नई दिल्ली/ कामिनी बिष्ट। दिल्ली (Delhi) के अनाज मंडी (Anaj mandi) इलाके में स्थित एक इमारत में आग (Fire) लगने से 43 निर्दोषों की मौत हो गई। पैकिंग, सिलाई, लोडिंग का काम करने वाले गरीब मजदूरों जब चारों ओर से बिजली की तारों से घिरी एक बंद इमारत में सो रहे थे तब एक शॉट सर्किट हुआ और इमारत में आग लग गई, दरवाजा बाहर से बंद था। वो बाहर न निकल सके और कई जिंदगियों को आग के धुंए ने लील लिया। आग लगने की सूचना और मौत के बढ़ते आंकड़ों की खबर हर टीवी चैनल पर चलने लगी। रविवार की सुबह नींद से जागते नेताओं ने चाय की चुस्की के साथ जब ये खबर टीवी पर देखी तो दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में भी सनसनी फैल गई।
आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियों में व्यस्त नेताओं को इस खबर ने हिलाकर रख दिया। सत्तासीन आम आदमी पार्टी और बीजेपी के नेता घटनास्थल पर पहुंचने लगे। उस समय मीडिया के सवालों पर अप्रत्यक्ष रुप से एक दूसरे पर निशना साधते हुए नेता कहने लगे की इस मुद्दे पर रानजीति नहीं करना चाहते। मरने वालों के प्रति अपनी खोखली संवेदना दिखाते हुए उनके परिवारों के लिए किसी ने 10, किसी ने 5 तो किसी ने 2 लाख के मुआवजे का ऐलान किया।
दिल्ली सरकार की गैरजिम्मेदारी के कारण हुआ हादसा- बीजेपी एक दिन बाद ही इस मामले पर गंदी राजनीति शुरू होने लगी। केंद्रीय आवास एवं शहरी मामला मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि दिल्ली सरकार के अपने जिम्मेदारी से भागने का नतीजा है अनाज मंडी हादसे के रूप में सामने आया है। मंत्री ने मीडिया के समक्ष कहा कि सवाल यह नहीं कि यह जिम्मेदारी एमसीडी की थी या नहीं,बल्कि सवाल यह है कि बिल्डिंग वैध थी या अवैध, क्योंकि जिस प्रकार से हादसा स्थल और उसके आस-पास तारों का जाल फैला हुआ है, उस पर बिजली विभाग की निगाह आखिर क्यों नहीं गई?
विशेष इलाकों की मास्टर प्लान की फाईल दिल्ली सरकार ने दबाई- केंद्र वहीं केंद्र सरकार ने कहा है कि पुरानी दिल्ली के विशेष इलाकों की मास्टर प्लान-2021 के तहत पुर्नविकास योजना तैयार करने के लिए दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग को अप्रैल 2017 में आधिकारिक गजट में अधिसूचना जारी करने के लिए फाइल भेजी गई थी, लेकिन दिल्ली सरकार ने अधिसूचना जारी नहीं की।
अप्रासंगिक नियमों का हवाला दे रहा केंद्र- AAP इस पर दिल्ली सरकार का कहना है कि इससे संबंधित फाइल उपराज्यपाल के पास है। गत 5 दिसम्बर को फाइल उपराज्यपाल के पास भेजी गई थी। आरोप लगाया गया है कि एक दुखद घटना का राजनीतिकरण किया जा रहा है। केंद्र सरकार इस मामले में अप्रासंगिक नियमों का हवाला दे रही है। उनके मुताबिक शहरी विकास मंत्री सत्येंद्र जैन के पास फाइल गत 26 अगस्त को आई थी और मंत्री ने 24 घंटे में फाइल को क्लीयर कर अगले ही दिन 27 अगस्त को भेज दिया था।
हादसे के लिए दिल्ली सरकार के मंत्री जिम्मेदार- कांग्रेस कांग्रेस ने हादसे में मरे लोगों की मौत के लिए सीधे तौर पर दिल्ली सरकार के उर्जा मंत्री व बिजली कंपनियों को दोषी ठहराया है। पार्टी ने मांग की है कि उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया जाए। दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा का कहना है कि दिल्ली सरकार के उर्जा मंत्री और बिजली कंपनियों की सांठगांठ से इन क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए 825 करोड़ रुपए की धनराशि बिजली कंपनियों ने खर्च करने का दावा किया है जो पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि कंपनी का यह दावा कि 650 किलोमीटर केबल सिस्टम को मजबूत किया है, सत्य से परे है।
AAP कार्यकर्ता है इमारत का मालिक- मनोज तिवारी वहीं बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी का दावा है कि हादसे वाली इमारत का मालिक आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता है। इसके साथ ही तिवारी ने सीएम केजरीवाल को संवेदन शून्य बताते हुए कहा कि 43 परिवार उजड़ गए और ये कार्यक्रम कर रहे हैं।
कैसी दुविधा है कि ये नेता कितना कुछ जानते थे। बिल्डिंग की हालत कैसी है, फायर सेफ्टी का कोई इंतजाम उसमें नहीं है, कौन सी फाइल कहा पड़ी है। किसने काम रोका हुआ है। कितना बजट खर्च हुआ और कितना काम हुआ। इतने सालों से दिल्ली में बैठ कर राजनीति करते आए इन नेताओं को यहां के हालात का अंदाजा न हो ये असंभव सा प्रतीत होता है। इसके बाद भी ये चुप थे। क्या ये सभी इस हादसे के इंजार में थे कि ये हादसा हो और वो आरपो-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू कर सकें? चुनावी माहौल में एक दूसरे को घेरने में जुटे नेताओं को ये हादसा सत्ता कब्जाने का मौका लग रहा है। जिस प्रकार आग के धुंए ने गरीब मजदूरों की जिंदगी लील ली, ठीक उसी प्रकार सत्ता की चमक के तीव्र प्रकाश ने इन नेताओं की मानवीय संवेदनाओं को जलाकर खाक कर दिया है।
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