नई दिल्ली/टीम डिजिटल। दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने दो पीएचडी छात्राओं की याचिका पर जेएनयू (JNU) से जवाब तलब किया। याचिका में छात्राओं ने अप्रैल से अगस्त के बीच के छात्रवास और भोजनालय शुल्क भरने के आदेश को रद्द करने और मानसून सेमेस्टर में पंजीकरण कराने की अनुमति देने का अनुरोध किया है। छात्राओं का दावा है कि उन्होंने कोविड-19 महमारी की वजह से इस अवधि में परिसर खाली कर दिया था।
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न्यायमूॢत जयंत नाथ ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) और दिल्ली सरकार को याचिका पर नोटिस जारी किया और जबाव दाखिल करने को कहा। प्राची बंसल और वैशाली बंसल ने अपनी याचिका में कहा कि विश्वविद्यालय छात्रावास के मनमाने तरीके से बकाया का भुगतान किए बिना उन्हें मानसून सेमेस्टर में पंजीकरण कराने की अनुमति नहीं दे रहा है। उन्होंने कहा कि अगर पंजीकरण कराने की अनुमति नहीं दी गई तो वे अपना शैक्षणिक कार्य जारी नहीं रख सकेंगी।
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अधिवक्ता अभीक चिमनी और मयंक गोयल ने कहा कि 19 मार्च को जेएनयू ने नोटिस जारी कर विद्याॢथयों से छात्रावास के कमरे खाली करने को कहा और अब वह शैक्षणिक कार्य करने के लिए छात्रावास कमरे नहीं दे रहा है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय उनसे उन महीनों का शुल्क मांग रहा है जब वे अप्रैल से अगस्त महीने में परिसर में नहीं रह रहे थे। अधिवक्ता ने दावा किया कि भोजनालय शुल्क और अन्य शुल्क की वसूली करने का फैसला मनमाना है और प्राधिकारियों का यह कदम गैर कानूनी होने के साथ-साथ छात्रावास नियमावली के भी विपरीत है।
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जेएनयू का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता मोनिका आरोड़ा ने कहा कि यह कामगार महिलाओं का स्व वित्तपोषित छात्रावास है और याचिकाकर्ता छात्राओं को सरकार से आवास भत्ता मिल रहा है। उन्होंने कहा कि अगर वे वित्तीय समस्या से जूझ रही हैं या उनकी छात्रवृत्ति बंद हो गई है तो अधिकारी उनके किसी भी अभिवेदन पर कानून के तहत विचार करेंगे।
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अरोड़ा ने कहा कि अन्यथा उन्हें मानसून सत्र से पहले सभी बकाया का भुगतान करना होगा। उल्लेखनीय है कि मानसून सत्र के लिए पंजीकरण सितंबर महीने में शुरू हुआ। छात्रावास का मासिक किराया के बारे में पूछे जाने पर अदालत को बताया गया कि यह 7,500 रुपये है।
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