नई दिल्ली। अनामिका सिंह। हर सड़क की अपनी एक कहानी होती है, जब भी आप उस सड़क से गुजरते होंगे तो सोचते होंगे कि आखिर इस सड़क का यह नामकरण क्यों रखा गया और इससे जुड़ी दास्तान क्या है। तो आज दिल्ली की प्रसिद्ध सड़कों में से एक पंचकुईयां रोड़ की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं। कि आखिर कौन से हैं वो पांच कुएं जिन पर रखा गया पंचकुईयां रोड़ का नाम और इन कुओं को बनाने के पीछे क्या था प्रमुख कारण। विध्नहर्ता ने टाला मूर्तिकारों का विध्न, एडवांस बुकिंग से मूर्तिकारों के चेहरे खिले साल 1939 के लगभग जुगलकिशोर बिड़ला ने बनवाए थे पांचों कुएं मालूम हो कि दिल्ली कई पहाडिय़ों जैसे अरावली व रायसीना पर बसा हुआ है और यहां कई नगरों के अवशेष मिलते हैं। नगर बदलने की वजह प्रमुख रूप से पानी रहा। इसी बात को ध्यान में रखते हुए जब दिल्ली का आठवां शहर यानि नई दिल्ली बसाया जा रहा था तो जुगलकिशोर बिड़ला द्वारा श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण साल 1939 में करवाया जा रहा था। इस दौरान अगल-बगल के लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या पेयजल की थी। परोपकारी रहे जुगलकिशोर बिड़ला ने निसंतान होने की वजह से अपना सारा पैसा धर्माथ कार्यों के लिए खर्च कर दिया था। इसी क्रम में उन्होंने आज के पंचकुईया रोड़ पर आम जनता के जल की समस्या को दूर करने के लिए पांच कुओं का निर्माण करवाया था। यह कुएं आशाराम की बागिची, लुटिया की बागिची, नाथों की बागिची, मुनी का अखाड़ा व गढ़वाल भवन के पास वर्कशॉप में बने हुए हैं। इतिहासकार बताते हैं कि ये पांचों कुएं उस समय इंटरलिंक करवाए गए थे ताकि यदि एक कुएं का पानी सूख भी जाए तो दूसरे कुएं से पानी वहां मुहैया हो पाएगा। यही नहीं आज भी इन कुओं में 8-10 फुट पर पानी साफ देखा जा सकता है। ज़ू कीपर्स : बेजुबान वन्यजीवों की जो समझते हैं बात नाथों की बागिची से सुरंग निकलती थी खारी बावली में सामाजिक कार्यकर्ता प्रीतम धारीवाल ने बताया कि नाथों के अखाड़े में स्थित कुओं का इतिहास अपने आपमें काफी रोचक है। यहां एक अखाड़ा है जहां आज भी पहलवान कुश्ती सीखते हैं। पहले ये कुआं एक सुरंग के माध्यम से खारी बावली में खुलता था। यहां हर साल एक प्रतियोगिता आयोजित होती थी कि जिसमें पहलवान इस कुएं में कूदते थे। उनके कूदने का समय व तैर कर खारी बावली तक पहुंचने के समय को नोट किया जाता था और जो प्रथम आता था उसे जुगलकिशोर बिड़ला द्वारा पुरस्कृत किया जाता था। पृथक मिथिला राज्य की मांग को लेकर युवाओं ने किया जंतर-मंतर पर प्रदर्शन
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लगवाया था पंप धारीवाल बताते हैं कि साल 1962 के दौरान जब चीन से भारत का युद्ध हो रहा था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गढ़वाल भवन के पास बने वर्कशॉप के कुएं में पानी खींचने वाला पंप लगाया गया था। इस पंप लगाने के पीछे मकसद सिर्फ यह था कि हर समय पानी से भरे रहने वाले इन कुओं का पानी बारिश के मौसम में ओवर फ्लो होकर बाढ़ की स्थिति ना बना दे। पंप से पानी को नालों के द्वारा यमुना नदी में डाला जाता था। आज भी प्रधानमंत्री द्वारा लगवाए गए पंप के अवशेष यहां पर रखे हुए हैं। शॉपिंग फेस्टिवल पर सरोजिनी नगर मार्केट सजाएगा दिल्ली पर्यटन विभाग किन कॉलोनियों के लोग करते थे पानी का प्रयोग शाही या डीआईजेड दिल्ली के निवासी इन कुंओं के पानी का प्रयोग किया करते थे। उस दौरान पंचकुईयां रोड़ व मंदिर मार्ग सहित गोल मार्केट, बिड़लान, तालकटोरा, बर्फ वाला गांव (जो पहले जनपथ पर था) सहित कई इलाकों के लोग इन कुओं से पानी लेकर जाया करते थे। इसके अलावा बगल में ही बने शमशान घाट में भी एक कुएं का निर्माण जुगलकिशोर बिड़ला द्वारा करवाया गया था। इलाके के लोगों का कहना है कि उन्होंने आज तक कभी भी इन कुओं को सूखते हुए नहीं देखा है।
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