Wednesday, Oct 04, 2023
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साइटोकाइन थेरैपी से जल्द होगा अब कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज, ट्रायल को मिली अनुमति

  • Updated on 5/22/2020

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। कोरोना महामारी से लड़ने के लिए अब स्‍वास्‍थ्‍य महानिदेशालय ने साइटोकाइन थेरैपी  के ट्रायल किए जाने को अनुमति दे दी है। इस  थेरैपी की खास बात यह है कि इसे कोरोना के शुरूआती दौर में ही मरीज को दिया जाता है जिससे वो कोरोना से गंभीर रूप से बीमार नहीं होता।

इसे संक्रमण के मामूली लक्षणों के दौरान ही मरीज को दिया जा सकता है। जिससे वो अति संक्रमित होने से बच जाता है और खुद उसकी बॉडी कोरोना से लड़ने लगती है।

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जल्द होने लगेगा इस्तेमाल
इस  थेरैपी के ट्रायल के लिए स्‍वास्‍थ्‍य महानिदेशालय ने कर्नाटक में बेंगलुरु के एसीजी कैंसर अस्पताल को न्‍यू ड्रग्‍स एंड क्‍लीनिकल ट्रायल रूल्‍स, 2019 के तहत साइटोकाइन थेरैपी को शुरू करने की अनुमति दी है। इससे पहले कर्नाटक में मरीजों को साइटोकाइन थेरैपी के जरिए इलाज दिया जा रहा था, जिससे राज्य में मौतों में कमी देखी गई थी।

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मिल चुकी है ये मंजूरी
इससे पहले इस अस्पताल को प्लाज्मा थेरैपी का इस्तेमाल कर मरीजों की जान बचाने की मंजूरी मिल चुकी है। लेकिन इस वक्त राज्य में साइटोकाइन थेरैपी को लेकर सिर्फ सेफ्टी ट्रायल्‍स किए जा रहे हैं। इसका अभी पहला चरण ही चल रहा है अगर सभी चरण सफल रहे तो इस साइटोकाइन थेरैपी को जून में मरीजों के इलाज के तौर पर पेश किया जा सकता है।

शुरूआती दौर क्यों है अहम
इस साइटोकाइन थेरैपी में शुरूआती दौर में ही इलाज दिया जाना अहम है क्योंकि अगर मरीज को गंभीर होने के बाद इस साइटोकाइन थेरैपी को दिया जायेगा तो मरीज का इम्यून सिस्टम ओवरएक्टिव हो जाएगा, जिससे मरीज के अंगों में सूजन, निमोनिया या दूसरी परेशानियां हो सकती है इसलिए इसे शुरुआत में ही इस्तेमाल किया जाएगा।

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साइटोकाइन थेरैपी कैसे करेगी काम
वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना के मरीज को शुरूआती दौर में साइटोकाइन थेरैपी दी जाएगी। इससे मरीज के इम्यून सिस्टम को एक तरह का बूस्ट मिलेगा और वो संक्रमण के कारण सुस्त पड़ने के बाद साइटोकाइन थेरैपी पा कर फिर से एक्टिव हो जायेगा और कोरोना वायरस से लड़ने लगेगा।

साइटोकाइन थेरैपी मरीज के इम्यून को बीमारी के आगे हार मानने से पहले ही उसे और पॉवर दे देती है। जिससे मरीज का शरीर तेजी से वायरस के खिलाफ लड़ने लगता है और रेस्पोंस देने लगता है।

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बुजुर्गों पर सबसे पहले
वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी तक सब ठीक रहा है अगर आगे भी इसके सभी ट्रायल ठीक रहे तो इसका जून से इस्तेमाल किया जा सकता है और इसका सबसे पहले इस्तेमाल बुजुर्गों पर किया जाएगा, क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम रेस्पोंस जिस हिसाब से देगा उसी के अनुसार बाकी मरीजों पर फिर परीक्षण करके देखा जा सकेगा।

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