नई दिल्ली। अनामिका सिंह। दौड़ते-भागते शहर के बीच किसी शांत इलाके को यदि देखा जाए और वो अपने सूनसान होने की वजह से लोगों को डराए तो उसे लेकर कई तरह की कहानियां बन जाती हैं। इन्हीं कहानियों के साथ आज भी अपने समय की कहानी कहती कई ऐतिहासिक इमारतें दिल्ली में बिखरी पड़ी हैं। इन इमारतों को लेकर हरेक व्यक्ति का अपना अलग तजुर्बा व कहानी है। इन्हीं इमारतों में से एक है जमाली-कमाली मस्जिद। जिसके लिए कहते हैं कि रात में यहां जिन्न आते हैं। लेकिन इन बातों में कितनी हकीकत है, हम यह तो नहीं जानते लेकिन इस ऐतिहासिक इमारत के बनने की कहानी और खासियत से आपको जरूर रूबरू करवा सकते हैं।
रात होते आती हैं जिन्नात द्वारा इबादत की आवाजें बता दें कि कुतुबमीनार से कुछ दूरी पर कुतुब ऑर्कियोलॉजिकल पार्क है। जहां दर्जनों ऐतिहासिक जानी-मानी और बेनाम इमारतें खड़ी हैं। इन्हीें के बीच जमाली-कमाली मस्जिद हमेशा चर्चाओं में रहता है। अन्य इमारतों को तो नहीं लेकिन इसकी कहानियों के चलते यहां अधिकतर कुतुबमीनार देखने आने वाले पर्यटक जरूर आते हैं लेकिन शाम होते ही इसकी कहानियों के डर से निकल जाते हैं। हालांकि एक पुरातात्विक महत्व के चलते इसकी महत्ता कभी खत्म नहीं हो सकती है। यह मुगल काल का प्रमुख स्मारक है। यदि बात इससे जुड़ी कहानियों की करें तो रात में यह जगह वीरान हो जाती है और लोगों का मानना है कि इन कब्रों में से दुआ की आवाजें निकलती हैं। इसीलिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा शाम के बाद इस मस्जिद में आना-जाना प्रतिबंधित किया गया है। वहीं मस्जिद के नजदीक रहने वालों का कहना है कि रात में यहां जिन्नात इबादत के लिए आते हैं और मस्जिद से इबादत की आवाजें आती हैं।
इसी मस्जिद से शुरू हुई मुगलशैली में झरोखा व्यवस्था जमाली-कमाली की मस्जिद भारत में पहली ऐसी इमारत भी थी जो मुगल वास्तुकला शैली की नींव रखने में कामयाबा हुई थी। यही नहीं मुगल बादशाहों द्वारा झरोखा व्यवस्था भी इसी मस्जिद से शुरू की गई थी। इससे पहले की किसी भी इमारत में झरोखा व्यवस्था नहीं देखी गई थी। लाल बलुआ पत्थरों से बनाई गई इस मस्जिद में संगमरमर से भी नक्काशी देखने को मिलती है। इसके साथ ही शेख जमाली के मकबरे पर खूबसूरती से उर्दू की शेरों-शायरी को भी उकेरा गया है जो यहां आने वाले पर्यटकों को खासा आकर्षित करती है।
कौन थे मौलाना शेख जमाली और कमाली चिश्ती परंपरा के महान सूफी ख्वाजा गरीब नवाज के बाइस ख्वाजा में शामिल हजरत मखदूम समाउद्दीन देहलवी के खास मुरीद रहे थे खलीफा हजरत मौलाना शेख जमाली। वो अपने समय के महान सूफी, कवि होने के साथ ही लोधी सम्राट के दरबारी कवि थे। उन्होंने अपनी प्रतिभा के दम पर लोदी और मुगल दोनों वंशों में अपनी अच्छी पेठ बनाई थी। कहते हैं कि मौलाना जमाली बहलोल लोधी, सिंकदर लोधी, इब्राहिम लोधी से लेकर बाबर और हुमायूं तक सभी बादशाहों के दरबारी कवि रहे। वो इसी मस्जिद में रहकर इबादत किया करते थे और उनकी मृत्यु के बाद उन्हें इसी मस्जिद के अहाते में दफना दिया गया था। वहीं उनके साथी कमाली को भी उनके नजदीक ही दफनाया गया है।
जाने किसने बनवाया था मकबरा इस मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट बाबर द्वारा सन 1528 के आसपास करवाया गया। हजरत जमाली यही रहते और अल्लाह की इबादत किया करते थे। सन 1536 में मौलाना जमाली की मृत्यु के बाद उन्हें इसी मस्जिद के आंगन में दफनाया गया। उनके समीप उनके साथी कमाली की भी कब्र है। इस तरह इन दोनों की कब्र एक साथ होने से इसे जमाली-कमाली की दरगाह भी कहते है।
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