नई दिल्ली/टीम डिजिटल। पूरे देश को अहिंसा परमो धर्म का संदेश देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी खुद हिंसा का शिकार हुए। 30 जनवरी 1948 को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। जिसके बाद से अब तक देश इस दिन को शहीद दिवस के रुप में मनाता है। गोली लगने के बाद गांधी जी इस देश को अलविदा कह गए। इसके बाद भी वे देश के करोड़ों लोगों के जेहन में जिंदा हैं। गांधी जी तो चले गए लेकिन देश के लिए उसूल और सिद्दांतो की एक ऐसी मसाल छोड़ गए कि आजतक देश उन्हें सलाम करता है।
अपने पूरे जीवन में अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले बापू हमेशा देश के सीख देते रहे कि अहिंसा ही उन्नती और विकास का सबसे बड़ा मार्ग है। लेकिन खुद गांधी जी की हत्या के बाद देश हिंसा की आग में जला। जगह- जगह मारपीट, पथराव और एक जाति विशेष के खिलाफ प्रायोजित हिंसा का दौर चला जिसे देख कर देश और खास तौर पर गांधी जी के विचारों को मानने वाले आहत थे। गांधी जी की हत्या के बाद देश भर में में आरएसएस के प्रति लोगों में गुस्सा देखा गया और स्वयसेवकों को सड़कों पर पीटने की घटनाएं हुईं। इस हिंसा का सबसे ज्यादा विकराल रुप महाराष्ट्र में देखने को मिला। पूरे प्रदेश में चितपावन ब्राह्मणों को निशाना बनाया गया और उनकी चुन- चुन कर हत्या की गई। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार इस हिंसा में सैकड़ों चितपावन ब्राह्मणों की हत्या की गई जिसकी न तो सरकार की ओर से पुष्टि हो पाई है और न ही उनके परिवार और परिजनों का कोई रिकार्ड रखा गया है।
कैसे हुई हत्या...
30 जनवरी 1948 को हिंदू सभा के कार्यकर्ता नाथूराम गोड़से ने बरेटा एम 1934 सेमी-ऑटोमैटिक पिस्तौल से भरी भीड़ में गोली मारकर हत्या कर दी। हत्या से पहले गांधी जी दिल्ली के बिरला भवन में सर्वधर्म प्रार्थना में भाग लेने जा रहे थे। इसी दौरान उन्हें गोली मार दी गई। गाधी जी के सामने से उनके सीने में गोलियां दाग दी गई। जिसके चलते देश ने एक महात्मा के खो दिया।
देश भर में दंगे...
गांधी जी की हत्या के बाद देश में भें दंगे शुरु होने लगे। आरएसएस के लोगों को पीटा जाने लगा। इसके साथ ही आरएसएस के गुरुजी महादेव सदाशिव गोलवलकर के घर पर हमला किया गया। हालांकि पुलिस ने उन्हें बचा लिया। उस घटना के बाद से महाराष्ट्र में अलग-अलग जगहों पर ब्राह्मण विरोधी ध्रुवीकरण शुरू हुआ। पुणे में गोडसे के अखबार के कार्यालय हिंदू राष्ट्र और हिंदुत्ववादी अखबार के दफ्तरों में आग लगा दी।
चितपावन ब्राह्मणों पर हमले...
हिंसा की ये आग इतनी भयानक थी कि इसमें करीब 50 लोगों की जान चली गई। कहा जाता है कि गोडसे चितपावन ब्राह्मण था। जिसके चलते मराठाओं ने चितपावनों को अपने निशाने पर लिया। धीरे- धीरे ये आग इतनी फैल गई की ये सीधे तौर पर ब्राह्मणों और मराठाओं के बीच का दंगा बन गया।
आरएसएस पर लगा बैन..
गांधी जी की हत्या के बाद जवाहर लाल नेहरु ने तत्काल आरएसएस पर बैन लगा दिया। इस तरह के प्रतिबंध कई बार लगे। हालांकि इसके बाद भी स्वंयसेवकों ने इसका विरोध नहीं किया। गोडसे की गिरफ्तारी के बाद भी नाथूराम ने कहा कि वह गांधीवादियों से तर्क करना चाहते हैं। मैंने गांधी को व्यक्तिगत नहीं बल्कि राजनीतिक कारण से मारा है। गोडसे ने कहा था कि उसने एक इंसान की हत्या की है इसलिए उसे फांसी मिलनी चाहिए। इसी आधार पर गोडसे ने हाईकोर्ट में अपील नहीं की। गांधी जी की हत्या की साजिश रचने के मामले में नाथूराम गोडसे और सहयोगी नारायण आप्टे उर्फ नाना को अंबाला जेल में 15 नवंबर 1949 को फांसी दे दी गई।
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