गये दिनों का सुराग लेकर किधर से आया किधर गया वो अजीब मानूस अजनबी था मुझे तो हैरान कर गया वो बस एक मोती सी छब दिखाकर बस एक मीठी सी धुन सुनाकर सितारा-ए-शाम बन के आया ब-रंग-ए-खाब-ए-सहर गया वो
गये दिनों का सुराग लेकर किधर से आया किधर गया वो अजीब मानूस अजनबी था मुझे तो हैरान कर गया वो
बस एक मोती सी छब दिखाकर बस एक मीठी सी धुन सुनाकर सितारा-ए-शाम बन के आया ब-रंग-ए-खाब-ए-सहर गया वो
नई दिल्ली/श्वेता राणा। इस फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे सितारे हैं, जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है और इसमें सबसे पहला नाम आता है संगीत के जादूगर पंचम दा यानि आर डी बर्मन का, जिन्हें आज भी म्यूजिक इंडस्ट्री का गुरु माना जाता है। 4 जनवरी 1994 को पंचम दा ने दुनिया को से विदा लिया था। भले ही उन्हें अलविदा कहे 25 साल हो गए हैं, लेकिन उनकी कम्पोजिशन आज भी अमर है।
पंचम दा फिल्म इंडस्ट्री के आसमान पर चमकते हुए उस ध्रुव तारें की तरह है जिसने हमारी इंडस्ट्री में संगीत को नए आयाम दिए। उन्होंने संगीत में नए एक्सपेरिमेंट करने के लिए ग्लास, हुड़का, और कंघी जैसी चीजों से धुनों का इजात किया। उन्होंने ऐसा संगीत बनाया जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। उन्होंने दूसरे संगीतकारों को प्ररेणा ही नहीं दी बल्कि मजबूर कर दिया कि अगर उन्हें इस इंडस्ट्री में बने रहना है तो उन्हें भी कुछ नया और कुछ अलग करना होगा।
पंचम पर रोते थे आर डी पंचम दा की कहानी को किसी एक खांचे में नहीं बांध सकते। कामयाबी, नाकामयाबी, शोहरत हर एक चीज आपको पंचम दा की जिंदगी से वास्ता रखती नजर आएगी। कोलकात्ता में जन्में पंचम के लक्षण बचपन में ही पिता को दिख गए थे जब उन्होंने मजह 9 साल की उम्र में एक शानदार धुन कम्पोज की। वैसे तो पंचम दा का नाम रखा गया था टबलू लेकिन एक दिन उन्हें रोते देख अशोक कुमार ने कहा कि ये तो सरगम के पंचम में रोता है बस यहीं से नाम पड़ गया पंचम।
इसके बाद परिवार कोलकात्ता से मुंबई आया, तो उन्होंने अली अकबर खां साहब से सरोद सिखा, लगे हाथ हार्मोनिका भी सिख लिया। फिर समता प्रसाद से तबला सीखा। इसी बीच साल 1965 में महज 9 साल की उम्र में उन्होंने देव साहब की फिल्म 'फंटूश' के लिए अपना पहला गाना कंपोज किया, जिसे एसडी बर्मन ने फिल्म में इस्तेमाल भी किया।
नहाते हुए बना देते थे म्यूजिक 70 के दशक में एक फिल्म आई थी परिचय जिसका म्यूजिक कम्पोज किया था आर डी बर्मन साहब ने। ये वो पहली फिल्म थी जिसमें पंचम दा और गुलजार साहब ने एक साथ काम किया था। इस फिल्म का एक सुपरहिट सॉन्ग 'मुसाफिर हूं यारों' का म्यूजिक आर डी बर्मन ने क्मपोज किया था तो वहीं बोल लिखे थे गुलजार ने, लेकिन इस गाने की धुन आर डी बर्मन ने स्टूडियों में नहीं बल्कि नहाते हुए बनाई थी।
दरअसल, फिल्म के गिटारिस्ट भानू गुप्ता बताते हैं कि 'मुसाफिर हूं यारों' फिल्म के लिए रिकॉर्ड किया गया पहला गाना था जिसके लिए गुलजार ने पंचम दा को गाने की शुरुआती लाइन दे दी। अब कश्मकश तो थी म्यूजिक और लिरिक्स दोनों को लेकर, लेकिन पंचम दा ने इस खूबसूरत गाने को नहाते हुए ही कम्पोज कर डाला।
भानू बताते है कि मैं पंचम दा के म्यूजिक रूम में बैठा था और अपने कोर्ड्स पर रियाज कर रहा था। इतने में पंचम दा जो नहा रहे थे बाथरुम में मुंह निकाल कर कहते हैं कि 'बजाते रहो, रुको मत'। मैंने उनकी बात मानी और गिटार पर धुन बजाता चला
उन्होंने आगे कहा कि जब पंचम दा बाहर आए तो वह एक लाइन गुनगुनाते आ रहे थे, जो उनके कोर्ड्स के साथ बिलकुल फिट बैठ रही थी और वो लाइन थी 'मुझे चलते जाना है'। और ऐसे बना परिचय का पहला गाना 'मुसाफिर हूं यारों न घर है न ठिकाना, मुझे चलते जाना है।
पंचम दा के निधन के बाद उनके अजीज दोस्त गुलजार साहब ने उनकी याद में कुछ शब्द लिखे थे....
याद है... पंचम जब भी कोई धुन बना कर भेजते थे तो साथ कह दिया करते थे कि The Ball is in Your Court। ये कौन सी बॉल मेरे कोर्ट में छोड़ गए हो तुम पंचम। जिंदगी का खेल अकेले नहीं खेला जाता। हमारी तो टीम है। आ जाओ या बुला लो।
याद है... पंचम जब भी कोई धुन बना कर भेजते थे तो साथ कह दिया करते थे कि The Ball is in Your Court। ये कौन सी बॉल मेरे कोर्ट में छोड़ गए हो तुम पंचम।
जिंदगी का खेल अकेले नहीं खेला जाता। हमारी तो टीम है। आ जाओ या बुला लो।
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