नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने वर्ष 2020 में हाथरस कांड मामले में षड्यंत्र के आरोप में अवैध गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार पत्रकार सिद्दीक कप्पन की जमानत याचिका बृहस्पतिवार को नामंजूर कर दी। न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की एक एकल पीठ ने जमानत याचिका खारिज करने का आदेश बृहस्पतिवार को पारित किया। अदालत ने इससे पहले मामले की सुनवाई करते हुए पिछली दो अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि पत्रकार और उनके साथियों द्वारा काली कमाई के उपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
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अदालत ने कहा, 'इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों, अपराध की प्रकृति, साक्ष्यों और आरोपी के सहापराध पर विचार करते हुए इस मामले के गुण दोष पर बगैर कोई टिप्पणी के यह अदालत याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने की इच्छुक नहीं है।’’ अदालत ने कहा, च्च्इस जमानत याचिका में कोई दम नहीं है इसलिए इसे खारिज किया जाता है। आरोप पत्र और दस्तावेजों पर नजर डालने पर प्रथम ²ष्टया प्रकट होता है कि आवेदक ने अपराध किया है।’’
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अभियोजन पक्ष की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने पाया कि कप्पन का हाथरस में कोई काम नहीं था। सरकारी तंत्र मीडिया के सभी मंचों पर प्रकाशित की जा रही विभिन्न तरह की सूचना की वजह से वहां मौजूद तनाव को लेकर परेशान था। कप्पन की जमानत याचिका को मथुरा की एक अदालत ने नामंजूर कर दिया था। उसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
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मलयाली समाचार पोर्टल ‘अझीमुखम’ के संवाददाता और केरल यूनियन ऑफ र्विकंग जर्नलिस्ट््स की दिल्ली इकाई के सचिव कप्पन को अक्टूबर 2020 में तीन अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था। कप्पन उस वक्त 19 साल की एक दलित लड़की की बलात्कार के बाद अस्पताल में मौत के मामले की रिपोॢटंग करने के लिए हाथरस जा रहे थे। पुलिस का आरोप है कि आरोपी कानून-व्यवस्था खराब करने के लिए हाथरस जा रहा था। उनपर पीएफआई से जुड़े होने का भी आरोप है।
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गौरतलब है कि 14 सितंबर 2020 को हाथरस जिले के एक गांव में चार लोगों ने 19 साल की एक दलित लड़की से बलात्कार किया था। इसके बाद उसे दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी। उसके शव को जिला प्रशासन ने आधी रात में ही कथित रूप से मिट्टी का तेल डालकर जलवा दिया था। लड़की के परिजनों ने आरोप लगाया था कि जिला प्रशासन ने उनकी मर्जी के बगैर उसका जबरन अंतिम संस्कार करा दिया।
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