नई दिल्ली। अनामिका सिंह। देश का दिल दिल्ली और इसके बसने व उजडने की कहानियां हमेशा से ही सबको आकर्षित करती रही हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि दिल्ली पर करीब 1 हजार 745 वर्षों तक पांडवों के सबसे बडे भाई युधिष्ठिर की करीब 30 पीढियों ने राज किया। बता दें कि दिल्ली में हिंदू राजाओं व उनकी वंशावली और राज्यविस्तार के बारे में हिंदी भाषा में काफी कम या फिर कहें ना के बराबर पढने को मिलता है लेकिन दिल्ली में हुए 18 बार उलटफेर पर अंग्रेजी व उर्दू भाषा में कई पुस्तकें पढने को मिलती हैं। जिसमें द आॅर्कियोलाॅजी एंड मान्यूमेंटल रिमेंस आॅफ दिल्ली के लेखक व इतिहासकार कार स्टीफन व दिल्ली पास्ट एंड प्रेसेंट के लेखक एच.सी. फेंसावे की पुस्तक को सर्वाधिक तर्कों पर खरा उतरता वर्तमान साहित्यकार मानते हैं। तो आइए आज हम आपको बताते हैं हिंदूकाल की दिल्ली व दिल्ली के उलटफेर की कहानी। गांधी जी की पुण्यतिथि पर डीयू में सर्व-धर्म प्रार्थना का आयोजन
पांडवों के वंशज से उनके राजद्रोही मंत्री विस्त्रवा ने छीना राज कार स्टीफन अपनी किताब द आॅर्कियोलाॅजी एंड मान्यूमेंटल रिमेंस आॅफ दिल्ली में लिखते हैं कि करीब 35 सौ वर्ष पूर्व महाराज युधिष्ठिर ने यमुना के पश्चिमी किनारे पर पांडव राज्य इंद्रप्रस्थ की नींव डाली थी। जिस पर उनके तीस वंशजों ने राज किया। जिसके बाद राजद्रोही मंत्री विस्त्रवा ने राज्य पर कब्जा किया और उसकी कई पीढियों ने 5 सौ वर्षों तक उस पर राज किया। उसके बाद दिल्ली पर गौतम वंश का राज आता है, जिसमें सरूपदत्त जोकि कन्नौज राज्य का लेफ्टिनेंट था उसने एक शहर बसाया और उसे अपने राजा ढिल्लू के नाम पर ढिल्लाूपुर नाम दिया। कार स्टीफन बताते हैं कि गौतम वंश के बाद धर्मधज या धरिंधर के वंशजों ने दिल्ली पर राज किए जिसके अंतिम राजा को राजा कोल ने परास्त किया और राजा कोल उज्जैन के राजा से परास्त हो गया। उज्जैन के राजा से भी राज्य जोगियों के हाथ में चला गया, जिसका राजा समुद्रपाल था। जोगियों के बाद अवध के राजा भैराइच का कब्जा दिल्ली पर हो जाता है लेकिन कुछ साल बाद ही फकीर वंश व उनसे होते हुए राज्य बेलावल सेन को मिला। जिसे सिवालक के राजा देवसिंह कोल ने परास्त किया और देवसिंह को अनंगपाल प्रथम ने परास्त कर दिल्ली पर कब्जा कर लिया और तोमर वंश की बुनियाद रखी। अनंगपाल प्रथम ने 731 ईसवीं में दिल्ली को फिर से बसाया जबकि उसके वंशज अनंगपाल द्वितीय ने 1052 ईसवीं में दिल्ली को फिर से आबाद किया। करीब 792 वर्ष तक दिल्ली उत्तरी भारत की राजधानी नहीं रही। यह समय उज्जैन के राजा से लेकर अनंगपाल द्वितीय के काल तक माना जाता है। चैहानों ने तोमर वंश के अंतिम राजा को 1151 में परास्त किया और चैहान वंश की स्थापना दिल्ली में की। जिसके सबसे शक्तिशाली राजा पृथ्वीराज चैहान को कहा जाता है। उन्होंने महरौली में रायपिथौरा का किला बनवाया लेकिन 1191 में दिल्ली को कुतुबद्दीन ऐबक द्वारा जीतकर मुस्लिम शासकों की झोली में डाल दिया गया। एफसीआई के मायापुरी गोदाम पर कोटाधारकों ने किया प्रदर्शन
कांगडी भाषा की राजावली में भी मिलता है जिक्र करीब 50 साल पहले कांगडी भाषा में लिखित एक राजावली नामक हस्तलिखित पुस्तक मिली थी। जिसमें महाभारत काल के पश्चात दिल्ली पर जितने राज्य वंशों ने राज किया उनका वर्णन दिया गया है। इसके अनुसार महाराजा युघिष्ठिर के 30 वंशजों ने 1745 वर्ष 2 महीने व 2 दिन राज किया। जबकि मंत्री विस्त्रवा के 14 वंशजों ने 5 सौ 5 माह 6 दिन राज किया। वीरबाहू के 16 वंशजों ने 420 साल 10 माह व 14 दिन राज किया जबकि डुंडाहराय के 9 वंशजों ने 360 साल 11 महीने 13 दिन राज किया। इसके बाद समुद्रपाल राजा हुए और इनके 16 वंशजों ने 405 साल 5 महीने 19 दिन राज किया। राजा तलोकचंद के 10 वंशजों ने 119 साल 10 महीने 29 दिन राज किया, इसके बाद राजा हरतप्रेम के 4 वंशजों ने 49 साल 11 महीने 10 दिन राज किया। जबकि वहीसेन राजा के 12 वंशजों ने 158 साल 9 महीने 7 दिन और उसके बाद दीपसिंह के 6 वंशजों ने 104 साल 6 महीने 24 दिन राज किया। जबकि पिथौरा वंश यानि चैहान वंश के 5 राजाओं ने 85 साल 8 महीने और 23 दिन राज किया। इसमें मुसलमानों के राज के बारे में भी बताया गया है जोकि 51 राजाओं द्वारा 778 साल 2 महीने व 11 दिन है। केंद्र सरकार के खाद्य विभाग ने की दिल्ली के राशन में 50 हजार क्विंटल की कटौती
वर्तमान में मिलते हैं सिर्फ 3 हिंदू राजाओं के शहर दिल्ली में लंबा व कई हजार सालों तक हिंदू राजाओं के राज करने के बावजूद मात्र तीन वंशों के ही निशान आज देखने को मिलते हैं। इसमें भी पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ, राजा अनंगपाल द्वितीय के अनंगपुर या लालकोट व पृथ्वीराज चैहार की महरौली स्थित रायपिथौरागढ है। हालांकि रायपिथौरा में भी गुलाम बादशाहों की दिल्ली की झलक ज्यादा दिखाई देती है।
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