नई दिल्ली/आयुषी त्यागी। किसी महिला के साथ अगर यौन शोषण जैसी घटना होती है तो उसे दुनिया के सामने बयां करने एक महिला के लिए बेहद ही मुश्किल होता है। कभी समाज के डर से तो कभी हिम्मत की कमी के चलते महिलाएं चार दिवारों के बीच ही उसे दफन कर देती है लेकिन अब #MeToo कैंपेन के तहत महिलाएं बेबाकी से अपना साथ हुए यौन शोषण के बारे में बता रही हैं। कई बड़ी हस्तियों के नाम इस कड़ी में जुड़ चुके हैं जैसे नाना पाटेकर, साजिद खान, आलोख नाथ, विनोद दुआ, एम जे अकबर और भी कई लोगों के नाम है जिनकी सच्चाई महिलाओं ने दुनिया के सामने रखी।
ये तो कहानी का एक पहलू है हमारे समाज में महिलाओं के साथ-साथ कई ऐसे पुरुष भी है जिन्हें प्रताड़ित किया जाता है। अक्सर देखा गया है कि हमारे पुरूष प्रधान समाज के डर से वो अपने साथ हुआ उत्पीड़न के बारे में बता नहीं पाते है क्योंकि बचपन से ही पुरूषों के मन में एक बात बैठा दी जाती है कि लड़के कभी रोते नहीं है। लड़के बहुत मजबूत होते है। महिलाओं के हक में लड़ने वाली कई महिलाएं आपने देखी होंगी लेकिन हवा से विपरित क्या आपने कभी सुना है कि कोई महिला पुरुषों को अधिकार के लिए लड़ रही है।
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कौन है ये महिला जो बनी पुरुषों की मसीहा दीपिका भारद्वाज आगे बढ़ने से पहले आप सभी से गुजारिश है कि इस नाम को अच्छे से याद रखे क्योंकि जो मैं जो इनके बारे में आपको बताने जा रही हूं शायद ही बहुत से लोग इस पर विश्वास कर पाएं। दीपिका ने पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई की उसके बाद पत्रकारिता में आई जहां उन्होंने एक टीवी चैनल में एंकरिंग की औप अब वो जॉब छोड़कर मर्दों के अधिकारों के लिए आवाज उठा रही है।
महिला होकर मर्दों के लिए आवाज उठाना मुश्किल हमारे देश में जहां हर 15 मिनट में एक बालात्कार की घटना होती है, हर पांच मिनट में घरेली हिंसा का मामला सामने आता है, हर 69 वे मिनट में दहेज के लिए दुल्हन की हत्या होती है और हर साल हजारों की संख्या में बेटियां पैदा होने से पहले ही गर्भ में मार जी जाती है ऐसे माहौल के बीच मर्दों के लिए दीपिका भारद्वाज पुरुषों के लिए आवाज उठा रही है। दीपिका का सवाल ये है कि क्या मर्दों का उत्पीड़न नहीं होता, क्या वो असुरक्षित नहीं है? क्या उनके साथ भेदभाव नहीं होता क्या वो पीड़ित नहीं हो सकते?
क्यों पुरुषों की लड़ाई लड़ने का फैसला किया
दीपिका का कहना है कि महिलाओं की बात रखने वाले तो बहुत लोग है। वो कहती है कि जिस तरह महिला की लड़ाई लड़ना के लिए महिला होना जरुरी नहीं है वैसे ही पुरुषों की लड़ाई लड़ने के लिए पुरुष होना जरूरी नहीं है। उनका कहना है कि वो महिला अत्याचारों की बात इसलिए नहीं करती क्योंकि उनकी बात रखने वाले बहुत है।
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अखिर किसके खिलाफ है दीपिका की लड़ाई दरअसल दीपिका का लड़ाई भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी का धारा 498 ए (दहेज अपराध) के दुरुपयोग के खिलाफ है। दरअसल 2012 में दीपिका ने एक रिसर्च शुरू की थी तब उन्होंने पाया कि कई सारे ऐसे मामले है जिनमें पुरुषों पर झूठे आरोप लगाए गए है। इनमें भी ज्यादातर मामले दहेज प्रताड़ित है।
दीपिका की फिल्म 'मर्टायर्स ऑफ मैरिज'
दीपिका का कहना है कि कई सारे ऐसे मामले भी है जिनमें बदनामी के डर से लड़के के मां बाप ने आत्महत्या कर ली। उनका कहना है कि कई बार मेरी बहस फेमेनिस्ट से हो जाती है वो कहती है कि तुम एक महिला होकर पुरूषों के लिए आवाज कैसे उठा सकती हो। मैं हमेशा उनसे यहीं कहती हूं कि हां मैं पुरुषों के लिए लड़ती हूं क्योंकि उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं है।
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इस घटना के बाद दीपिका ने लिया पुरुषों के लिए लड़ने का फैसला
दीपिका का कहना है कि उन्होंने खुद इस तरह की घटना का सामना करा है दरअसल एक मामला उनके चचेरे भाई का ही है, जिसकी पत्नी ने अवैध संबंध के सबूत के बावजूद उल्टे कानूनी कार्रवाई की धमकी दी थी। कानूनी सलाह लेने के बाद पता चला की कानून औरतों के लिए ही है।
दीपिका ने बताया कि उनके खिलआफ ही भाई की पत्नी से मारपीट का झूठा आरोप लगाया गया। मैंने इस तरह के कई और केस भी देखे जिसमें महिलाओं द्वारा 498ए कानून के गलत दुरुपयोग का मामला सामने आया। वो कहती है कि उन्होंने परिवारों को बर्बाद होते देखा है। वो कहती है कि 'हां यह सच है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन तस्वीर के दूसरे पहलू को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।
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