नई दिल्ली/ एसवाई कुरैशी। बीते वीरवार जब मुस्लिम समुदाय के पांच सदस्य आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मिले तो मीडिया ने इसके अपने- अपने मतलब निकाले। इनमें दिल्ली के पूर्व एलजी नजीब जंग, पत्रकार शाहिद सिद्दकी, होटलीयर सईद शेरवानी तथा लेफ्टिनेंट जनरल जमीर उद्दीन शाह तथा यह लेखक शामिल थे।
इस मुलाकात में आरएसएस प्रमुख ने अपनी सादगी और समयबद्धता से हमें चौंकाया। वह सुबह के ठीक 10 बजे मौजूद थे। उन्होंने करीब एक घंटे तक हमें बिना टोके पूरे धैर्य से सुना। उनके साथ उनके एकमात्र सहयोगी कृष्ण गोपाल मौजूद थे।
मुलाकात का कारण - मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा की भावना के प्रति साझी चिंता और वार्ता की प्रक्रिया में विश्वास। - निर्दोष लोगों की लिंचिंग की घटनाओं के बाद मुस्लिम समुदाय की चिंता से अवगत कराना। - गुस्साये हिंदुत्ववादियों के उन आह्वानों पर बात करना जिनमें मुस्लिम समुदाय को हर क्षेत्र में हासिये पर धकेलने की बात कही जा रही है।
भागवत ने हिंदुत्व को तीन बातों से स्पष्ट किया - हिंदुत्व एक समावेशी अवधारणा है, जिसमें सबके लिए समान स्थान है। - देश तभी आगे बढ़ सकता है, जब सभी समुदाय एकजुट रहें। - भारतीय संविधान पुनीत है और पूरे देश को इसका पालन करना चाहिए।
दो संवेदनशील पहलू
इस मुलाकात में मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू दो बातों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं।
गोहत्याः
देश के अधिकांश हिस्सों में गोहत्या प्रतिबंधित हैं। हिंदू इस पर प्रतिक्रिया देते हैं और मुस्लिम समुदाय को इसे अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। इसे आसानी से रोका जा सकता है और इससे समुदाय में सुरक्षा की भावना बढ़ेगी।
काफिरः
अगर हिंदुओं को काफिर कहा जाता है तो वे इसके प्रति संवेदनशील हैं। इस अरबी शब्द का अर्थ नास्तिक है और इसे अपमानजनक माना जाता है। मुस्लिम इस शब्द को पूरी तरह छोड़ सकते हैं और यह बहुत आसान है। कुरान में भी कहा गया है कि अल्लाह सबका है न कि सिर्फ मुसलमानों का। जैसे आप अपने धर्म में हो वैसे ही मैं मेरे धर्म में हूं।
जिहादी और पाकिस्तानी क्यों तब हम लोगों ने सवाल उठाया कि हर मुस्लमान के लिए तब जिहादी और पाकिस्तानी शब्द का इस्तेमाल क्यों किया जाता है? इस पर भागवत ने आश्वस्त किया कि इसे तत्काल रोका जाएगा। जब इस बातचीत को भविष्य में जारी रखने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने तत्काल चार लोगों के नाम रखे तथा जरूरत पड़ने पर खुद भी उपलब्ध रहने की बात कही।
हमने मुस्लिमों के बारे में स्पष्ट किया मुस्लिम आबादी बढ़ने का जो अंतर वर्षों पहले 1.13 प्रतिशत होता था वह अब घट कर 0.3 प्रतिशत रह गया है। इसका अर्थ है कि मुस्लिम परिवार नियोजन को हिंदुओं से ज्यादा तेजी से अपना रहे हैं। भारत में मुसलमानों के लिए बहुपत्नी प्रथा का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल संभव नहीं है।
जनसंख्या के आंकड़े बताते हैं कि 1000 पुरुषों पर सिर्फ 940 महिलाएं हैं। ऐसे में जब सब एक पत्नी रखें तो भी 60 लोग प्रति हजार कुंवारे रहेंगे। गणितज्ञ दिनेश सिंह और अजय कुमार के आकलन के मुताबिक मुस्लिम आबादी अगले एक हजार साल में भी हिंदुओं से ज्यादा नहीं हो सकती। इस पर भागवत खुलकर हंसे।
नतीजा इस मुलाकात की खबर जैसे ही सार्वजनिक हुई हमारे पास समर्थन में असंख्य संदेश आए कि बातचीत ही आगे बढऩे का एकमात्र रास्ता है।
कुछ ने सवाल भी उठाए मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधित्व का आपको किसने अधिकार दिया है? चिंता भी जताई कि आप सांप्रदायिक ताकतों से मिल गए हो। कुछ ने बाधा डालने की चेतावनी भी दी मगर किसी ने इस पर सवाल नहीं उठाए कि बातचीत ही आगे बढऩे का एक मात्र रास्ता है।
(लेखक देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रह चुके हैं)
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