कोलकाता/एजेंसी। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने सोमवार को कहा कि नए बजट में आर्थिक वृद्धि पर वैश्विक मंदी के असर, घटते निर्यात, चालू खाते के घाटा में बढ़ोतरी और आसमान छूते सरकारी कर्ज जैसे बिंदुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चिदंबरम ने पीटीआई-भाषा के साथ बातचीत में कहा कि बजट में घटती खपत के खतरे को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए क्योंकि बढ़ती बेरोजगारी, छंटनी और मुद्रास्फीति के दौर में जीवनयापन का स्तर गिरता है। भाजपा की अगुवाई वाली सरकार की तरफ से एक फरवरी को पेश किया जाएगा। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्त वर्ष 2023-24 के लिए बजट संसद में पेश करेंगी। चिदंबरम ने कहा कि उन्हें इस बजट से काफी उम्मीद हैं लेकिन इसी के साथ वह बड़ी निराशा झेलने के लिए भी तैयार हैं।
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नरेंद्र मोदी सरकार के 2024 चुनावों के पहले इस अंतिम पूर्ण बजट से लगाई गई उम्मीदों के बारे में पूछे जाने पर चिदंबरम ने कहा, "मुझे इससे बड़ी उम्मीदें हैं लेकिन इस सरकार के पिछले बजट के अनुभव को देखते हुए मैं बड़ी निराशा के लिए भी तैयार हूं। वास्तव में यह बजट अर्थव्यवस्था की मौजूदा कमियों को दूर करने वाला होना चाहिए।" पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, "आर्थिक वृद्धि पर वैश्विक मंदी का असर, निजी निवेश में सुस्ती, घटता निर्यात, चालू खाता घाटे में बढ़ोतरी, सरकार पर बढ़ते कर्ज बोझ और इससे भी बढ़कर घटती खपत से लोगों के जीवन-स्तर में गिरावट के खतरे जैसे बिंदुओं पर इस बजट में जोर दिया जाना चाहिए।"
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चिदंबरम ने कहा कि सरकार को आगामी बजट में मुद्रास्फीति पर नियंत्रण एवं रोजगार पैदा करने जैसे क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा, "लोगों को तत्काल राहत देने के लिए सरकार को उनके हाथ में अधिक पैसे रहने देने के तरीके निकालने चाहिए, न कि बढ़ी कीमतों पर अधिक कर एवं उपकर लगाकर पैसे जुटाना।" इसके साथ ही उन्होंने मौजूदा आर्थिक स्थिति में मुद्रास्फीति के अनुरूप आयकर स्लैब को समायोजित करने का सुझाव भी सरकार को दिया। उन्होंने कहा, "मौजूदा कर स्लैब कुछ साल पहले तय किए गए थे लेकिन अब उन्हें मुद्रास्फीति के हिसाब से तय किया जाना चाहिए। ऐसा होने पर बुनियादी कर छूट सीमा अपने-आप बढ़ जाएगी।"
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चिदंबरम ने कर स्लैब में बदलाव की संभावना से इनकार करते हुए कहा, "मुझे नहीं लगता कि सरकार मौजूदा स्लैब में कोई बदलाव करेगी। हालांकि सरकार दो साल पहले लाई गई बिना रियायत वाली कर प्रणाली को प्रोत्साहन दे सकती है। वैसे मेरी राय में यह वैकल्पिक प्रणाली बेढंगी है और बहुत कम लोगों ने इसे अपनाया है।" बजट में पूंजीगत निवेश और ढांचागत निवेश को प्रोत्साहन दिए जाने की संभावना से सहमति जताने के साथ ही चिदंबरम ने कहा कि उत्पादक क्षेत्रों में पूंजी निवेश के लिए निजी क्षेत्र को तरजीह दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक निवेश को लाभ की स्थिति में पहुंचने में निजी निवेश से कहीं ज्यादा समय लगता है और वह उतना सक्षम भी नहीं होता है। हालांकि उन्होंने कहा कि सरकार निजी निवेश की गति तेज करने के लिए जरूरी उपाय करने में नाकाम रही है।
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