नई दिल्ली/टीम डिजिटल। उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसफ ने आज तय कार्यक्रम के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पद की शपथ ली। जोसफ के साथ न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरण और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पद की शपथ दिलाई गई। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने अपने न्यायालय कक्ष में एक साधारण समारोह में तीनों न्यायाधीशों को शपथ दिलाई।
इससे पहले इस बात को लेकर विवाद था कि केंद्र की मोदी सरकार ने पदोन्नति में उनकी वरिष्ठता को कम कर दिया है। हालांकि सरकार ने अपनी ओर से कहा कि उसने पूरी तरह से समय की कसौटी पर खरे उतरे हाई कोर्ट की वरिष्ठता सूची के सिद्धांत का पालन किया।
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यह पिछले शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में 3 न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए जारी अधिसूचना के साथ सामने आया, जिसमें जस्टिस जोसफ का नाम तीसरे स्थान पर था। सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में पदोन्नत 3 न्यायाधीशों - जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस जोसफ- का शपथग्रहण कल केंद्र द्वारा अधिसूचित वरिष्ठता क्रम के मुताबिक होगा।
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कॉलेजियम के सदस्यों समेत जस्टिस एमबी लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसफ और जस्टिस एके सीकरी ने जस्टिस के एम जोसफ की वरिष्ठता के मुद्दे पर अपनी चिंताओं को जाहिर करने के लिए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा से मुलाकात की। बताया जा रहा है कि न्यायाधीशों का मत था कि इस मामले पर साथ बैठकर विचार करने की जरूरत है।
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कोर्ट के सूत्रों ने कहा कि फिलहाल ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता और कुछ न्यायाधीशों द्वारा व्यक्त चिंताओं पर कल 3 न्यायाधीशों के शपथ ग्रहण के बाद चर्चा की जाएगी। अदालत के सूत्रों ने कहा सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम के सदस्य जस्टिस रंजन गोगोई को छोड़कर अन्य ने केंद्र के जस्टिस के एम जोसफ की वरिष्ठता कम करने के फैसले पर ‘‘अनौपचारिक’’ चर्चा की। जस्टिस गोगोई छुट्टी पर हैं।
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हालांकि यह फैसला लिया गया कि शपथ ग्रहण समारोह होना चाहिए। कल का कामकाज शुरू होने से पहले सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश लाउंज में न्यायाधीशों के बीच सुबह हुई चर्चा के बारे में अदालत के सूत्रों ने बताया कि न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘शहथ ग्रहण होने दीजिए। अभी समय नहीं है। शपथ ग्रहण को टाला नहीं जा सकता। यह देखना होगा कि बाद में क्या किया जा सकता है।'
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बता दें कि उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जोसफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य में 2016 में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के आदेश को रद्द कर दिया था। उत्तराखंड में तब कांग्रेस की सरकार थी। कॉलेजियम ने 10 जनवरी को जस्टिस जोसफ का नाम वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मलहोत्रा के साथ उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति के लिए भेजा था।
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हालांकि सरकार ने पुर्निवचार के लिए जस्टिस जोसफ का नाम वापस भेज दिया था जबकि इंदू मल्होत्रा की नियुक्ति को मंजूरी दे दी थी। कॉलेजियम ने 16 मई को उच्चतम न्यायलय में पदोन्नति के लिए फिर से जोसफ के नाम पर जोर दिया और जुलाई में एक बार फिर उनके नाम की सिफारिश की गई जिसे सरकार ने मान लिया।
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