नई दिल्ली/टीम डिजिटल। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) अहिंसा के पुजारी थे। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में अहिंसा का पाठ पढ़ा और पढ़ाया। जब बंटवारा हुआ तब देश में हिंसा भड़की और उन दिनों ऐसे हालातों के खिलाफ संघर्ष के दिन गांधी जी ने दिल्ली में गुजारे।
बताया जाता है कि अपनी जिंदगी के आखिरी 144 दिन उन्होंने दिल्ली के बिड़ला हाउस, दिल्ली में ही गुजारे। यही वो जगह थी जहां 30 जनवरी के दिन उनकी हत्या कर दी गई थी। इस जगह को गांधी स्मृति-5, तीस जनवरी लेन के नाम से जाना जाता है।
कोलकाता से पहुंचे दिल्ली बताया जाता है कि 9 सितंबर 1947 को महात्मा गांधी कोलकाता से दिल्ली आए थे। यह उनकी अंतिम रेल यात्रा थी। यहां उन्हें तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल गांधी शाहदरा रेलवे स्टेशन पर लेने आए थे और उन्होंने तभी गांधी जी को दिल्ली की स्थिति से अवगत करा दिया था। तभी उन्होंने बता दिया कि अब वाल्मिकी बस्ती में ठहरना नहीं हो सकेगा। तब तय किया गया कि गांधी जी बिड़ला हाउस में ठहरेंगे। इतिहासकरों के अनुसार, गांधी जी बस्ती में 1 अप्रैल 1946 से 10 जून, 1947 तक रहे थे।
हिंसा से विचलित हुए गांधी अब गांधी जी दिल्ली में थे और उन्होंने यहां हिंसा के निशान देखे और रोज दिल्ली के दुःख को देखा और विचलित होते रहे। उन्होंने लोगों से दुखगाथा सुनी। उन्हें दुःख हुआ कि उन्हें इस बारे में जानकारी देर से मिली। उस वक़्त और उन्हें सदमा लगा जब उन्हें साथी डॉ एम ए अंसारी के दरियागंज स्थित घर पर हमला हुआ।
इस तरह की लगातार हो रही हिंसा के बाद परेशान हुए गांधी जी ने 13 जनवरी को 1948 से अनिश्चितकालीन उपवास शुरू कर दिया। उन्होंने इसकी घोषणा 12 जनवरी की शाम प्रार्थना सभा के दौरान की। उस समय उनका मौन व्रत था इसलिए उन्होंने इस बारे में लिख कर बताया था।
शुरू हुआ उपवास... उन्होंने लिखते हुए बताया था कि वो अनिश्चितकालीन उपवास रख रहे हैं। जिसमें नमक या खट्टे नींबू के साथ या इन चीजों के बगैर पानी पीने की छूट रखी गई थी। उन्होंने लिखा था कि यह उपवास तब टूटेगा जब मुझे यकीं हो जाएगा कि सभी कौम के दिल मिल गए हैं। इसके बाद, 13 जनवरी 1948 की सुबह साढ़े दस बजे से गांधी जी ने अपना उपवास शुरू किया। इस दौरान कई बड़े नेता और उन्हें करीबी उपस्थित रहे।
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ऐसे हुए उपवास खत्म महात्मा गांधी के इस उपवास का पूरी दिल्ली पर सकारात्मक असर पड़ा। लोग गांधी जी के समर्थन में आने लगे, लगातार सभाएं होने लगीं। 15 जनवरी 1948 को करोल बाग में एक सार्वजनिक सभा आयोजित की गई थी, जिसमें स्थानीय निवासियों ने घर घर जाकर अमन एवं भाईचारे के लिए अभियान चलाने की मुहीम छेड़ी। इसके बाद 18 जनवरी को विभिन्न संगठनों के 100 से अधिक प्रतिनिधि महात्मा गांधी से मिले और उन्होंने शांति शपथ प्रस्तुत किया। इसके बाद ही गांधी जी ने अपना उपवास तोड़ दिया।
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