नई दिल्ली। अनामिका सिंह। दिल्ली का दिल जहां कनॉट प्लेस है तो सांसे है शाहजहांनाबाद का बाजार चांदनी चैक है। चांदनी चैक अपनी तंग गलियों के भीतर कई ऐतिहासिक स्मारकों व घटनाओं को समेटे बैठा हुआ है। इन्हीं ऐतिहासिक घटना की गवाह है ‘समरू बेगम की कोठी’ जोकि अब इलैक्ट्रोनिक्स के देश में सबसे बडे बाजार भागीरथ पैलेस का केंद्र है और यहां तकरीबन 300 से 350 छोटी.बडी इलैक्ट्रोनिक्स की दुकानें हैं। जब औलिया ने कहा ‘दिल्ली दूर है’ और सुल्तान नहीं बसा पाए दिल्ली
19 शताब्दी के शुरूआत में बनी कोठी की हालत जर्जर बता दें कि इस विशाल भवन यानि समरू बेगम की तीनमंजिला कोठी की स्थापना 19वीं शताब्दी के शुरूआत की बताई जाती है। चांदनी चैक में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की बिल्डिंग की गली के बगल से एक तंग गली से होते हुए आप इस कोठी तक पहुंच सकते हैं। दूर से यह कोठी दिखाई भी नहीं देतीए काफी पास जाने पर ही इस सफेद रंग की कोठी को देखा जा सकता है। इस कोठी के ऊपर बडे.बडे शब्दों में लिखा है लॉयड बैंक लिमिटेड और बिल्डिंग के मुख्य द्वार के पास सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की ब्रांच है। इस कोठी की हालत अंदर से काफी खस्ताहाल हो गई हैए हर ओर मलबे का ढेर पडा हुआ है जोकि इसकी ऐतिहासिकता को धूमिल कर रहा है। वहीं रख.रखाव तो पूरी तरह नदारद है। खंभों की प्लाास्टर लगभग छड चुकी है और पूरी बिल्डिंग में तारों का जाल देखा जा सकता है। इस पूरी कोठी को एक ट्रस्ट के अधीन चलाया जा रहा है जोकि यहां दुकानदारों से किराया वसूल करती हैए जिसका नाम भागीरथ ट्रस्ट एंड संस है। क्या देखी है आपने शाहजहांनाबाद की सिटी वॉल
नाचने वाली से रियासत की बेगम तक का सफर इतिहासकार बताते हैं कि बेगम समरू एक नाचने वाली के घर में जन्मी लडकी थी जिसका शुरूआती नाम फरजाना था। उसने दिल्ली में किराये पर लडने वाले यूरोपीय सैनिक वॉल्टर रेनहार्ड सौम्ब्रे से प्यार के बाद शादी कर ली। जिसने अंग्रेजों के खिलाफ होने के कारण जाट और बाद में मुगलों की ओर से अनेकों युद्धों में भाग लिया। 1776 में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने सौम्ब्रे को शाही सनद देते हुए सरधना की जागीर दी। जिसके बाद फरजाना का नाम समरू बेगम हो गया। साल 1778 में रिन्हॉर्ड की मौत के बाद फरजाना ने बेगम समरू के रूप में 58 साल तक सरधना की जागीर को संभाला। उन्होंने इसी दौरान समरू बेगम की कोठी का निर्माण करवायाए इसके अलावा कैथोलिक ईसाई मत अपनाते हुए अपना नाम जोआना रख लिया व सरधना में एक बेजोड गिरजाघर बनवाया। खुद बनवाया था अपने लिए ग्यासुद्दीन तुगलक ने मकबरा
शाह आलम ने दिया बाग के बीच कोठी बनाने की जगह मुगल बादशाह शाह आलम ने साल 1806 में जहांआरा के बेगम का बाग के पूर्वी छोर पर बेगम समरू को कोठी बनवान के लिए जगह दी। यह कोठी बाग के ठीक बीच में स्थित थी जहां पर फूल और फलों के पेड लगाए गए थे। ब्रिटिश शासन के दौरान बेगम समरू की कोठी अपने भव्य आयोजनों के लिए प्रसिद्ध थी। यही कारण है कि तब के ईस्ट इंडिया कंपनी के बड़े से बड़े पदाधिकारी बेगम का आतिथ्य स्वीकार करने में अपार आनन्द की अनुभूति अनुभव करते थे। बेगम समरू की मौत के बाद कोठी का मालिक उनका गोद लिया बेटा डाइस सौम्ब्रे बना। वह यहां कुछ समय रहने के बाद स्थायी रूप से इंगलैंड चला गया। एक अंग्रेज ने खोला राज, फिरोजशाह नहीं बल्कि सम्राट अशोक की है लाट
प्रशासनिक कामों के रूप में किया गया कोठी का प्रयोग इतिहासकारों का कहना है कि साल 1847 के बाद इस खाली कोठी का प्रयोग प्रशासनिक कामों के लिए किया जाने लगा क्योंकि यह कचहरी के काफी नजदीक था। बाद में इसे बतौर कचहरी भी प्रयोग में लाया गया। कुछ समय बाद दिल्ली बैंक के मालिक और धनी हिंदू बैंकर लाला चूनामल ने इस कोठी को खरीदा। इस तरह यह आवासीय कोठी से एक बैंक में तब्दील हो गई। तब इसके अंग्रेज बैंक मैनेजर बेर्सफोर्ड थे जो इसी परिसर में परिवार सहित रहते थे। प्रदर्शनी के माध्यम से भारत छोडो आंदोलन की 79वीं वर्षगांठ
कोठी में कैद रहे मुगल बादशाह बहादुरशाह देश की पहली आजादी की लडाई यानि 1857 के दौरान इस कोठी में बैंक होने की वजह से यह स्वतंत्रता सेनानियों के निशाने पर थीए यहां लूट व आगजनी तक हुई। लेकिन इसे दोबारा अंग्रेजों ने अपने कब्जे में लिया और मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को लालकिले में ले जाने से पहले यहां कुछ समय कैद रखा गया। साल 1859 में यहां दोबारा लॉयड बैंक लिमिटेड का बैंकिंग का काम शुरू हुआ। साल 1922 में लॉयड बैंक ने इसे दिल्ली के एक बडे वकील मुंशी शिवनारायण को बेच दी। जिसे 1940 में शिवनारायण ने लाला भागीरथ को बेच दिया और आज ये उन्हीं के नाम पर बने ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जा रहा है।
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