नई दिल्ली/टीम डिजिटल। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका पर आगे सुनवायी करने से इनकार कर दिया जिसमें न्यायिक कामकाज से जुड़े लोगों जैसे न्यायाधीश, अदालत के कर्मचारियों और वकीलों को ‘‘कोविड-19 के खिलाफ अग्रिम मोर्चे पर तैनात कर्मी’’ घोषित करने का अनुरोध किया गया था ताकि वे प्राथमिकता के आधार पर टीका लगवाने के लिए सक्षम हो सकें।
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उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनवायी पर रोक लगाये जाने के मद्देनजर उच्च न्यायालय ने यह फैसला किया। उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 का टीका लगाने के लिए विधिक समुदाय को प्राथमिकता देने के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय में सुनवाई पर बृहस्पतिवार को रोक लगा दी थी। साथ ही, फैसला करने के लिए स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले को अपने पास स्थानांतरित करने का भी समर्थन किया था। जस्टिस विपिन सांघी एवं जस्टिस रेखा पल्ली की एक पीठ ने उस जनहित याचिका पर सुनवायी पर अनिश्चित काल के लिए रोक लगा दी जिस पर सुनवायी उच्च न्यायालय ने स्वयं शुरू की थी।
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केंद्र ने टीकाकरण के लिए वकीलों का अलग वर्ग बनाने का विरोध किया है और कहा कि हालांकि वह अदालत कर्मियों के खिलाफ नहीं है, लेकिन कल को पत्रकार और बैंकिंग सेवा के कर्मचारी भी आगे आकर टीकाकरण में प्राथमिकता देने की मांग करने लगेंगे। सुनवायी के दौरान, केंद्र सरकार के स्थायी वकील अनिल सोनी ने उच्च न्यायालय को सूचित किया कि यहां सात जिला अदालतों में उन वकीलों के लिए कोविड-19 टीकाकरण की सुविधा शुरू हो गई है जो नीति के अनुसार इसके लिए पात्र हैं।
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दिल्ली उच्च न्यायालय और यहां की सभी जिला अदालतों ने 15 मार्च से प्रत्यक्ष उपस्थिति के साथ कामकाज फिर से शुरू कर दिया है। इससे पहले, केंद्र ने उच्च न्यायालय को बताया था कि कोविड-19 टीकाकरण का निर्णय नागरिकों को बीमारी की चपेट में आने के जोखिम पर आधारित है और यह पेशे पर आधारित नहीं है और सरकार देश की जरूरतों के प्रति संवेदनशील है। टीका विनिर्माताओं भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने उच्च न्यायालय को बताया था कि अग्रिम मोर्चें पर तैनात र्किमयों के तौर पर न्यायिक कर्मचारियों, अधिवक्ताओं और न्यायाधीशों के टीकाकरण के लिए टीकों की पर्याप्त क्षमता उपलब्ध है।
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जनहित याचिका न्यायिक कामकाज से जुड़े सभी लोगों- न्यायाधीशों, अदालत के कर्मचारी और वकीलों को कोविड-19 के खिलाफ अग्रिम मोर्चे पर तैनात कर्मी घोषित करने के अनुरोध के आकलन करने के लिए शुरू की गई थी ताकि वे उम्र या शारीरिक स्थितियों को ध्यान में रखे बिना कोविड-19 टीके लगवा सकें। वर्तमान नीति के अनुसार, 60 वर्ष से अधिक आयु वाले या अन्य बीमारियों से पीड़ित 45 से 59 वर्ष की आयुवाले व्यक्ति टीकाकरण के लिए पात्र हैं।
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सरकार ने कहा है कि पेशे को ध्यान में रखने के बजाय, सरकार कोविड-19 संक्रमण की चपेट में आने के जोखिम को ध्यान में रखते हुए कोविड-19 टीके के लिए पात्रता निर्धारित करने की नीति अपनायी है। उच्च न्यायालय ने 4 मार्च को केंद्र से कहा था कि वह उन लोगों के वर्ग पर कठोर नियंत्रण रखने के पीछे तर्क बताए, जिन्हें वर्तमान में कोविड-19 का टीका दिया जा सकता है क्योंकि वर्तमान नीति के तहत 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों या अन्य बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति टीका लगवा सकते हैं।
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