नई दिल्ली/अनामिका सिंह। ऐसा पहली बार नहीं है जब चीन (China) ने भारत (India) की सीमाओं में घुसपैठ की कोशिश की हो। गलवान घाटी (Galwan Valley) से पहले साल 1967 में नाथुला में चीनी सैनिकों ने भारत की कम सेना को देखते हुए घुसपैठ की कोशिश की थी।
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नाथुला में चीन को पहले भी धूल चटा चुका है दिल्ली का वीर चीन के सैनिकों को लगा था कि साल 1962 में हुए चीन-भारत युद्ध के दौरान भारत की परिस्थितियां 1967 में भी वैसी ही होंगी। लेकिन दिल्ली (Delhi) के जाबांज कैप्टन पृथ्वी सिंह डागर की वीरता के आगे चीन को नतमस्तक होना पड़ा था। आज भी नाथुला से लेकर दिल्ली तक उनकी वीरता की कहानियां सुनाई जाती हैं।
कैप्टन पृथ्वी सिंह डागर पर बनी थी 'पलटन' फिल्म मालूम हो कि शहीद कैप्टन पृथ्वी सिंह डागर को मरणोपरांत वीरचक्र से सम्मानित किया गया था। यही नहीं 11 सितंबर 1967 में की चीनी घुसपैठ व कैप्टन डागर की वीरता पर आधारित फिल्म 'पलटन' (Paltan) को निर्माता एवं निर्देशक जेपी दत्ता ने बनाया था।
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50 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार के हुए थे शहीद बता दें कि साल 1967 में चीन जहां कैप्टन डागर की टुकड़ी तैनात थी, वहां चीन ने अपनी गतिविधियां तेज कर दी थीं। उन्हें नाथूला दर्रे पर तार लगाने का काम सौंपा गया। 11 सितंबर 1967 को सुबह साढ़े 4 बजे जब भारतीय सैनिक तार लगाने का काम कर रहे थे तो 5-7 चीनी सैनिक आकर बाधा डालने लगे लेकिन हमारे सैनिकों ने काम जारी रखा। कुछ देर बाद ही चीनी सेना ने मशीन गनों व तोपों के साथ भारतीय सेना पर हमला बोल दिया। कैप्टन डागर को इस दौरान कंधे में गोली लगी, खुला स्थान होने की वजह से बचना मुश्किल था इसलिए मशीन गनों को नष्ट करने का निर्णय उन्होंने लिया। अपनी टुकड़ी के सैनिकों के साथ उन्होंने चीनी सेना पर हमला बोल दिया और करीब 50 चीनी सैनिकों को खुद मौत के घाट उतार दिया, इस दौरान वो खुद भी शहीद हो गए। इस युद्ध में भारत के मुट्ठी भर सैनिकों ने 300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था। आज भी नाथुला दर्रे में डागर द्वार है जहां उनकी फोटो लगाई गई है।
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कैप्टन डागर की याद में बना म्यूजियम नजफगढ के मलिकपुर निवासी शहीद कैप्टन पृथ्वी सिंह डागर के भतीजे कुलदीप डागर ने बताया कि उनकी याद में परिवार ने मिलकर जाफरपुर कलां में एक म्यूजियम भी बनाया है जहां नाथुला दर्रा लड़ाई और उनके जीवन से जुडी तमाम जानकारी व ड्रेस रखी गई है। आज भी जाफरपुर के रावता मोड पर उनकी मूर्ति के सामने हर साल 11 सितंबर को उनके परिवार व ग्रामीणों द्वारा शहीदी दिवस मनाया जाता है, जहां उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर 14 ग्रेनेडियर के जवान देते हैं।
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