नई दिल्ली/टीम डिजिटल। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि चुनाव आयुक्तों का चयन ऐसी समिति द्वारा किया जाना चाहिए जिसमें उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में विरोधी दल के नेता की मौजूदगी हो।
पार्टी ने अपने मुखपत्र ‘पीपुल्स डेमोक्रेसी' के ताजा संस्करण में कहा कि निर्वाचन आयोग के कुछ हालिया रुख और कदम निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव कराने की उसकी प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं हैं। उसके अनुसार, ‘‘पिछले कुछ वर्षों में खासकर मोदी सरकार के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद निर्वाचन आयोग सरकार की मर्जी के अनुरूप कदम उठाता देखा गया है और यहां तक कि वह अतीत में अपनाए गए कुछ स्वतंत्र रुख से भी हटा है।''
माकपा ने यह आरोप भी लगाया कि निर्वाचन आयोग गुजरात में चुनाव कराने में नए मानक तय कर रहा है। उसने कहा, ‘‘सबसे पहले, गुजरात विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा में विलंब किया गया। सब जानते हैं कि चुनाव कार्यक्रम घोषित करने में जो अतिरिक्त दिन लगे, उनका उपयोग प्रधानमंत्री ने गुजरात में परियोजनाओं और योजनाओं के उद्घाटन के लिए किया।'' माकपा ने कहा कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए चुनाव आयोग की स्वतंत्रता जरूरी है।
केंद्र ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था का विरोध किया केंद्र ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं का उच्चतम न्यायालय में बृहस्पतिवार को विरोध किया। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने न्यायमूर्ति केएम जोसेफ के नेतृत्व वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा कि इस तरह का कोई भी प्रयास संविधान में संशोधन के बराबर होगा।
उन्होंने कहा कि संविधान सभा के सामने संविधान के सभी मॉडल थे लेकिन उसने इस मॉडल को चुना, और निश्चित रूप से भारत निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता को ध्यान में रखा। पीठ ने अटार्नी जनरल से कहा कि मंगलवार को जब अदालत याचिकाओं पर अपनी सुनवाई फिर से शुरू करे तो वह अपनी दलीलें जारी रखें।
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