Wednesday, Mar 29, 2023
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1971 युद्ध की रणनीति बनाने वाले वो 3 भारतीय ऑफिसर, जिन्हें आज भी बांग्लादेश में मिलता है सम्मान

  • Updated on 12/16/2020

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। साल 1971 में बांग्लादेश आज़ाद हुआ था और इसमें भारतीय सेना का सबसे बड़ा योगदान रहा। ये भारतीय सेना ही थी जो पूर्वी पाकिस्तान में रह रहे लोगों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ खड़ी हुई थी। अगर ऐसा न होता तो शायद बांग्लादेश आज आज़ाद न होता। 

आज भी उस विजय दिवस को याद करते हुए बांग्लादेश में भारतीय सेना के अफसरों को सम्मान दिया जाता है। इन अफसरों में भारतीय सेना के जनरल सैम मानेक शॉ, जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और जनरल जेएफआर जैकब ने बड़ी भूमिका रही थी। इन अफसरों को आज भी बांग्लादेश बड़े ही गौरव के साथ याद करता है। आइए इनके बारे में जानते हैं। 

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सैम मानेक शॉ
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मार्च, 1971 में ही पूर्वी पाकिस्तान में बढ़ते तनाव और भारत में शरणार्थियों की संख्या देखते हुए पाकिस्तान पर चढ़ाई करना चाहती थीं लेकिन थलसेना प्रमुख मानेक शॉ इस पर असहमत थे उन्होंने इसके लिए पीएम गांधी से 6 महीने का समय मांगा था।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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सैम मानेक शॉ देश के पहले फील्ड मार्शल थे। दूसरे विश्व युद्ध के अलावा चीन और पाकिस्तान के साथ हुए तीन युद्धों में भी सैम मानेकशॉ ने हिस्सा लिया था। सैम मानेक शॉ को सम्मानित करते हुए पद्म विभूषण से नवाजा गया था।

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जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा 
बांग्लादेश को आज़ादी दिलवाने वाले भारतीय अफसरों में लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा भी शामिल हैं। उनके बारे में खुद जनरल मानेक शॉ ने कहा था कि 1971 में असल काम जगजीत सिंह अरोड़ा ने किया था। दरअसल, लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने ही पूर्वी पाकिस्तान को आज़ाद कराने के लिए शुरू किए ऑपरेशन का नेतृत्व किया था। उन्होंने सेना को छोटी-छोटी टुकड़ियों में बांटकर पाकिस्तान की सभी महत्पूर्ण पोस्ट पर अलग-अलग रास्तों से कब्जा करने का आदेश दिया। उनकी प्रभावी रणनीति की कारण ही भारतीय सेना कुछ दिनों में ढाका पहुंच गई थी।

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जनरल जेएफआर जैकब
1971 में भारतीय सेना की पूर्वी कमान के चीफ ऑफ स्टाफ मेजर जनरल जैकब को बनाया गया था। जैकब को उनके पराक्रम के लिए बांग्लादेश में कई सम्मानों से नवाज़ा गया। जैकब ने सन् 1971 के युद्ध में 'वॉर ऑफ मूवमेंट' की रणनीति बनाई थी। 16 दिसंबर को लेफ्टिनेंट जनरल जैकब पाकिस्तान से आत्म समर्पण कराने के लिए सरेंडर दस्तावेजों के साथ ढाका की ओर निकल गए।

जैकब ढाका पहुंचे और वहां पाकिस्तानी जनरल एएके नियाज़ी से कहा कि फौज को आत्मसमर्पण का आदेश दें और उन्हें आत्मसमर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर के लिए आधे घंटे का समय दिया गया। जैकब ने यह साफ़ कह दिया था कि दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए गए तो नियाज़ी को परिवार सहित सुरक्षा मिलेगी। इसके बाद जनरल नियाज़ी ने मेजर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे और बांग्लादेश को आज़ादी मिल गई थी।

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