नई दिल्ली/टीम डिजिटल। बाबरी मस्जिद विध्वंस केस में 28 साल बाद सीबीआई की विशेष अदालत ने फैसला सुना दिया। इस फैसले में बीजेपी नेता लालकृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया गया है। इस फैसले को लेकर सुप्रीमकोर्ट और सीबीआई के मत अलग-अलग नज़र आए।
वहीँ, इस केस की जांच करने वाली लिब्रहान कमीशन के अध्यक्ष जस्टिस मनमोहन सिंह लिब्रहान का कहना है कि बाबरी मस्जिद को गिराना एक साजिश थी और मुझे अब भी इस पर भरोसा है। लिब्रहान ने इस बारे में ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत की।
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जस्टिस मनमोहन सिंह लिब्रहान ने कहा, “मेरे सामने इस मामले में जो भी सबूत रखे गए, उससे यह साफ था कि बाबरी मस्जिद को सुनियोजित तरिके से ढहाया गया था। मुझे याद है कि उमा भारती ने इस घटना के लिए जिम्मेदारी भी ली थी। आखिर किसी अनदेखी ताकत ने तो मस्जिद गिराई नहीं, यह काम इंसानों ने ही किया था।”
बताते चले कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को अयोध्या में जुटे कारसेवकों ने गिरा दिया था। जिसके बाद घटना की जांच के लिए लिब्रहान कमीशन का गठन किया गया था। इस आयोग ने 17 साल तक जांच करने के बाद 2009 में अपनी रिपोर्ट दायर की थी।
इस रिपोर्ट में बीजेपी और संघ के बड़े नेताओं पर बाबरी मस्जिद विध्वंस में शामिल होने के आरोप लगे थे। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया था कि बीजेपी नेता लालकृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह समेत कई अन्य हिंदूवादी नेताओं ने पूरी तरह से मस्जिद तोड़ने का समर्थन किया था।
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कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया कि अयोध्या पहुंचने वाले कारसेवक अचानक वहां नहीं गए थे और न ही वो सभी अपनी मर्जी से वहां गए थे। यह सब कुछ पूरी तरह से प्रीप्लांड और सुनियोजित था। निश्चित रूप से इसकी पहले से ही तैयारी कर ली गई थी। इस रिपोर्ट में बीजेपी के नेताओं समेत संघ और विश्व हिंदू परिषद के कई नेताओं, अधिकारियों पर देश में सांप्रदायिक फूट डालने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।
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उन्होंने ये भी बताया कि इस मामले की जांच करते हुए उनको खोज सही और ईमानदार थी, कहीं कोई पक्षपात नहीं हुआ था। उन्होंने ये भी कहा कि हमारे पास एक ऐसी भी रिपोर्ट है जिसमें यह भी बताया गया है कि कब क्या और कैसे हुआ।
हालांकि जस्टिस लिब्रहान ने कोर्ट के आए फैसले को लेकर कुछ बोलने से मना कर दिया लेकिन उन्होंने कहा कि सभी ने अपना काम ईमानदारी से किया और कोर्ट को अलग फैसला सुनाने का अधिकार है। कोर्ट के फैसले और उसकी ताकत पर सवाल नहीं उठाए जा सकते।
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