Sunday, May 28, 2023
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राधाकृष्णन के जन्मदिन पर #TeachersDay मनाने का ये है किस्सा

  • Updated on 9/5/2018

शिक्षा का मतलब सिर्फ जानकारी देना ही नहीं है। जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होगा, तब तक शिक्षा को मिशन का रूप नहीं मिल पाएगा। 

नई दिल्ली/टीम डिजिटल।  यह कहना है देश के पहले उप-राष्ट्रपति और दूसरे राष्‍ट्रपति  डॉ. सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन का, उनके जन्मदिवस यानी 5 सितंबर को देश में शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस दिन देशभर में लोग अपने गुरुओं को याद करते हैं। दुनिया के 100 से भी ज्यादा देशों में 5 अक्टूबर को टीचर्स डे मनाया जाता है। भारत में इसे 5 सितंबर को मनाने के पीछे एक कहानी है। आइए हम आपको बताते उस किस्से के बारे में।

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डॉ. सर्वपल्ली ने शिक्षा के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं, जिसकी वजह से उन्हें यह उपाधि दी गई। डॉ. राधाकृष्णन की याद में ही टीचर्स डे  का आयोजन होता है। वह भारत के पहले उप-राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। उन्हें 1954 में भारत रत्न से नवाजा गया था। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया था।

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राधाकृष्णन के जन्मदिन पर ही क्यों मनाया जाता है टीचर्स डे

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के दूसरे राष्ट्रपति होने के अलावा एक विख्यात शिक्षक थे। उनके छात्र उनसे बहुत स्नेह करते थे। एक बार उनके कुछ शिष्यों ने उनका जन्मदिन मनाने का सोचा। इस बारे में जब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन से उनके छात्र अनुमति लेने गए तो उन्होंने कहा कि मेरा जन्मदिन अलग से मनाए जाने की बजाय अगर शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाएगा तो मुझे गर्व महसूस होगा, जिसके बाद से पूरे देश में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाने लगा। इसे पहली बार 5 सितंबर 1962 को मनाया गया था। इस अवसर पर शिक्षकों को पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया जाता है। 

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के ये विचार हैं जीवन के लिए प्रेरणादायक...

  • किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है।
  • अच्‍छा टीचर वो है, जो ताउम्र सीखता रहता है और अपने छात्रों से सीखने में भी कोई परहेज नहीं दिखाता।
  •  शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें।
  • कोई भी आजादी तब तक सच्ची नहीं होती,जब तक उसे विचार की आजादी प्राप्त न हो। किसी भी धार्मिक विश्वास या राजनीतिक सिद्धांत को सत्य की खोज में बाधा नहीं देनी चाहिए।

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