नई दिल्ली। अनामिका सिंह। राजधानी दिल्ली में कई जगहें हैं जिनके नाम में ही ऐतिहासिकता की झलक महसूस होती है। इन्हीं में से एक नाम है कोटला मुबारकपुर का। कोटला मतलब छोटा किला होता है, तो आखिर ये मुबारक कौन था। जिसने यहां किला बनवाया और इस इलाके का नाम कोटला मुबारकपुर पड़ गया। तो आइए जानते हैं कोटला मुबारकपुर के नाम से जुड़ी दिलचस्प ऐतिहासिक कहानी और इसके महत्व के बारे में।
सैय्यद वंश का शासक था मुबारक शाह मुबारक शाह सैय्यद वंश के बादशाह खिज्र खां का उत्तराधिकारी था। खिज्र खां ने अपनी मृत्युशैय्या पर उसके अगले बादशाह बनने की घोषणा की थी। जिसके बाद वो दिल्ली की गद्दी पर बैठा था। उसने गद्दी पर बैठने के बाद शाह की उपाधि ग्रहण की थी और अपने नाम से खुतबा पढ़ावाने के बाद अपने नाम के सिक्के भी जारी किए थे। उसने अपने नाम पर एक किताब भी लिखवाई थी, जिसे तारीख-ए-मुबारकशाही के नाम से जाना जाता है। इस किताब में उसके शासनकाल की प्रमुख घटनाओं को दर्ज किया गया था। जिसे यहिया बिन अहमद सरहिन्दी ने लिखा था। मुबारक शाह ने दिल्ली की गद्दी पर 1421 से लेकर 1434 ईसवीं तक राज किया था।
विद्रोहों के दमन में बीती जिंदगी सैय्यद वंश के शासनकाल के दौरान दिल्ली की गद्दी हमेशा खतरे में पड़ी रही। खिज्र खां को भी पूरे जीवन भर विद्रोहों का सामना करना पड़ा और उनकी जिंदगी विद्रोहों के दमन और राजस्व वसूली के लिए सैनिक यात्राओं को करते बीतीं थीं। अपने पिता की तरह ही विद्रोहों का दमन मुबारकशाह को भी वसीयत के रूप में मिला था। उसने अपने शासनकाल में भटिंडा व दोआब में हुए विद्रोह को दबाया। तारीख-ए-मुबारकशाही में उसके द्वारा की गई सैनिक यात्राओं व विद्रोह दमन का पूरा लेखा-जोखा मिलता है।
अपने कोटले में ही हुई मुबारकशाह की हत्या जिस मुबारकशाह ने अपने जीवनकाल में कई तरह के विद्रोहों को दबाने में सफलता प्राप्त की थी, वो अपने नाक के नीचे चल रहे षडयंत्र को भांप पाने में असफल रहा। इतिहासकारों का कहना है कि मुबारकशाह की हत्या एक षडयंत्र के तहत खुद उसके वजीर सरवर-उल-मुल्क ने साल 1434 में कर दी थी। जिस समय उसकी हत्या की गई थी, उस समय वो अपने द्वारा बनाए जा रहे यमुना किनारे कोटले यानि छोटे महल जिसे उसने मुबारकाबाद नाम दिया था उसका निरीक्षण कर रहा था।
सैय्यद वंश के सुल्तानों में सर्वोत्तम था मुबारकशाह इतिहासकारों का कहना है कि सैय्यद वंश ने सन् 1414-1451 तक दिल्ली में तुगलक वंश के बाद करीब 37 वर्षों तक शासन किया। मुबारकशाह के पिता खिज्र खां ने सैय्यद वंश की नींव रखी थी, जिसका विस्तार मुबारक शाह ने किया और उसके बाद उसका दत्तक पुत्र मुहम्मद शाह और फिर आलमशाह गद्दी पर बैठा। लेकिन इन चारों बादशाहों में सर्वोत्तम मुबारक शाह के शासनकाल को माना जाता है क्योंकि उसने अपने शासन के दौरान राज्य की सीमाओं को सुरक्षित करने का काम किया था।
कहां है मुबारकाबाद दिल्ली के पॉश इलाके साउथ एक्सटेंशन में मुबारकाबाद शहर बसाया गया था। जहां बाद में बादशाह मुबारक शाह को दफन कर दिया गया। आज इस जगह को कोटला मुबारकपुर के नाम से जाना जाता है। लाल बलुआ पत्थरों से बना यह मकबरा आज कंक्रीट की बड़ी-बड़ी इमारतों के बीच ढूंढना काफी मुश्किल है। लेकिन इसका जिक्र कैरन स्टीफंस की किताब के साथ ही राना सफवी की किताब द फॉरगटन सिटी ऑफ दिल्ली में मिल जाता है।
अनूठी है मकबरे की वास्तुकला मुबारकशाह के मकबरे में अब केवल दक्षिणी फज्ञटक और पश्चिम की ओर मस्जिद रह गई है। इसके अष्टभुजाकार कक्ष का मुख्य प्रवेश द्वार दक्षिण की ओर से है तथा पश्चिम की ओर एक मेहराब है। इसका विशाल गुंबद कंगूरों से युक्त सोलह किनारों वाले परकोटे युक्त ढोल के ऊपर से उठता हुआ है। प्रत्येक कोने पर एक-एक छोटज्ञ बुर्ज है और एक लालटेननुमा छोटा बुर्ज इसके ऊपर है। प्रत्येक दिशा में छत के ऊपर एक छतरी है। अंदरूनी छत पर रंगीन पट्टे बनाए गए हैं। गुंबद की कमानी पर कुरान संबंधी लेख मिलते हैं।
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