Thursday, Jun 01, 2023
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पुण्यतिथिः ले. बॉब को मौत के घाट उतार मंगल पांडेय ने जलाई आजादी की पहली चिंगारी

  • Updated on 4/8/2019

नई दिल्ली/प्रतिभा गौड़। भारत को स्वतंत्रता दिलवाने में ऐसे बहुत से महानायकों का नाम दर्ज है, जिनके शौर्य की गाथा आज भी बच्चे- बच्चे की जुबान पर रहती है। देश में स्वतंत्रता की चिंगारी जलाने वाले एक ऐसे ही महानायक को 8 अप्रैल को आज ही के दिन अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर चढ़ा दिया था।

हम बात कर रहें हैं देश की आजादी में मुख्य किरदार निभाने वाले शहीद मंगल पांडेय की। मंगल पांडेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के नगवां गांव में हुआ था। मंगल पांडे बचपन से ही सेना में भर्ती होना चाहते थे। 22 साल की उम्र में ही वह अंग्रेजी सेना में भर्ती हो गए। अंग्रेजी सेना भारतीय नागरिकों और सैनिकों पर अन्याय और ज्यादतियां करती थी, जिसे देखकर उनके मन में अंग्रेजी सेना के खिलाफ गुस्सा पैदा होने लगा।

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इसी दौरान मंगल पांडेय की जिंदगी में एक ऐसी घटना घटी जिसके बाद उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़ दी थी। ये घटना थी 'एनफील्ड पी.53' राइफल की। दरअसल, इस राइफल में जानवरों की चर्बी से बने एक खास तरह के कारतूस का इस्तेमाल होता था, जिसे राइफल में डालने से पहले मुंह से छीलना पड़ता था।

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ छेड़ा था विद्रोह

अंग्रेज कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल करते थे। मंगल पांडेय को जैसे ही इस बात का पता लगा उन्होंने अंग्रेज अधिकारियों के सामने आपत्ति दर्ज कराई, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई। इसके बाद मंगल पांडेय ने भारतीय सैनिकों को इसकी खबर दी और उन्हें विद्रोह के लिए तैयार किया।

अंग्रेज सैन्य अधिकारी ह्यूसन और लेफ्टिनेन्ट बॉब को मंगल पांडेय ने इसी विरोध के चलते मौत के घाट उतार दिया था। इस काम में उनके साथी ईश्वरी प्रसाद ने उनका साथ दिया। जिसके लिए मंगल पांडेय और ईश्वरी प्रसाद दोनों को ही अंग्रेजी सरकार ने बंदी बना लिया था। दोनों देशभक्तों की गिरफ्तारी के बाद अंग्रेजी सेना में बगावत की जंग छिड़ गई, जिसकी उम्मीद अंग्रेजी सरकार को बिल्कुल भी नहीं थी।

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इस घटना के बाद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी आम नागरिक तक पहुंच गई थी और मंगल पांडेय ने भारत के लोगों के दिल में आजादी पाने का अंकुर बो दिया था। बता दें कि इसे भारतीय इतिहास में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई माना जाता है। इस घटना को ‘1857 का गदर’ नाम दिया गया, जिसने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी।

मंगल पांडेय ने एक ऐसे विद्रोह को जन्म दिया था, जो जंगल में आग की तरह सम्पूर्ण देश में भी फैल गई थी। यह भले ही भारत की स्वाधीनता का प्रथम संग्राम न रहा हो, पर यही से देश को स्वतंत्रता दिलाने की क्रांति की शुरुआत हो गई थी जो निरंतर आगे बढ़ती रही और आखिरकार अंग्रेजों को देश छोड़कर जाना पड़ा।

6 अप्रैल 1857 को सुनाई गई फांसी की सजा

अंग्रेजी हुकुमत ने मंगल पांडे को गद्दार घोषित कर दिया। लेकिन तब तक मंगल पांडेय प्रत्येक भारतीय के लिए महानायक बन चुके थे। अंग्रेजी सरकार ने कार्यवाही करते हुए उनपर कोर्ट मार्शल का मुकदमा चलाया और 6 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई। अंग्रेजी सरकार में मंगल पांडेय को लेकर इतना डर था कि उन्हें तय समय से 10 दिन पहले 8 अप्रैल को फांसी पर चढ़ा दिया गया था।

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गौरतलब है कि उनकी फांसी के एक महीने बाद 10 मई 1857 को मेरठ की सैनिक छावनी में बगावत हो गई जिसने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को जन्म दिया। देखते ही देखते ये विद्रोह पूरे उत्तर भारत में फैल गया था और अंग्रेजों ने इस विद्रोह को उसी समय दबा दिया था। समय के साथ ये विद्रोह तो दब गया लेकिन वो भारतीयों के अंदर भरी नफरत को नहीं दबा पाए। इसी नफरत और विद्रोह ने देश को स्वतंत्रता दिलाई।

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