नई दिल्ली/ शेषमणि शुक्ल। भारतीय संविधान में बराबरी का अधिकार मिलने के बाद भी सामाजिक ताने बाने में महिलाओं के प्रति लोगों का नजरिया थोड़ा संकुचित ही रहा। लेकिन शिक्षा के विस्तार के साथ अब जब लोगों की सोच बदल रही है तो लड़कियां चूल्हे-चौके से बाहर निकल कर शिक्षा, खेल, व्यवसाय, उद्योग से लेकर सेना तक में अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं। सेना में आज कई अहम पदों पर महिला अफसर हैं।कोई स्पेशल फोर्सेस की पैरा ट्रूपर है तो कोई यूनाइटेड नेशन (यूएन) के शांति मिशन में शामिल होकर देश और सेना का नाम रौशन कर रही हैं। स्पेशल फोर्सेस की पहली महिला अधिकारी कैप्टन दीक्षा देहरादून के क्लेमेनटाउन स्थित सेना के अस्पताल में कार्यरत कैप्टन दीक्षा भारतीय सेना के स्पेशल फोर्स की पहली महिला अधिकारी हैं। 2022 में पैरा ट्रूपर के कठिन प्रशिक्षण को पूरा करने के बाद अब वे स्पेशल फोर्स का हिस्सा हैं। वे ऐसी जगहों पर सैनिकों का इलाज करने के लिए प्रशिक्षित की गई हैं, जहां से घायल को शिविर तक या आर्मी अस्पतालों तक लाना कठिन होता है।बेहद चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में उन्हें सैनिकों का इलाज करने के लिए पैराशूट से उतरना होता है। वे आज महिलाओं के लिए एक प्रेरक हैं। पारिवारिक पृष्ठभूमि में कोई सेना में न होते हुए भी दीक्षा ने भारतीय सेना को चुना। कैप्टन दीक्षा के मुताबिक एनसीसी कैडेट रहते हुए ही उन्हें सेना के प्रति आकर्षण हो गया था। मूल रूप से कर्नाटक की रहने वाली कैप्टन दीक्षा के पिता और भाई सिविल इंजीनियर हैं। उनके पास भी ऐसे तमाम विकल्प थे, लेकिन देश सेवा के लिए सेना में जाना ही उन्होंने अपना ध्येय बनाया। कैप्टन दीक्षा स्कूलिंग के दौरान एनसीसी कैडेट और एथलीट रहीं। एमबीबीएस करने के बाद सेना में मेडिकल अफसर बनीं। वे देहरादून के अलावा जोशीमठ, जम्मू-कश्मीर में भी ड्यूटी देती हैं। हाल में तुर्की गई सेना की मेडिकल टुकड़ी, 60 पैरा हास्पिटल उनकी पैरेंटल यूनिट है।
सूडान के यूएन मिशन में अकेली महिला अफसर मेजर शैली म्हारी छोरियां किसी छोरे से कम है के...हरियाणा में कही जाने वाली इस बात को मेजर शैली गहलौत ने पूरी तरह साबित कर दिखाया। मेजर शैली इन दिनों भारतीय सेना की ओर से यूनाइटेड नेशन (यूएन) के शांति मिशन के तहत सूडान और दक्षिणी सूडान के अबेय देश में ड्यूटी दे रही है। वह इस मिशन में अकेली भारतीय महिला अधिकारी हैं तमाम दिक्कतों के बीच वे चुनौतियों का सामना करते हुए मिशन को पूरा करने में लगी हैं।वे अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी का सेना में प्रतिनिधित्व कर रही हैं।मां, संस्कृत की लेक्चरर हैं, लेकिन इनके दादा भारतीय सेना की ओर से 1962 के भारत-चीन यूद्ध में रहे। पिता सेना में इंजीनियर रहे और कर्नल के पद से रिटायर हुए अब मेजर शैली मेडिकल ऑफिसर के तौर पर सेना में सेवाएं दे रही हैं। 2022 में डोकलाम में भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प के वक्त शैली 317 फील्ड अस्पताल में तैनात थीं। उस दुर्गम इलाके में उन्होंने मौके पर पहुंच कर घायल सैनिकों को इलाज मुहैया करवाया था। सेना की पृष्ठभूमि में पली-बढ़ी शैली की पढ़ाई भी सैनिक कान्वेंट पब्लिक स्कूल से हुई। बास्केटबाल, टेनिस और स्वीमिंग के साथ मेजर शैली पढ़ाई में भी अव्वल रहीं। जयपुर से एमबीबीएस करने के बाद एम्स में पीजी का एंट्रेंस एक्जाम पास किया, लेकिन उसी दौरान उनका सेलेक्शन भारतीय सेना में मेडिकल ऑफिसर के तौर हो गया।
सेना के संचार को संभाल रहीं मेजर भावना पंजाब की रहने वाली मेजर भावना सियाल लद्दाख के कारू जैसे दुर्गम क्षेत्र में भारतीय सेना के कोर ऑफ सिग्नल की संचार व्यवस्था को संभाल रही हैं। सेना में परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं नाना, दादा के बाद पिता भी कर्नल के पद से रिटायर हुए हैं। भाई भी मर्चेंट नेवी में है।10 साल की सेवा के बाद बीते साल भावना को सेना में परमानेंट कमीशन मिला।उनका कहना है कि बचपन में पिता की वर्दी और उनके कंधे पर लगे ब्रास उन्हें सेना की ओर से आकर्षित करते थे। घर में सैन्य माहौल में पली-बढ़ी, इसलिए पढ़ाई पूरी करने के बाद सेना को चुना।
उनका कहना है कि सेना में अब बड़ी संख्या में महिलाएं आ रही हैं। उनकी अपनी यूनिट में वे दो महिला अधिकारी हैं। जबकि लद्दाख क्षेत्र में ही सेना की अलग-अलग यूनिटों में बड़ी संख्या में महिला अधिकारी तैनात हैं।अपनी पहली पोस्टिंग को याद करते हुए मेजर भावना बताती हैं कि वे राजौरी में थीं, जहां आतंकी गतिविधियां चरम पर थी। उस दौरान वहां सेना के संचार व्यवस्था को संभालने का जिम्मा उन्हें मिला था।बाद में दिल्ली में आर्मी मुख्यालय में भी रहीं और कुछ साल के लिए यूनाइटेड नेशन (यूएन) मिशन का भी हिस्सा रहीं।
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