नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आधिकारिक आवास के पुनर्निर्माण में नियमों के कथित रूप से ‘‘घोर उल्लंघन'' के लिए जारी कारण बताओ नोटिस के खिलाफ लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के छह अधिकारियों को केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) का रुख करने की बृहस्पतिवार को छूट दी। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय और विशेष सचिव (सतर्कता) की उस अपील का निस्तारण कर दिया जिसमें कारण बताओ नोटिस को चुनौती देने वाले पीडब्ल्यूडी के छह अधिकारियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने संबंधी एकल न्यायाधीश की पीठ के आदेश को चुनौती दी गई थी।
उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के उस फैसले पर भरोसा जताया और कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि किसी सेवा विवाद के संबंध में, सबसे पहले प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम की धारा 19 के तहत एक आवेदन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। खंडपीठ ने कहा कि इसलिए एकल न्यायाधीश के समक्ष पीडब्ल्यूडी अधिकारियों की रिट याचिका सुनवाई योग्य बिल्कुल भी नहीं थी और इसे यहीं खारिज कर दिया जाना चाहिए था। उसने कहा कि तथ्य यह है कि संविधान पीठ... इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि अधिकरण कानून के उन क्षेत्रों के संबंध में प्रथमदृष्टया अदालतों की तरह काम करना जारी रखेंगे जिनके लिए उनका गठन किया गया है।
खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के समक्ष लंबित याचिका का निपटारा कर दिया और पीडब्ल्यूडी के छह अधिकारियों को प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम के तहत एक मूल आवेदन दायर करके कैट का रुख करने की छूट दी। उसने कहा, ‘‘यह स्पष्ट किया जाता है कि इस अदालत ने एलपीए में रिट याचिका की विचारणीयता के मुद्दे को छोड़कर, गुण-दोष के आधार पर कुछ भी नहीं देखा है। उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, वर्तमान एलपीए का निस्तारण किया जाता है।'' एक याचिकाकर्ता द्वारा एकल न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ उसी अदालत की एक अलग पीठ के समक्ष दायर अपील को ‘लेटर पेटेंट अपील' (एलपीए) के रूप में जाना जाता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 15 सितंबर को निर्देश दिया था कि मुख्यमंत्री केजरीवाल के आधिकारिक आवास के पुनर्निर्माण में नियमों के कथित रूप से गंभीर उल्लंघन के सिलसिले में सतर्कता निदेशालय द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस को चुनौती देने वाले पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों के खिलाफ 12 अक्टूबर तक कोई सख्त कदम नहीं उठाया जाए। सतर्कता निदेशालय ने अपनी अपील में उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के अंतरिम आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया था। एकल न्यायाधीश ने शहर के अधिकारियों के संयम बरतने में विफल रहने और उनके वकील द्वारा दिए गये हलफनामे के बावजूद उल्लंघनकारी कदम उठाने पर गंभीर आपत्ति जताते हुए अंतरिम आदेश पारित किया था कि अधिकारियों के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाया जायेगा। वरिष्ठ वकील राहुल मेहरा और दिल्ली सरकार के स्थायी वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने एकल न्यायाधीश के समक्ष हलफनामा दिया था।
सतर्कता निदेशालय ने हालांकि अधिवक्ता योगिंदर हांडू और मनंजय मिश्रा के जरिये दायर अपनी अपील में दलील दी कि आश्वासन सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के बिना दिया गया था। सतर्कता निदेशालय ने केजरीवाल के आधिकारिक आवास के पुनर्निर्माण में नियमों के कथित उल्लंघन पर पीडब्ल्यूडी के छह अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। संबंधित मुख्य अभियंताओं और पीडब्ल्यूडी के अन्य अधिकारियों को जारी किये गये नोटिस में उनसे अपने कार्यों की व्याख्या करने को कहा गया था। उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने पीडब्ल्यूडी के छह अधिकारियों की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया था जिसमें 19 जून को उन्हें जारी किये गये कारण बताओ नोटिस को रद्द करने का अनुरोध किया गया था।
वरिष्ठ वकील मोहित माथुर के जरिये दाखिल याचिका में कहा गया कि नोटिस ‘‘दिल्ली के उपराज्यपाल और दिल्ली में सत्तारूढ़ दल के बीच एक राजनीतिक खींचतान का नतीजा थी'' जिसमें याचिकाकर्ताओं को ‘‘बलि का बकरा'' बनाया गया था। पीडब्ल्यूडी अधिकारियों ने अपनी याचिका में कहा कि उन्होंने किसी भी नियम या कानून का उल्लंघन नहीं किया है और मुख्यमंत्री के आधिकारिक बंगले के संबंध में किया गया कार्य नियमों का पूरी तरह से पालन करते हुए किया गया था।
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