नई दिल्ली। अनामिका सिंह। श्रावण मास और कांवडियों द्वारा कांवड लाकर शिवलिंग की विधिवत पूजन करना अपने आपमें इतना मनोहारी दृश्य है जिसकी कल्पना मात्र से मन में भगवान शंकर के प्रति आस्था व विश्वास दोगुना हो जाता है। कहते भी हैं कि भोलेनाथ इतने भोले हैं कि उनकी पूजा के लिए कोई प्रपंच रचने की जरूरत नहीं वो तो सिर्फ गंगाजल से ही संतुष्ट होकर अपने भक्त का कल्याण कर देते हैं।
राजधानी दिल्ली में जब कावंडियों ने हरिद्वार व बैजनाथ धाम की ओर प्रस्थान कर दिया है और जल्द ही शिवलिंग का अभिषेक किया जाएगा तो ऐसे में हम आपको दिल्ली के प्रमुख व अद्भुत शिवलिंगों व शिवमंदिरों के बारे में बताएंगे।
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पारे के शिवलिंग (साध नगर, पालम) पालम स्थित साध नगर में श्रीमहाकाल मंदिर में अद्भुत पारे के शिवलिंग की स्थापना करीब 50 साल पहले की गई थी। मंदिर के ट्रस्टी व मुख्य पुजारी अनिल बताते हैं कि शिवलिंग और मंदिर करीब 5 दशक पुराना है लेकिन इसका जीर्णोद्धार 2006 में किया गया।
शास्त्रों में कहा गया है कि पारे के शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से उतना ही पुण्य प्राप्त होता है जितना नर्मदेश्वर शिवलिंग पर 1 लाख बार जल चढ़ाने से मिलता है। भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होकर निरोगी काया व सुख- संपन्नता देते हैं, यही वजह है कि श्रावण मास में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में रूद्राभिषेक, कालसर्प दोष यज्ञ व असाध्य बीमारी होने पर विशेष जलाभिषेक करवाते हैं। सावन में हजारों की संख्या में कांवडिय़ां यहां जल चढ़ाने आते हैं।
स्फटिक शिवलिंग (छतरपुर मंदिर) बाबा नागपाल महाराज द्वारा श्रावण मास में भक्तों की भीड़ को देखते हुए व भक्तों की विशेष अनुरोध पर स्फटिक के शिवलिंग को अपने कमरे के बाहर रखवाकर भगवान शिव का अभिषेक करवाना प्रारंभ किया था। आज भी श्रावण मास के अवसर पर राजधानी के एकमात्र स्फटिक शिवलिंग पर जलाभिषेक बाबा के समाधिस्थ होने के बाद भी मंदिर न्यास द्वारा विधिपूर्वक करवाया जा रहा है।
शास्त्रों के अनुसार स्फटिक शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से घर में खुशहाली आती है और जीवन पर पडऩे वाले बुरे प्रभावों से भगवान शिव दूर रखते हैं। सच्चे मन से स्फटिक शिवलिंग की पूजा करने से ऊर्जा मिलती है और वातावरण भी शुद्ध हो जाता है।
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श्री शिव- गौरी नागेश्वर मंदिर (छत्तरपुर) नीले रंग के शेषनाग के विशाल स्वरूप के ऊपर स्थापित शिवलिंग छत्तरपुर मंदिर में विराजमान है। ये देखने में इतना अद्भूत लगता है कि बरबस ही आपको अपनी ओर खींच लेता है। छत्तरपुर मंदिर प्रशासन ने बताया कि इस शिव- गौरी नागेश्वर मंदिर का निर्माण स्वयं बाबा नागपाल ने करवाया था।
काले पत्थर की मूर्तियां, विशाल शिवलिंग, शेषनाग परिवार बेहद खूबसूरत लगता है। ये मूर्तियां बाबा ने उड़ीसा से मंगवाकर स्थापित की थी। श्रावण मास में यहां जलाभिषेक करने वालों का तांता लगा रहता है क्योंकि शिव परिवार सहित शेषनाग की भी पूजा-अर्चना का सौभाग्य श्रद्धालुओं को प्राप्त होता है।
छत्तरपुर में बनारस के कारीगरों द्वारा शिवपरिवार किया स्थापित दिल्ली में अनेकों शिव मंदिर बनाए गए हैं लेकिन आपको अपनी ओर आकर्षित करने वाली मूर्ति छत्तरपुर में देखने को मिलेगी। इस शिव मंदिर का निर्माण साल 1972-73 में किया गया था। यहां मां पार्वती संग भगवान शिव की अष्टधातु से निर्मित मूर्ति विराजमान है। मंदिर प्रशासन ने बताया कि इस मूर्ति को बनवाने के लिए बाबा नागपाल बनारस के कारीगरों को खुद लेकर आए थे।
यहां विराजमान शिव-पार्वती की मूर्ति के सामने एक काले पत्थर से निर्मित शिवलिंग बना हुआ है। इसके ऊपर एक घड़े में गंगाजल व दूध डाला जाता है धीरे-धीरे टपकने वाली बूंदों से पूरे दिन भोलेबाबा का अभिषेक होता है। यहां सैंकडों की संख्या में श्रद्धालु श्रावण मास में जल चढ़ाने आते हैं।
प्राचीन गौरी शंकर मंदिर, चांदनी चौक मराठा सैनिकों की शिवभक्ति को प्रकट करता हुआ 8 सौ साल पुराना मंदिर चांदनी चौक में स्थित है। इसे प्राचीन गौरी शंकर मंदिर के नाम से जाना जाता है। बताते हैं कि एक मराठा सिपाही जोकि भोलेनाथ का भक्त था वो युद्ध में घायल हो गया। उसने शिव से अपने ठीक होने की कामना की, प्रभू कृपा से वो ठीक हो गया। ठीक होने के बाद उसने इस मंदिर का निर्माण करवाया।
हालांकि इस मंदिर का जीर्णोद्धार 20वीं शताब्दी के मध्य में किया गया है। श्रावण मास में जलाभिषेक के लिए यहां श्रद्धालुओं को कई- कई घंटे ही नहीं बल्कि दो दिन तक भी लाईनों में लगना पड़ता है। खासकर पुरानी दिल्ली व उसके अगल- बगल में रहने वाले शिवभक्त यहीं जलाभिषेक करना पसंद करते हैं।
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नीली छतरी मंदिर (जमुना बाजार) दिल्ली को खांडवप्रस्थ से इंद्रप्रस्थ के रूप में बसाने वाले पांडवों के निशान आज भी दिल्ली के विभिन्न कोनों में देखने को मिल जाते हैं। पुराणों के अनुसार पांचों पांडवों में से राजा युधिष्ठिर बहुत बड़े शिव भक्त थे। उन्होंने यमुना नदी के किनारे जमुना बाजार में शिवमंदिर की स्थापना की थी।
कहते हैं कि इस शिव मंदिर का निर्माण करवाने के बाद पांडवों ने यहीं अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया था, इस मंदिर को नीली छतरी मंदिर के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में हालांकि मंदिर की हालत काफी जीर्ण-शीर्ण जरूर हो गई है लेकिन उसकी ख्याति आज भी हर जगह फैली हुई है, जिसके चलते श्रावण मास में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए आते हैं।
बनखंडी महादेव (पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन) पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के नजदीक ही प्राचीन मंदिर है जिसे बनखंडी महादेव के नाम से जाना जाता है। इस शिव मंदिर की बहुत मान्यता है कहते हैं कि इस मंदिर में में स्थापित शिवलिंग पांडवकालीन है। इसे पांडवों के किले यानि वर्तमान के पुराना किला से लाकर यहां स्थापित किया गया था। मालूम हो कि भगवान शिव के कई नामों की तरह ही बनखंडी भी उनका नाम है।
इस मंदिर का जीर्णोद्धार लगभग सौ सालों पहले चिरानंद गिरी जी महाराज ने करवाया था। इस मंदिर में शिव अपने श्रद्धालुओं को मनोवांछित फल का वरदान देते हैं। यही वजह है कि पुरानी दिल्ली ही नहीं बल्कि दूर-दूर से लोग शिवलिंग के दर्शन करने आते हैं। श्रावण मास में यहां मेला सा लग जाता है। प्रत्येक श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाकर मनोवांछित फल पाने के लिए ललायित दिखाई देता है।
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