Sunday, Jun 04, 2023
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नए संसद भवन में स्थापित होगा ‘राजदंड', जानें  सेंगोल की रोचक जानकारी 

  • Updated on 5/25/2023

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 28 मई को नये संसद भवन में स्थापित किए जाने वाले राजदंड (सेंगोल) का संबंध तमिल इतिहास से है जो लगभग 2,000 साल पुराने संगम काल का है। ब्रिटिश शासन द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरित करने के प्रतीक स्वरूप प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिए गए ऐतिहासिक सेंगोल को नये संसद भवन में स्थापित किया जाएगा।

यह राजदंड (सेंगोल)अभी इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा हुआ है। 1947 में मूल सेंगोल बनाने में शामिल रहे दो लोगों, 96 वर्षीय वुम्मिदी एथिराजुलु और 88 वर्षीय वुम्मिदी सुधाकर के नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल होने की उम्मीद है। तमिल विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एस. राजावेलु ने कहा कि राजाओं के राज्याभिषेक का नेतृत्व करने और सत्ता के हस्तांतरण को पवित्र करने के लिए समयाचार्यों (आध्यात्मिक गुरुओं) के लिए यह एक पारंपरिक चोल प्रथा थी, जिसे शासक को मान्यता देने के तौर पर देखा जाता था।

उन्होंने कहा, ‘तमिल राजाओं के पास यह सेंगोल (राजदंड के लिए तमिल शब्द) था, जो न्याय और सुशासन का प्रतीक है। दो महाकाव्यों - सिलपथिकारम और मणिमेकलई - में सेंगोल के महत्व का उल्लेख किया गया है।' राजावेलु ने कहा कि संगम काल से ही ‘राजदंड' का उपयोग खासा प्रसिद्ध रहा है। उन्होंने कहा कि तमिल काव्य ‘तिरुक्कुरल' में सेंगोल को लेकर एक पूरा अध्याय है।

राजावेलु ने बताया कि प्राचीन शैव मठ थिरुववदुथुराई आदिनम मठ के प्रमुख ने नेहरू को 1947 में सेंगोल भेंट किया था। प्रमुख शैव मठों से जुड़े पी.टी. चोकलिंगम ने कहा, ‘‘यह हमारे राजाजी (सी राजगोपालाचारी, भारत के अंतिम गवर्नर जनरल) थे जिन्होंने नेहरू को आश्वस्त किया कि इस तरह के समारोह की आवश्यकता है क्योंकि भारत की अपनी परंपराएं हैं और संप्रभु सत्ता के हस्तांतरण की अगुवाई एक आध्यात्मिक गुरु द्वारा की जानी चाहिए।'

14 अगस्त, 1947 को सत्ता के हस्तांतरण के समय, तीन लोगों को विशेष रूप से तमिलनाडु से लाया गया था - अधीनम के उप मुख्य पुजारी, नादस्वरम वादक राजरथिनम पिल्लई और ओथुवर (गायक) - जो सेंगोल लेकर आए थे और कार्यवाही का संचालन किया था।

तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के 2021-22 नीति नोट के अनुसार: ‘‘सिंहासन के समय, पारंपरिक गुरु या राजा के उपदेशक नए शासक को औपचारिक राजदंड सौंप देंगे।'' इस परंपरा का पालन करते हुए, जब ओथुवमूर्तियों ने कोलारू पाथिगम-थेवारम से 11वें छंद की अंतिम पंक्ति का गायन पूरा किया, तो थिरुववदुथुरै अदीनम थंबीरन स्वामीगल ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को सोने की परत चढ़ा चांदी का राजदंड सौंप दिया।

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