Sunday, Dec 10, 2023
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गोविंदाचार्य बोले- राजनीति में अब हिंदुत्व का वर्चस्व, लेकिन BJP का भविष्य...

  • Updated on 8/4/2020


नई दिल्ली/एजेंसी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व विचारक के. एन. गोविंदाचार्य ने मंगलवार को कहा कि भारतीय राजनीति का ‘‘मुख्य रंग अब हिंदुत्व’’ हो गया है और ‘समाजवाद’ तथा ‘धर्मनिरपेक्षता’ राजनीति के केंद्र बिंदु नहीं रह गये हैं। अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर के भूमि पूजन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने से एक दिन पहले गोविंदाचार्य ने इसके महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय राजनीति के ‘‘हिंदुत्व की जड़ों की ओर लौटने’’ का प्रतीक है, जो 2010 के बाद से मजबूत होने से पहले दशकों तक हाशिये पर पड़ा हुआ था। 

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वर्ष 1988-91 में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी के ‘‘विशेष सहायक’’ रहे गोविंदाचार्य 1990 में आडवाणी द्वारा निकाली गई रथयात्रा के एक मुख्य योजनाकार माने जाते हैं। इस रथयात्रा ने राम जन्मभूमि आंदोलन को गति प्रदान की और बाद में भगवा पार्टी भारतीय राजनीति के मुख्य केंद्र में आ गई।      गोविंदाचार्य ने पीटीआई से कहा कि दिग्विजय सिंह और कमलनाथ जैसे कांग्रेस के नेताओं ने (राम) मंदिर निर्माण के समर्थन में बोला है, जो यह संकेत देता है कि विपक्ष के कई नेता इस मुद्दे के लोगों में वैचारिक एवं भावनात्मक महत्व को समझते हैं। 

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कभी भाजपा के कद्दावर महासचिव रहे गोविंदाचार्य ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदुत्व (की विचारधारा) को अपनाया और इसके बदले में लोगों ने उन्हें स्वीकार किया।’’ उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस का सोनिया गांधी और राहुल गांधी के तहत पतन हुआ है और लोगों ने उसे नापसंद कर दिया। उन्होंने कहा कि भाजपा के आगे बढऩे का बहुत हद तक श्रेय विपक्षी पार्टियों को जाता है। गोविंदाचार्य (77) ने कहा कि कांग्रेस को महात्मा गांधी के आदर्शों पर लौटना चाहिए। उन्होंने कहा कि (पूर्व प्रधानमंत्री) इंदिरा गांधी 1977 में अपनी पार्टी को मिली करारी शिकस्त के बाद 1980 में सत्ता में लौटने पर हिंदुत्व भावनाओं के प्रति कहीं अधिक समझ रखती थीं।  

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वर्ष 1991-2000 के बीच भाजपा महासचिव (संगठन) रहे गोविंदाचार्य ने कहा, ‘‘ हिंदुत्व समर्थक या हिंदुत्व की विचारधारा पर चलने वाली कई पार्टियों के बीच भविष्य में सर्वोच्चता के लिए और इसका लाभ हासिल करने को लेकर प्रतस्पर्धा हो सकती है।’’     वह तब से सक्रिय राजनीति से दूर हो गए और राष्ट्रवादी एवं स्वदेशी उद्देश्यों की हिमायती समूहों या संगठनों से संबद्ध हैं। गोविंदाचार्य ने कहा कि समाजवाद और धर्मनिरेपक्षता, 1952-80 और 1980-2010 में राजनीति के केंद्र बिंदु रहें, लेकिन अब इस वर्चस्व को ‘‘हिंदुत्व’’ ने हासिल कर लिया है। 

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कुछ समूहों, खासतौर पर अल्पसंख्यकों द्वारा हिंदुत्व की आलोचना किए जाने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने इस विचाराधारा का बचाव करते हुए कहा कि यह गैर-विरोधात्मक, व्यापक और उपासना के सभी माध्यमों का सम्मान करती है। हालांकि, उन्होंने आगाह किया कि भविष्य में भी भाजपा का ही वर्चस्व रहेगा, ऐसा नहीं माना जा सकता है, क्योंकि यह उसकी विचारधारा और मूल्य आधारित राजनीति के प्रति पार्टी की भावनात्मक प्रतिबद्धता पर निर्भर करेगा। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि विपक्षी पार्टियां राजनीति में बदलाव के प्रति कैसे खुद को ढालती हैं। 

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उन्होंने कहा कि सत्ता का अपना एक अलग नशा होता है और भाजपा के कौशल तथा उसकी प्रतिबद्धता की परीक्षा होगी। उन्होंने कहा कि सिर्फ समय ही बताएगा कि क्या पार्टी (भाजपा) अपने मूल्यों पर अटल है या कांग्रेसीकरण से गुजर रही है। उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि आंदोलन ने अपने भावनात्मक लगाव के कारण लोगों को लामबंद किया। राजनीति के बाहर के कई समूहों एवं संगठनों ने हिंदुत्व आंदोलन को आकार देने में अहम भूमिक निभाई।

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