश भर में कोरोना संकट के कारण बंद हुए स्कूलों के बाद सर्वेक्षण से सामने आया है कि ग्रामीण परिवारों के केवल आठ प्रतिशत बच्चें ही ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल होते हैं। अगस्त 2021 में आयोजित स्कूल चिल्ड्रन ऑनलाइन एंड ऑफ लाइन लर्निंग (स्कूल) नामक यह सर्वेक्षण किया गया, इसे अर्थशास्त्री जीन द्रेज, रीतिका खेरा, निराली बाखला और विपुल पैकरा द्वारा कई राज्यों में मौजूद स्वयंसेवकों की एक टीम की मदद से किया गया था। जिसमें सामने आया कि 37 प्रतिशत ऐसे बच्चे हैं जो ऑनलाइन पढ़ाई में बिल्कुल नहीं पढ़ पा रहे है।
लंबे समय तक स्कूल बंद होने से गिरा शिक्षा का स्तर स्कूल चिल्ड्रन ऑनलाइन एंड ऑफलाइन लर्निंग की टीम ने कुल 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सर्वेक्षण किया है। जिसमें दिल्ली, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़, असम, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में वंचित समाज के परिवारों के 1,400 स्कूली बच्चे शामिल हैं। इससे सामने आया कि ग्रामिण क्षेत्रों में केवल 8 प्रतिशत ही ऐसे बच्चे हैं जो ऑनलाइन पढ़ पा रहे हैं। वहीं ज्यादातर बच्चों के माता-पिता का कहना है कि स्कूल जल्द से जल्द फिर खोल देना चाहिए।
सर्वेक्षण में इसके अलावा कई बाते सामने आई जैसे लंबे समय तक ऑनलाइन पढ़ाई चलने के कारण कक्षा 3-4 के 42 प्रतिशत ग्रामिण बच्चे एक भी शब्द नहीं पढ़ पा रहे थे। वहीं शहरों में कक्षा दो के 65 प्रतिशत बच्चे कुछ शब्दों से ज्यादा नहीं पढ़ पा रहे थे, यहीं आंकड़ा ग्रामिण क्षेत्रों का 77 प्रतिशत रहा। कारण है कि इनमें से ज्यादातर बच्चे स्कूल ही नहीं गए।
क्षति की भरपाई के लिए लिए लगेगा समय देश में कोरोना संकट के कारण बंद स्कूलों को फिर से खोलने की मांग हो रही हैं, सर्वेक्षण में सामने आया कि अधिकांश अभिभावकों ने स्कूलों को फिर से शुरू करने का समर्थन किया है, लेकिन कोरोना महामारी के कारण कुछ इसका विरोध भी कर रहे हैं। सर्वेक्षण रिपोर्ट कहता है कि पढ़ाई के इस क्षति की भरपाई के लिए वर्षों तक काम करना पड़ेगा। हालांकि कई राज्यों में कुछ नियमों के साथ अब स्कूल फिर से खोले जा रहे हैं, इससे उम्मीद की जाती है कि शिक्षा के स्तर में जल्द सुधार देखा जाएगा।
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