Friday, Sep 29, 2023
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CAG का खुलासा- Rafale जेट सौदे से पहले ही बदल दी गई थी रक्षा खरीद नीति, जानें रिपोर्ट में क्या कहा?

  • Updated on 9/29/2020

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। संसद में पेश की गई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) रिपोर्ट के अनुसार राफेल जेट की खरीद को लेकर रक्षा मंत्रालय ने अपनी खरीद नीति में बदलाव किया था। ये बदलाव 2016 में किया गया था। 

इस बदलाव के बाद 2016 में भारत और फ़्रांस के बीच 36 एयरक्राफ्ट खरीदने की डील हुई थी। इस डील और नीति में बदलाव के कारण  ऑफसैट पार्टनर घोषित करने की अनिवार्यता खत्म हो चुकी थी। संसद में पेश हुए रिपोर्ट में बताया गया है कि रक्षा खरीद नीति में ये बदलाव साल 2015 में किया गया था लेकिन इसे अप्रैल 2016 से यह लागू किया गया था। 

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रक्षा खरीद नीति में हुए इस बदलाव के अनुसार विदेशी वेंडर को कॉन्ट्रैक्ट साइन करते समय अपने ऑफसैट पार्टनर के बारे में बताना जरूरी नहीं है। लेकिन सदन में पेश हुई कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि ऑफसैट दायित्वों को सितंबर 2019 से लागू होना था और राफेल डील की पहली वार्षिक प्रतिबद्धता इस महीने पूरी हो जानी चाहिए थी और इसका रक्षा मंत्रालय के पास विवरण होना चाहिए। 

बता दें कि सरकार ने ऑफसेट को खत्म करने का फैसला तब लिया है जब कुछ समय पहले ही कैग ने ऑफसेट नीति के खराब प्रबंध व्यवस्था को लेकर नाराजगी प्रकट की थी।

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यहां ये भी बता दें कि खत्म की गई ऑफसेट नीति के तहत विदेशी रक्षा उत्पादन इकाइयों (Foreign defense production units) को 300 करोड़ रुपये से अधिक के सभी कॉन्ट्रेक्ट के लिए भारत में कुल कॉन्ट्रेक्ट प्राइस का कम से कम 30% खर्च करना होता है। जिसे कलपुर्जों की खरीद, प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण या अनुसंधान और विकास इकाइयों की स्थापना करके करना होता है।

इस बारे में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि डीएपी में भारत के घरेलू उद्योग के हितों की रक्षा करने तथा आयात प्रतिस्थापन तथा निर्यात के लिए विनिर्माण केंद्र स्थापित करने के लिहाज से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को बढ़ावा देने के प्रावधान भी शामिल हैं। 

रक्षा मंत्री ने ट्वीट किया कि नयी नीति के तहत ऑफसेट दिशानिर्देशों में भी बदलाव किये गये हैं और संबंधित उपकरणों की जगह भारत में ही उत्पाद बनाने को तैयार बड़ी रक्षा उपकरण निर्माता कंपनियों को प्राथमिकता दी गयी है। 

सिंह ने कहा कि डीएपी को सरकार की ‘आत्मनिर्भर भारत’ की पहल के अनुरूप तैयार किया गया है और इसमें भारत को अंतत: वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने के उद्देश्य से ‘मेक इन इंडिया’ की परियोजनाओं के माध्यम से भारतीय घरेलू उद्योग को सशक्त बनाने का विचार किया गया है।

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