नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने कहा है कि न्यायपालिका को संविधान की व्याख्या करने देना चाहिए और इसकी स्वतंत्रता महज एक कानूनी सिद्धांत नहीं, बल्कि एक जीवंत लोकतंत्र का मूलभूत आधार है। न्यायमूर्ति कोहली ने कहा, ‘‘यह जरूरी है कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूती देने के लिए समानांतर स्तर पर और एक-दूसरे से दूरी रखते हुए काम करें, साथ मिलकर नहीं।''
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उन्होंने कहा, ‘‘यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को संरक्षित करेगा और इसकी स्वायत्तता और निष्पक्षता की रक्षा करेगा। संवैधानिक संवाद में न्यायपालिका की भूमिका स्वीकार करना भी उतना ही आवश्यक है क्योंकि यह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए ‘सेफ्टी वाल्व' की तरह काम करता है।''
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वह शनिवार को कोलकाता में भारत चैंबर ऑफ कॉमर्स और इंडियन काउंसिल ऑफ आर्बिट्रेशन के सहयोग से फिक्की द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में "स्वतंत्र न्यायपालिका: एक जीवंत लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण" विषय पर बोल रही थीं। उन्होंने कहा, ‘‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता सिर्फ एक कानूनी सिद्धांत नहीं है, बल्कि एक जीवंत लोकतंत्र का एक बुनियादी स्तंभ है। भारतीय न्यायपालिका ने अपनी स्वतंत्रता और अखंडता को बनाए रखने और अपने संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करने में उल्लेखनीय लचीलापन और दृढ़ संकल्प प्रदर्शित किया है।''
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शीर्ष अदालत की न्यायाधीश ने न्यायिक स्वतंत्रता से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की और कहा कि न्यायपालिका, कानून के शासन को बनाए रखकर और यह सुनिश्चित करके लोकतांत्रिक संस्थानों की स्थिरता और प्रभावकारिता को बढ़ावा देता है कि सरकार अपने दायरे में काम करे।
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उन्होंने कहा, ‘‘न्यायपालिका को संविधान की व्याख्या करने और पूरी तरह से संविधान और कानूनों के आधार पर निर्णय लेने देना चाहिए। यह व्याख्या ही संविधान के लिए एक जीवंत दस्तावेज बने रहने की गारंटी देता है, जो समय के साथ विकसित होता रहता है, जबकि इसकी जड़ें मौलिक मूल्यों और सिद्धांतों में समाई हुई हैं।''
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