नई दिल्ली/टीम डिजिटल। हाल ही में संजय झा को कांग्रेस पार्टी की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करने के बाद पार्टी से निकाल दिया है। उन्होंने कहा था कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है। पंजाब केसरी/नवोदय टाइम्स से खास बातचीत के दौरान कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा ने कहा कि कांग्रेस में अंदरूनी प्रजातंत्र समाप्त हो गया है। उन्होंने कहा कि अगर नेतृत्व में परिवर्तन और सुधार नहीं किया गया तो जहां है उन राज्यों से भी खत्म हो जाएगी पार्टी।
सवाल: सचिन पायलट का पक्ष लेने के कारण आपको कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया। इस कार्रवाई पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है? जवाब: यह हाईकमान का फैसला था। मुझे आश्चर्य लगा और अफसोस यह हुआ कि मुझसे पूछा भी नहीं गया और बताया भी नहीं गया कि मेरे विरुद्ध नाराजगी का क्या कारण है। जब इतना गंभीर आरोप लगाया जा रहा है कि मैंने पार्टी के विरुद्ध कोई साजिश की है, जो पूरी तरह से बकवास है तो कम-से-कम यह तो बताया ही जाना चाहिए कि मैंने कहां पर साजिश की है। यदि कोई गलती है तो मुझसे पूछा तो जाना ही चाहिए और जवाब देने का मौका भी देना चाहिए। इस तरह की तानाशाही गलत है और मामले को अदालत तक ले जाने के लिए तैयार हूं। यदि पार्टी का सदस्य, कार्यकर्ता, सिपाही कोई सुधार या परिवर्तन संबंधी सुझाव, सलाह देता है तो क्या यह पार्टी का विरोध हो गया।
सवाल: आपने सचिन पायलट को राजस्थान का सीएम बनाने की वकालत की थी। वह बागी हो गए हैं। मामला अदालत में भी है, आपको क्या लगता है, सचिन के साथ कांग्रेस पार्टी अन्याय कर रही है? जवाब: बिल्कुल, राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत का प्रमुख श्रेय सचिन पायलट को जाता है। हां, अशोक गहलोत पुराने नेता हैं, उनका भी सहयोग रहा। सचिन की मेहनत के बाद कांग्रेस ने उनको मौका नहीं दिया, उसी गलत निर्णय का नतीजा ही तो हैं आज की परिस्थितियां। कितनी बड़ी बात है कि राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत कहते हैं कि उन्होंने डेढ़ साल तक सचिन पायलट से बात नहीं की थी। कांग्रेस ने जिस तरह इस मामले को लिया है, उससे लगता है कि पार्टी के भीतर अब सरकार बनाने की भूख ही नहीं है।
सवाल: सचिन सचिन को मौका नहीं दिया गया, क्या इसी कारण इतना सब बवाल हो गया? जवाब: अगर किसी को कोई पद देने का आश्वासन दिया जाए और बाद में उसे तोड़ दिया जाए यह कहकर कि मैं खुद पद पर नहीं तो वादा कैसे पूरा कर सकता हूं। ऐसे में किसी को भी लगेगा कि उसके साथ विश्वासघात किया गया है। यही नहीं, जो व्यक्ति पद पर है वह परेशान करे और पंख काटने की कोशिश करे, साजिश करे तो ऐसे माहौल में कोई सांस कैसे ले सकता है।
सवाल: ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन की और सचिन को लेकर भी चर्चा चल ही रही है, इस दल-बदल को आप किस तरह से देखते हैं? जवाब: जिन नेताओं में क्षमता है वह जिम्मेदारी क्यों नहीं मांगें। कांग्रेस के लोग आरोप लगाते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना में हार गए तो इस तरह तो राहुल गांधी भी अमेठी से हार गए। सच्चाई का सामना करना जरूरी है। मैं तो यह कहता हंू कि ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना से इसीलिए हार गए क्योंकि उनको पार्टी ने पश्चिमी उप्र के लिए लगा दिया था। उनको अपने क्षेत्र में प्रचार का वक्त तक नहीं मिला। बड़ी बात यह है कि जो भी नेता अच्छे हैं और अगर किसी से भी पूछा जाता था तो लोग यही कहते थे कि सचिन और ज्योतिरादित्य कांग्रेस के भविष्य हैं। एक तो भाजपा में चले गए और दूसरे बागी हो गए हैं। अगर पार्टी में लोग उनसे बात नहीं करेंगे तो क्या होगा? एक तरह से हौसला बढ़ाने का काम, उमंग, यह सब कांग्रेस पार्टी में अब नहीं बचा। यह तभी आएगा जब नेतृत्व में परिवर्तन होगा।
सवाल: कांग्रेस के समर्थ नेता अलग हो रहे हैं। पार्टी किस दिशा में जा रही है? जवाब: पार्टी में सुधार, परिवर्तन बहुत जरूरी हो गया है। एक चीज साफ हो गई है कि जिस तरह से तमाम आरोप लगने के बाद कांग्रेस की सरकार के खिलाफ अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल ने आंदोलन शुरू किया था, उसी समय से पार्टी की पराजय शुरू हो गई थी। पार्टी वैसी ही होती है जैसा कि उसका नेतृत्व। कार्पोरेट सेक्टर में कहा जाता है कि ‘...कंपनी बिकम्स लाइक ए सीईओ’। यदि आपको आक्रामक बनना है तो आपको आक्रामक नेतृत्व चाहिए। हार के बाद जब राहुल गांधी ने जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और कहा कि वंशवाद का आरोप नहीं लगना चाहिए और किसी नए व्यक्ति को मौका दिया जाना चाहिए। तो उस समय कांग्रेस वर्किंग कमेटी की जिम्मेदारी थी कि वह इस पर काम करते, लेकिन एक साल हो गया इस पर काम नहीं किया गया। मैं समझता हूं कि राहुल गांधी को भी थोड़ा दबाव डालना चाहिए था। जनता सोच रही है कि मोदी सरकार जहां-जहां विफल है, उसको लेकर कोई मजबूत विरोधी दल चुनौती दे, लेकिन कांग्रेस तैयार ही नहीं है। हम अपना काम खुद खराब कर रहे हैं।
सवाल: आम आदमी पार्टी देश में कांग्रेस का विकल्प बनने की ओर बढ़ रही है। उसका अभियान भी इसी तरफ चल रहा है, आप इसको लेकर क्या कहेंगे? जवाब: राजनीति में सभी लोगों में आपसी प्रतिद्वंद्विता तो होती ही है। आम आदमी पार्टी को किस तरह से रोका जा सकता है। आज तो देश के सभी दल देख रहे हैं कि कांग्रेस खुद को कमजोर करती जा रही है। कांग्रेस में कोई लडऩे को तैयार ही नहीं है, ऐसे में आम आदमी पार्टी को तो मौका मिलेगा ही कि जहां भी कांग्रेस कमजोर हो वह खुद को मजबूत कर ले। मैं तो समझता हूं कि देश में जितने भी कांग्रेस के विरोधी दल हैं उनके लिए हमने दरवाजा ही नहीं खिड़कियां भी खोल दी हैं और कह दिया है कि जो भी ले जाना है आकर ले जाओ।
सवाल: आप कांग्रेस पार्टी को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं, आपको क्या लगता है इसके पीछे गलती किसकी है? जवाब: एक बात सच है कि कांग्रेस पार्टी को कोई नजरंदाज नहीं कर सकता। यह बहुत महान राजनीतिक दल है, यहां पर बेहतरीन लोग हैं। उनमें क्षमता और हुनर है, वे नई नीतियां बनाकर देश बदल सकते हैं। अरे कांग्रेस ने देश बनाया है, लेकिन पार्टी के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए कुछ करना तो होगा। जनता का जब पार्टी पर विश्वास है तो कुछ करना चाहिए। कांग्रेस समर्थक इस बात से परेशान हैं कि अच्छी पार्टी कमजोर होती जा रही है। पार्टी में सुधार और बदलाव नहीं हुआ तो लोग विकल्प तलाशेंगे और दूसरी पार्टी की तरफ जाएंगे। यदि ऐसा नहीं हुआ तो जिस तरह से उप्र, वेस्ट बंगाल, ओडिशा में पार्टी खत्म हो गई, उसी तरह से अन्य राज्य जहां आज भी विश्वास कायम है वहां से भी पार्टी खत्म हो जाएगी।
सवाल: जिस तरह की परिस्थितियां आज के समय में हैं, कांग्रेस पार्टी को किस स्थिति में देख रहे हैं आप? जवाब: कांग्रेस पार्टी भारतीय संविधान के सभी सिद्धांतों का पालन करती है। समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाली पार्टी रही है कांगे्रेस। यह पार्टी के इतिहास में लिखा है। लेकिन, आज भाजपा के सामने कांग्रेस खुद को इतना कमजोर पा रही है लगता है कि उसके भीतर लडऩे की इच्छाशक्ति ही नहीं है। चुनाव पर चुनाव हार रहे हैं। किसी ने सलाह दी तो उसे हटा दिया गया। अरे यह पार्टी तो वह पार्टी है जिसमें फिरोज गांधी कांग्रेस के सांसद, उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू यानी अपने ससुर की सरकार को चुनौती दी थी कि आपके वित्त मंत्री भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। उन्होंने संसद में अपनी ही सरकार और अपनी ही पार्टी के विरुद्ध भाषण दिया। जिसके बाद नेहरू की सरकार में वित्त मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा था। यह सब हुआ और किसी ने कुछ नहीं कहा था। लेकिन, आज स्थिति कितनी बदल गई है, कांग्रेस में अंदरूनी प्रजातंत्र बचा ही नहीं है। पार्टी अपने हित में ही काम नहीं कर रही है, इसीलिए कार्यकर्ता मायूस, निराश व हताश हैं।
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