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कुंडली से जाने अपने जीवन की सफलताओं का राज, ऐसे बन सकती है मार्गदर्शक

  • Updated on 12/30/2020

नई दिल्ली/ ज्योतिषाचार्य रेखा कल्पदेव। सफलता का स्वाद कौन नहीं चखना चाहता? हर व्यक्ति सफल होने की कामना रखता है। इसके लिए प्रयास भी करता है परन्तु सभी यह नहीं जानते कि सफलता किस प्रकार हासिल की जा सकती हैं। हम अपने आसपास प्रतिदिन ऐसे सैंकड़ों उदाहरण देखते हैं कि कुछ लोगों को सफलता हासिल होती है और कुछ के हाथ केवल नाकामी लगती है। ऐसे में कैसे जाना जाए कि अमुक व्यक्ति सफल होगा या असफल। सफलता और असफलता को समझने के कुछ मापदंड होने चाहिएं। इस विषय में कोई दो राय नहीं है कि जीवन किसी का भी हो, सभी का संघर्षमय है और सफलता हासिल होने पर सभी गौरवान्वित महसूस करते हैं।

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इसके साथ ही यह भी सर्वविदित है कि सफलता का नाम ही संघर्ष है और निरंतर संघर्ष करने से ही अंतत: जीवन में सफलता अर्जित की जा सकती है। जीवन में सफलता के मंत्र को ज्योतिष के माध्यम से सहजता से जाना जा सकता है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली के योगों और दशाओं का फलादेश करने से पूर्व लग्न भाव, पंचम भाव और नवम भाव अर्थात इस जन्म के साथ-साथ पूर्व जन्म का भी अवलोकन कर लेना चाहिए।

अनुभव में यह पाया गया है कि जो लोग कम प्रतिभावान होते हैं, परन्तु सफलता का मार्ग जानते हैं और वे जीवन में उच्च स्तरीय सफलता हासिल करते हैं। इसके विपरीत जो लोग बहुत अधिक प्रतिभावान होते हैं, कुशल और योग्य होते हैं, ऐसे व्यक्तियों को जीवन भर प्रयासरत रहना पड़ता है। इसका कारण उन्हें सफलता के मार्ग की जानकारी न होना है। जब हम सफलता चाहते हैं तो हमें यह मालूम होना चाहिए कि यह किस प्रकार संभव है। बहुत से ज्योतिषीय कारण हैं जिनकी वजह से एक व्यक्ति लगातार संघर्षों के बाद भी असफल हो जाता है। ऐसा क्यों होता है? इस विषय के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं की गणना नीचे की जा रही है।

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अनुशासन शक्ति
जन्मपत्री में यदि लग्न कमजोर हो तो व्यक्ति चाहकर भी स्वयं को अनुशासित नहीं बना पाएगा। लग्न भाव कमजोर है या नहीं इसके लिए लग्न भाव में स्थित राशि, ग्रह स्थिति और लग्न भाव पर पडऩे वाले अन्य ग्रहों के प्रभाव से जाना जा सकता है। लग्न भाव में स्थित राशि स्थिर प्रकृति की हो, एक मजबूत ग्रह सूर्य या गुरु लग्न भाव में हों या लग्नेश स्वयं लग्न भाव में हो और कोई भी अशुभ ग्रह लग्न को न देखता हो तथा शुभ ग्रहों की दृष्टि लग्न भाव पर होना, लग्न भाव को मजबूत बनाती है।

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वैचारिक दृढ़ता 
एक जन्मजात प्रतिभावान और बुद्धिमान व्यक्ति भी जीवन में असफल हो सकता है, यदि उसके विचारों में स्थिरता की कमी है, यदि उसके जीवन लक्ष्य स्थिर नहीं है। वैचारिक दृढ़ता के लिए भी एक मजबूत लग्न के साथ-साथ तीसरा भाव जिसे पराक्रम भाव भी कहा जाता है। दृढ़ता से ही सफलता के नए मार्गों को खोज सकते हैं।

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नियोजन
एक आधी-अधूरी योजना सकारात्मक परिणाम दे सकती है परन्तु बिना योजना के सफलता के लिए आगे बढऩा, ठीक वैसे ही है जैसे अंधकार में सुई में धागा डालना अर्थात व्यर्थ है। कुंडली का छठा भाव आपकी जीवन योजनाओं की जानकारी देता है। इसलिए छठे भाव से इसका निर्णय किया जाता है। छठे भाव में बुध या राहू योजना निर्माण का गुण देता है।

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आत्मविश्वास की कमी या असफलता का डर
असफलता का डर हमें अपंग कर देता है। कुंडलीय दृष्टिकोण के अनुसार यह कमी व्यक्ति को सफलता प्राप्ति में असमर्थ तो बनाती ही है साथ ही व्यक्ति सफलता हेतु कदम ही नहीं उठा पाता है। लग्न भाव और सूर्य कमजोर हो और छठा भाव मजबूत हो तो व्यक्ति में यह दुर्गुण देखा जा सकता है।

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शीघ्र सफलता की चाह
शीघ्र सफल होने की चाह में गलतियां करते चले जाने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। चर लग्न इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यदि लग्न भाव भी कमजोर हो तो स्थिति अधिक गंभीर हो जाती है। चंद्र का दु:स्थानों में स्थित होना भी इसका एक कारण होता है। एकादश भाव में चंद्र व्यक्ति को उच्चाभिलाषी बनाता है। एकादश भाव इच्छापूर्ति का भाव है और यहां चंद्र शीघ्र इच्छाओं की पूर्ति चाहता है।

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दूसरों को दोष देने की प्रवृत्ति
गलतियों और समस्याओं का दोष दूसरों को देने से बचना चाहिए। इसकी जगह अपनी गलतियों व दोषों का विश्लेषण करना चाहिए। एकादश भाव व भावेश का कमजोर होना दूसरों को दोष देने का स्वभाव देता है। यदि लग्न भाव और लग्नेश दोनों कमजोर हों, राहू या पीड़ित बुध के प्रभाव में हो तो व्यक्ति बहुत अधिक बहस करने का स्वभाव रखता है। अपने को ही अधिक समझदार मामले की सोच में वह सही सुझावों पर ध्यान देने की जगह अनदेखा करता है।

कुछ लोग कार्य शुरू करते हैं परन्तु उसमें अपना ध्यान लंबे समय तक बनाए नहीं रख पाते हैं। इसे एकाग्रता की कमी कहा जाता है। मेष लग्न के जातकों में यह कमी बहुधा पाई जाती है। ऐसे में सफलता हासिल करना कठिन हो जाता है।

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सबसे अलग रहकर कार्य करने का स्वभाव
दूसरों के साथ मिलकर कार्य न करना, लोगों से मिलने-जुलने का गुण न होना या सहायता न करने का गुण व्यक्ति को अलग-थलग कर देता है। किसी के साथ भी न जुडऩे की आदत का विचार एकादश भाव और इसके स्वामी से किया जाता है। एकादश भाव कमजोर हो, इसका स्वामी अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो व्यक्ति अलग-थलग रहना पसंद करता है यह सफलता में देरी का कारण बनता है।

अपने सामथ्र्य से बड़े कार्यों में यदि असफलता हासिल हो भी जाए तो उसे विनम्र होकर स्वीकरा करना चाहिए। लग्न भाव कमजोर हो तो व्यक्ति में विनम्रता की कमी रहती है। जन्मपत्री में स्थित कमियों को ज्योतिषीय उपायों के द्वारा सुधार किया जा सकता है। लग्न भाव को बल देने के लिए लग्नेश का रत्न धारण करना, लग्न भाव को तो बली करता ही है साथ ही लग्नेश भी मजबूत होता है। इसी प्रकार अन्य भावों को भी उपायों से बली कर सफलता हासिल की जा सकती है।

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