नई दिल्ली/टीम डिजिटल। नए कृषि कानून (New farm laws) के विरोध में किसान लगातार 15 दिन से दिल्ली के विभिन्न बॉर्डरों पर धरना दिए बैठे हैं। ये किसान नए कृषि कानून को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं और सरकार द्वारा दिए गए लिखित प्रस्ताव को भी ठुकरा चुके हैं और अब आंदोलन को और तेज करने का ऐलान कर दिया है।
तो वहीँ, किसान आंदोलन में नए कृषि कानून के बाद उसमें पराली से लेकर बिजली संशोधन विधेयक तक सब कुछ जोड़ दिया गया है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि किसानों को भ्रमित किया जा रहा है। यह भी तय है कि इन आंदोलन की आड़ में कहीं राजनीतिक दल तो कहीं बिजलीकर्मी अपना हित साध रहे हैं।
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सब्सिडी का डायरेक्ट बेनिफिट किसानों का विरोध यह भी है कि उनके राज्य से बिजली की कमी और इसके बाद उन्हें मिलने वाली सब्सिडी का डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) नहीं हो पाएगा। ऐसे में किसानों को पहले बिल भरने होंगे और उसके बाद संबंधित सरकारें चाहें तो सब्सिडी वापस दें सकती है या नहीं। ये सरकार पर निर्भर होगा।
जानकारों की माने तो राज्य सरकार बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को किसानों को कम दर पर या मुफ्त में बिजली देने के लिए अगर कह देती है तो किसानों को फायदा होगा लेकिन इस तरह से राज्य सरकार अगर डिस्कॉम को भुगतान नहीं करती है तो डिस्कॉम को घाटा उठाना पड़ेगा जैसा कि उसे उठाना पड़ता ही है।
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डिस्कॉम का घाटा ऐसा ही कुछ वर्ष 2010-11 के दौरान हुआ था जब देश के अधिकतर राज्यों की बिजली वितरण कंपनियां भारी घाटे में चल रही थीं। जिसकी वजह से कई राज्यों की डिस्कॉम को बैंकों ने कर्ज तक देने से मना कर दिया था। जिसके बाद बिजली पूर्ति के लिए डिस्कॉम को बिजली उत्पादक कंपनियों से बिजली खरीदनी पड़ती थी, लेकिन फिर भी राजनीतिक रूप से मुफ्त बिजली देने की घोषणा की वजह से डिस्कॉम को जो घाटा हो रहा था उसकी भरपाई नहीं हो पाती थी।
इस घाटे को ठीक करने के लिए ही डीबीटी के जरिये किसान या गरीबों को बिजली खरीदने के लिए नकदी ट्रांसफर करने का प्रावधान लाया गया है। घाटे के कारण ही कई राज्यों में घंटों बिजली कटौती करनी पड़ती है क्योंकि डिस्कॉम के पास बिजली खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था।
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तो वहीँ इसका असर बिजली उत्पादक कंपनियों पर पड़ा जो अपनी पूरी क्षमता पर बिजली उत्पादन नहीं करने व बिक्री की व्यवस्था नहीं होने से ठप होती चली गईं और इसी वजह से भी देश की कई बिजली परियोजनाएं या तो बंद हो गईं और भारी घाटे में चली गईं जिससे बैंकों के एनपीए में इजाफा होता चला गया।
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