नई दिल्ली/टीम डिजिटल। कोरोना काल में जब हजारों लोग जिंदगी के लिए जंग लड़ रहे हों तब सरकारी वेबसाइट पर डाले गए अस्पतालों के फोन नंबर से कोई जवाब न मिले तो जनता के लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो जाती है। दिल्ली हाईकोर्ट ने अस्पतालों में बेड की उपलब्धता के मामले में सुनावई करते हुए इस समस्या पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की।
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर बिना वेरिफिकेशन के ही अस्पतालों के फोन नंबर डाल दिए गए। दरअसल अदालत मित्र और वकील राजशेखर राव ने न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की बेंच को बताया कि अधिकांश अस्पताल फोन का जवाब नहीं दे रहे हैं। इसके साथ ही अस्पतालों में बेड की उपलब्धता और दी गई सूचना में बड़ा अतंर है।
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बेड की उपबल्धता के बारे में जानकारी नहीं दे रहे अस्पताल राजशेखर राव ने कोर्ट को बताया कि आई अस्पताल में शुक्रवार को 50 बेड खाली थे, लेकिन ये बेड सिर्फ उनके लिए ही थे जो कोरोना से रिकवर हो रहे थे। इसी प्रकार से कई अस्पताल हैं और शायद ही किसी अस्पताल से फोन का जवाब दिया जाता है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि रविवार को डीआरडीओ के अस्पताल को छोड़कर किसी भी अन्य अस्पताल ने बेड के संबंध में जानकारी नहीं दी।
बेड आवंटन की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की मांग कोर्ट ने अस्पतालों में बेड आवंटन की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर दिल्ली सरकार से 21 मई तक जवाब दाखिल करने को कहा है। ये यायिका मंजीत सिंह नाम के शख्स ने दायर की है। उनका आरोप है कि अस्पतालों में मरीज को भर्ती करने के लिए वीआईपी कल्चर चल रहा है।
जिल लोगों की अच्छी पहुंच हैं उन्हीं को बेड दिया जा रहा है। इसके केंद्रीकृत किया जाना चाहिए। इस पर राजशेर राव ने कहा कि इस समय अस्पतालों में ये करना संभव नहीं है लेकिन दिल्ली सरकार जिन नए बेड्स की व्यवस्था कर रही है उनके आवंटन की प्रक्रिया को केंद्रीकृत करने पर विचार किया जा सकता है।
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दिल्ली सरकार ने कहा केंद्र ने नहीं दिए बेड वहीं सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने कहा कि महामराी के इस संकट काल में भी दिल्ली के पास केंद्र सरकार की ओर से बेड नहीं हैं। हमें इसकी जानकारी चाहिए। कोर्ट ने इस पर केंद्र से अस्पतालों में बेड की संख्या की जानकारी देने के साथ मामले की जांच करने को भी कहा। इस केस में अगली सुनवाई गुरुवार को होगी। कोर्ट ने ये भी कहा कि भर्ती और डिस्चार्ज होने वाले मरीजों का डेटा निरंतर अपडेट करना होगा और कोर्ट को भी इसकी जानकारी देनी होगी।
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