Thursday, Nov 30, 2023
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एवरेस्ट पर्वताराेहियों की भारी तादाद से बिगड़ने लगा है हिमालय का पर्यावरण

  • Updated on 7/24/2018

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करना बड़े-बड़े पर्वतारोहियों का सपना होता है। बेहद ही जोखिम भरे इस अभियान को फतह करने हर साल कई पर्वतारोहियों की टीम नेपाल आती है। लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह है कि इतनी बड़ी संख्या में पर्वतारोहियों के आने से एवरेस्ट की पारिस्थितिकी प्रभावित हो रही है।

23 से भी ज्यादा लोग रोज पहुंच रहे

अन्य वर्षों की तरह इस साल भी हर दिन औसतन 23 से अधिक लोगों ने, और एक महीने में लगभग 700 पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट फतह किया। इतनी अधिक तादाद में पर्वतारोहियों के एवरेस्ट पर पहुंचने से हिमालय की पारिस्थितिकी पर बुरा असर पड़ रहा है और पर्वतारोही वहां कचरा छोड़कर जा रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र का पर्यावरण दूषित हो रहा है।  

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पर्यावरण विशेषज्ञों ने एवरेस्ट पर जाने वाले पर्वतारोहियों की संख्या सीमित करने के साथ इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था एवं इसकी पारिस्थितिकी के बीच संतुलन बनाने की भी हिमायत की है। हालांकि, पर्वतों पर उपयोग किये गए आक्सीजन सिलेंडर, टूटे उपकरण, बचा हुआ भोजन और मानव अपशिष्ट पदार्थ सहित टनों कचरा पर्वतों पर जमा होने के बाद नेपाल सरकार ने दो साल पहले कुछ नियम तय किये थे। 

वर्ष 1953 में एडमंड हिलेरी और तेंजिंग नार्गे पहली बार 8,848 मीटर ऊंची पर्वत चोटी पर पहुंचे थे जिसके बाद से अब तक हजारों लोग वहां पहुंच चुके हैं। प्रमुख पर्वतारोही और वक्ता एलन अर्नेट के अनुसार, पिछले साल मई में एवरेस्ट तक 640 से अधिक लोग पहुंचे थे जबकि इस साल यह संख्या 700 से अधिक रही। एवरेस्ट के लिए पर्वतारोहण का बसंत सत्र मई में होता है जबकि शीत सत्र दो महीने के लिये सितंबर और अक्तूबर में रहता है। 

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पर्वतारोहण नेपाल की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। वर्ष 2011 के एक अध्ययन में ‘नेपाल माउंटेनियरिंग एसोसिएशन’ के पूर्व अध्यक्ष आंग शेरिंग शेरपा ने एक अनुमान करते हुए बताया था कि बसंत सत्र 2011 में माउंट एवरेस्ट पर्वतारोहण दल द्वारा कुल आर्थिक योगदान 64 करोड़ नेपाली रुपये (90 लाख डालर) है।

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