नई दिल्ली/टीम डिजिटल। बाबा रामदेव कोरोना वायरस की दवा को बनाने का दावा करने के बाद चर्चा में आ गये हैं। उन्होंने दावा किया उनके पतंजलि संस्थान ने कोरोना की दवा का 100% इलाज खोज निकाला है और अब ये बाजार में बेचे जाने के लिए तैयार हैं। लेकिन कोरोना की दवा कोरोनिल के लॉन्च होते ही ये विवादों में घिर गई।
पहले आयुष मंत्रालय ने इससे पल्ला झाड़ा और फिर उत्तराखंड आयुर्वेदिक विभाग ने उनके खिलाफ नोटिस जारी कर दिया है। विभाग का कहना है कि हमसे बुखार-खांसी-सर्दी की दवा बोल कर लाइसेंस लिया था, कोरोना की दवा बना रहे हैं ये नहीं बताया।
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लाइसेंस पर फंसे बाबा रामदेव इसके अलावा जानकारों का भी कहना है कि किसी भी दवा के ट्रायल में ही कम से कम चार साल लगते हैं और अगर आपातकालीन स्थिति हो तब भी साल भर या 10 महीने तो लगते ही हैं ऐसे में कोरोनिल दवा पर संदेह बनता ही है। साथ ही ये भी जवाब बाबा रामदेव को देना होगा कि उन्होंने कोरोना की दवा बोल कर लाइसेंस क्यों नहीं लिया, क्या उन्हें पता था कि लाइसेंस नहीं मिलेगा? तो फिर अब सवाल यह है कि आयुर्वेदिक दवा और किसी भी दवा को लाइसेंस देने की क्या प्रक्रिया होती है जो बाबा रामदेव ने नहीं पूरी की।
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ऐसे होती है शुरूआत किसी भी दवा को बाजार में लाने से पहले उस दवा को बनाने वाले व्यक्ति, संस्था आदि को भारत में कई चरणों से गुजरना पड़ता है। इसे ड्रग अप्रूवल कहा जाता है। अप्रूवल में क्लिनिकल ट्रायल के लिए आवेदन करना, क्लिनिकल ट्रायल कराना, मार्केटिंग ऑथराइजेशन के लिए आवेदन करना और पोस्ट मार्केटिंग स्ट्रेटजी जैसे कई प्रोसेस पूरे करने होते हैं।
यहां बता दें कि आयुर्वेदिक दवाओं और एलोपैथी दवाओं के अप्रूवल प्रोसेस में थोड़ा ही अंतर है। आयुर्वेदिक दवाओं में किसी रेफरेंस यानी किसी के आधार पर दवा बनाई जा रही है ये बता कर आसानी से अप्रूवल लिया जा सकता है जबकि अगर उसमें भी एलोपैथी की तरह लैब, फोर्मुलास की जरूरत होती है तो इसे स्टेप बाय स्टेप पूरा करना होता है।
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भारत में अप्रूवल की अनुमति भारत का औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 और नियम 1945 के तहत भारत सरकार का केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) दवाओं के अप्रूवल, ट्रायल का संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में इम्पोर्ट होने वाली दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेष सलाह देते हुए औषधि और प्रसाधन सामग्री के लिए उत्तरदायी है।
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क्लिनिकल ट्रायल से पहले भारत में किसी दवा के अप्रूवल के लिए सबसे पहले जांच के लिए आई नई दवा की एप्लीकेशन को सीडीएससीओ के मुख्यालय में जमा करना होता है। इसके बाद न्यू ड्रग डिवीजन इसकी जांच करता है। इस जांच के बाद इंवेस्टिगेशनल न्यू ड्रग एप्लिकेश कमिटी इसका गहन अध्ययन और समीक्षा करती है।
इस बाद इस नई दवा को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के पास भेजा जाता है। अगर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया, आईएनडी के इस आवेदन से सहमत हो जाते हैं तो इसके बाद कहीं जाकर क्लिनिकल ट्रायल की बारी आती है।
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क्लिनिकल ट्रायल के बाद क्लिनिकल ट्रायल पूरे होने के बाद सीडीएससीओ के पास दोबारा एक आवेदन करना होता है। अब ये आवेदन न्यू ड्रग रजिस्ट्रेशन के लिए करना होता है। इस बार ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया इसे रीव्यू करता है।
इस दौरान अगर ये नई दवा सभी मानकों पर खरी उतरती है तो इसके लिए लाइसेंस जारी किया जाता है, लेकिन अगर ये मानकों के अनुसार पूरी नहीं होती है तो डीसीजीआई इसे रद्द कर देता है।
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मानक बेहद जरूरी किसी नई दवा के लिए भारत में अगर लाइसेंस हासिल करना है तो कई मानकों का ध्यान रखना होता है। यह सभी मानक औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 और नियम 1945 के तहत आते हैं।
मौजूदा विवाद में बाबा रामदेव की दवा कोरोनिल इन्हीं मानकों की अनदेखी करने के आरोप फंसी हुई हैं। इसी सम्बंध में उत्तराखंड की आयुर्वेद ड्रग्स लाइसेंस अथॉरिटी ने रामदेव को नोटिस जारी किया है। इस नोटिस में दवा के बारे में गलत जानकारी देने का आरोप लगाया गया है।
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