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राष्ट्रीय ध्वज में चक्र रखने का वीर सावरकर ने ही दिया था सुझाव, जानें और अनसुने किस्से

  • Updated on 5/28/2020

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। विनायक दामोदार सावरकर का नाम जहन में आते ही लोगों के वो किस्से याद आ जाते हैं। जिसमें लोग अपने-अपने तरीके से सावरकर को परिभाषित करते हैं। विनायक सावरकर का नाम हमेशा से ही विवादों के लिए उपयोग किया जाता रहा है। सावरकर विरोधी सोच उनपर अंग्रेज हुकूमत की चाटुकारिता का आरोप लगाते हैं। सावरकर को यह कहकर घेरा जाता है कि वो जेल में जाने के बाद अंग्रेजों के सामने रिहाई के लिए नाक रगड़े थे।

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जीवन से जुड़ी अहम बातें
महाराष्ट्र के नासिक में जन्मे सावरकर से जुड़े कई अहम बातें आपके सामने पेश किए जाते हैं। बहुत कम लोगों को पता होगा कि तिरंगे में चक्र लगाने का प्रथम सुझाव सावरकर ने ही दिया था। दो-दो बार उम्र कैद की सजा पाने वाले सावरकर के 130वें जयंती पर उनसे जुड़े कुछ अनसुने किस्से बताएंगें:-

निजी जीवन 

- सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक में हुआ था।

- उन्होंने शुरूआती शिक्षा नासिक स्थित शिवाजी स्कूल में ग्रहण की।

- तीन भाई और एक बहन सहित सावरकर 9 साल की उम्र में अनाथ हो गए, उनके मां-पिता का स्वर्गवास हो गया।

- सावरकर ने महज 11 साल की उम्र में वानर सेना बनाई थी।

- साल 1901 मार्च में उनका विवाह ̔यमुनाबाई से हुआ।

-  विनायक सावरकर बाल गंगाधर तिलक को अपना गुरू मानते थे, तभी तो प्रति वर्ष तिलक द्वारा शुरू किए गए शिवाजी उत्सव और गणेश उत्सव का आयोजन किया करते थे।

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अंग्रेजों के खिलाफ गतिविधियां

- ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिलाने वाले क्रांतिकारियों में अकेला ऐसा सेनानी जिसने सर्वप्रथम विदेशी कपड़ों की होली जलाई।

- सावरकर पहली बार स्वदेशी आंदोलन से तब जुड़े जब वो पुणे में अभिनव भारत सोसाइटी का गठन किए।

- तिलक के स्वराज आंदोलन से जुड़ने के बाद सावरकर की खूबियां लोगों के सामने आने लगी। जिससे बेचैन होकर अंग्रेज सरकार ने उनकी स्नातक की डिग्री छीन ली।

- साल 1906 में बैरिस्टर बनने के लिए वो इंग्लैंड चले गए। वहां उन्होंने भारतीय छात्रों की सहयोग से आजाद भारत सोसाइटी का गठन किया और हथियारों के लिए युवाओं को प्रेरित।

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काली पानी की सजा 

1909 में सावरकर के सहयोगी मदनलाल धिंगरा, ने सर विएली को गोली मार दी। इसके बाद उन्हें कैद कर लिया गया।

- सावरकर पर इस आरोप के बाद उन्हें 50 साल की सजा सुनाकर अंडमान के सेलुलर जेल भेज दिया गया। यहां उन्हें अमावनीय यातनाएं दी गई।

गांधीजी की हत्या और जेल

- सावरकर ने पाकिस्तान निर्माण का विराध करते हुए गांधीजी से ऐसा अनर्थ न करवाने की अपील की गई।

- गांधी जी की हत्या के आरोप में सावरकर के तार भी जुड़ते चले गए। हालांकि बाद में साक्ष्यों के अभाव में उन्हें रिहा कर दिया गया।

- 1 फरवरी 1966 को उन्होंने मृत्यु पर्यन्त उपवास का निर्णय लिया

- 26 फरवरी 1966 को वो स्वर्गवास हो गए।

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