Monday, Dec 04, 2023
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from the peaceful valleys of doon to the political battle in bihar, ''''thakur''''s well''''

दून की शांत वादियों से बिहार में सियासी संग्राम तक ‘ठाकुर का कुंआ’

  • Updated on 10/2/2023
देहरादून (जितेंद्र अंथवाल)। संसद से लेकर सड़क और सोशल मीडिया तक इन दिनों ‘ठाकुर का कुंआ’ हंगामा बरपाए हुए है। आरजेडी के राज्यसभा सदस्य मनोज झा ने यह कविता हाल ही में संसद में महिला आरक्षण बिल पर चर्चा के दौरान सुनाई थी। झा बिहार से आते हैं। लिहाजा, बिहार में इस पर राजनीति ज्यादा गर्म है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। सोशल मीडिया में भी पक्ष-विपक्ष में खूब लिखा जा रहा है।
प्रख्यात साहित्यकार स्व. ओमप्रकाश वाल्मीकि ने 37 साल पहले देहरादून में लिखी थी ‘ठाकुर का कुंआ’ 
जिस ‘ठाकुर का कुंआ’ ने आज हंगामा खड़ा किया हुआ है, उसका सृजन 37 साल पहले 1986 में बेहद शांत शहर देहरादून में हुआ था। प्रख्यात साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की कलम से निकली इस कविता का पहले-पहल प्रकाशन भी यहीं हुआ था। ओमप्रकाश वाल्मीकि का जन्म 30 जून 1950 को हालांकि, मुजफ्फरनगर के बरला गांव में हुआ था। मगर, इंटरमीडिएट तक और उससे आगे उनके जीवन का अधिकांश हिस्सा देहरादून में व्यतीत हुआ। सरकारी सेवा में होने के कारण कुछ साल वे जबलपुर और महाराष्ट्र के चंद्रपुर में भी रहे। लेकिन, 1986 से साल-2013 में अपने मृत्यु तक वे देहरादून के रायपुर क्षेत्र में ही रहे। वे यहां रायपुर स्थित ऑर्डिनेंस फैक्टरी में अधिकारी थे। उनके कई कहानी और कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं। इनमें सबसे ज्यादा सुर्खियां 1990 के दशक में आई उनकी आत्मकथा ‘जूठन’ ने बटोरी।  

पहले-पहल 1986 में स्थानीय अखबार में छपी थी ‘ठाकुर का कुंआ’
ओमप्रकाश वाल्मीकि की पहली पुस्तक ‘सदियों का संताप’ के प्रकाशन में अहम भूमिका निभाने वाले साहित्यकार विजय गौड़ बताते हैं कि ‘ठाकुर का कुंआ’ नवंबर-1986 में पहली बार देहरादून के एक स्थानीय दुभाषी अखबार ‘वैनगार्ड’ में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद जब 1989 में उनके ‘फिलहाल प्रकाशन’ से पुस्तक रूप में ओमप्रकाश वाल्मीकि की कुछेक रचनाएं ‘सदियों का संताप’ में प्रकाशित हुईं, तो इसमें ‘ठाकुर का कुंआ’ प्रमुख थी। गौड़ ने मीडिया रिपोर्ट्स में ‘ठाकुर का कुंआ’ वर्ष-1981 में लिखे जाने को खारिज करते हुए बताया कि वाल्मीकि ने 1986 में ही इस कविता को लिखा था। इसका शीर्षक ‘ठाकुर का कुंआ’ वाल्मीकि के मित्र व कवि स्व. अवधेश ने सुझाया था।

कहानीकार के तौर पर ‘पंजाब केसरी’ से मिली शुरूआती पहचान

विजय गौड़ बताते हैं कि ओमप्रकाश वाल्मीकि को बतौर लेखक शुरूआती पहचान पंजाब केसरी के साप्ताहिक ‘कहानी’ संस्करण से मिली। हर हफ्ते प्रकाशित होने वाले इस पेज में देशभर के लेखकों की कहानियां छपती थीं। इन्हीं में उनकी आरंभिक कहानियां भी छपीं। बकौल भट्ट, उनके कहानी लेखन के नियमित प्रकाशन की औपचारिक शुरूआत 1987 में पंजाब केसरी से ही हुई थी। वह बताते हैं कि पंजाब केसरी के साहित्यिक पेज पर वाल्मीकि की कहानी ‘सूअर का बच्चा’ भी प्रकाशित हुई थी, जो काफी चर्चित रही। यह कहानी अब तक किसी संकलन में प्रकाशित नहीं हुई। वाल्मीकि के करीबी रहे वरिष्ठ साहित्यकार मदन शर्मा बताते हैं कि ओमप्रकाश की पहली कहानी जरूर सरिता में छपी थी, लेकिन उन्हें पहचान पंजाब केसरी के साहित्य पेज से मिली, जहां शुरूआती दौर में उनकी कई कहानियां प्रकाशित हुईं।

 

‘ठाकुर का कुंआ’-

 
चूल्‍हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का।

भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का।

बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की।

कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्‍ले ठाकुर के
फिर अपना क्‍या?
 
 
 
 
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