Thursday, Jun 01, 2023
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covishield vaccine will a 3-month gap between two doses benefit you more prshnt

कोविशील्ड वैक्सीनः दो डोज के बीच 3 महीनों  के गैप से होगा ज्यादा फायदा?

  • Updated on 5/20/2021

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। कोरोना महामारी के के खिलाफ जारी जंग में वैक्सीन ही अब तक का सबसे बड़ा हथियार साबित हो रहा है। हमारे देश में शुरुआत में दो तथा अब तीन वैक्सीन के प्रयोग की अनुमति मिल चुकी है। इनमें कोविशील्ड (एस्ट्राजेनेका) वैक्सीन सर्वाधिक लोगों को लग रही है। अभी हाल ही में भारत में कोविशील्ड वैक्सीन के पहली और दूसरी डोज के बीच अंतर बढ़ाकर 12 से 16 हफ्तों का कर दिया गया है। वैक्सीन की कमी के बीच इस फैसले को लेकर तमाम सवाल भी उठ रहे हैं। कोविशील्ड के दोनों डोज के बीच का समय बढ़ाने के बाद से लोगों में कई तरह की कन्फ्यूजन है। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक व वैक्सीन के सह विकासकर्ता एंड्रयू पोलार्ड का मानना है कि दोनों डोज के बीच तीन महीने का अंतर इम्युनिटी को और बढ़ाता है। 

भारत और ब्रिटेन दोनों ने हाल ही में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दो डोज के बीच के अंतराल को बदला है। इनके बीच आदर्श समय अंतराल क्या है?

हमारे पास काफी अच्छा डेटा है जो यह दिखाता है कि दो डोज के बीच अंतराल में पहले तीन महीने सुरक्षा काफी मजबूत रही है। तीन महीनों का अंतराल बहुत अच्छी सुरक्षा प्रदान करता है। वहीं, तीन से 4 महीने का अंतराल होने पर यह और बेहतर हो जाता है। लंबे समयांतराल पर दूसरी डोज लेने के बाद इम्युनिटी काफी मजबूत होती है। ब्रिटेन में इसमें परिवर्तन का कारण क्च.1.617 वेरियंट से उत्पन्न हुई स्थिति, इम्युनिटी में सुधार और वेरियंट के कर्ब ट्रांसमिशन को रोकने का प्रयास है। लेकिन अधिकतम इम्युनिटी के लिए लंबे समय तक इंतजार करना फायदेमंद है।

वैक्सीन से ब्लड क्लॉटिंग की आशंकाओं के बारे में कहना चाहेंगे? वैक्सीन को लेकर ऐज रिस्ट्रिक्शंस की अनुशंसा क्यों करते हैं?

अगर हम वैक्सीन से बहुत ही नगण्य ब्लड क्लॉटिंग के रिस्क की बात करते हैं तो यह रिस्क वायरस से संक्रमित होने पर और ज्यादा है। जबकि ब्लड क्लॉटिंग का रिस्क काफी कम है। अगर आप किसी ऐसे क्षेत्र में हैं जहां बीमारी व्यापक तौर पर फैली हुई है तो हल्के खतरे के साथ वैक्सीन लगवाना ही बेहतर है। हां अगर आप ऐसी जगह पर हैं जहां कोई बीमारी नहीं है तो उसकी बात अलग है। वैक्सीन को लेकर विभिन्न देशों में अलग-अलग आयु प्रतिबंध इसलिए हैं क्योंकि वे अधिकांश लोगों को टीका लगवाने की भाग्यशाली स्थिति में हैं और बीमारी की दर भी बहुत कम है।

कोरोना के नए वेरियंट्स के में यह वैक्सीन कितनी प्रभावी है?

जब तक इसका ट्रांसमिशन जारी है, तबतक वायरस वेरियंट्स बनते रहेंगे। हम अभी दुनिया की पूरी आबादी का टीकाकरण करने से बहुत दूर हैं, इसलिए हम अभी और कई वेरियंट्स को विकसित होते देखेंगे। हालांकि हमें उम्मीद है कि मौजूदा जेनरेशन की वैक्सीन, वैक्सीनेट किए जा चुके लोगों में इम्युनिटी बढ़ाने में काफी प्रभावी होगी। इसलिए अधिकांश लोगों को गंभीर बीमारी और जीवन के नुकसान से बचाया जा सकता है।

क्या कोविशील्ड (एस्ट्राजेनेका) को बच्चों में टीकाकरण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है?

मेरा विचार है कि बच्चों का टीकाकरण शुरू करने से पहले हाई रिस्क वाले लोगों को टीका लगाया जाना चाहिए। इस पर मौजूदा डेटा पूरे महामारी में एक जैसा ही है। इसके बच्चों में गंभीर बीमारी की दर कम है। ज्यादा जोखिम बुजुर्गों और बीमार लोगों में हैं। इसलिए हमें उपलब्ध सभी वैक्सीन का इस्तेमाल उनके लिए करना चाहिए।

वैक्सीन इक्विटी पर आपके क्या विचार हैं?

हम सभी मानव परिवार का हिस्सा हैं। इसलिए एक अमीर देश और एक गरीब देश में जीवन का मूल्य एक समान होना चाहिए। नैतिक रूप से, हमें टीकों का वितरण समानता के साथ करना चाहिए। हालांकि अमीर देशों के लिए ऐसा करने का एक व्यावहारिक कारण यह भी है कि यदि हम सभी देशों में कमजोर लोगों का टीकाकरण नहीं करते हैं तो वायरस वैश्विक अर्थव्यवस्था को और अधिक प्रभावित करेगा। इसलिए वैक्सीन वितरण में समानता के पीछे नैतिक, स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा भी वजहें हैं। यूनिवर्सिटी में हम वैक्सीन वितरण में समानता को लेकर काफी दृढ़ हैं।

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