नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि उसे भरोसा नहीं है और वह नहीं चाहता कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नियुक्त एक सदस्यीय न्यायिक आयोग लखीमपुर खीरी हिंसा मामले की जांच जारी रखे। लखीमपुर में तीन अक्टूबर को हुई घटना में चार किसानों सहित आठ लोगों की मौत हो गयी थी। राज्य सरकार ने लखीमपुर खीरी जिले में हुयी हिंसा की जांच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव को नामित किया था।
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प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए हुई सुनवाई में राज्य सरकार को सुझाव दिया कि इस जांच की निगरानी किसी 'अन्य उच्च न्यायालय' के पूर्व न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिए ताकि 'स्वतंत्रता और निष्पक्षता' को बढ़ावा दिया जा सके। पीठ ने कहा, 'हम, किसी भी तरह से आश्वस्त नहीं हैं...।’’
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पीठ ने दो प्राथमिकी का उल्लेख किया। उनमें से एक किसानों को कुचलने से संबंधित है जबकि दूसरी प्राथमिकी भीड़ द्वारा बाद में भाजपा कार्यकर्ताओं की पीट-पीट कर हत्या करने से संबंधित है। पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि पहले मामले में आरोपियों के बचाव के लिए सबूत प्राप्त किए जा रहे थे। पीठ ने कहा, ‘‘ एक और बात, हमारे मन में यह सुनिश्चित करना है कि प्राथमिकी संख्या 219 (किसानों को कुचलने का) में साक्ष्य स्वतंत्र रूप से दर्ज किए जाएं और प्राथमिकी संख्या 220 (पीट-पीट कर हत्या) में भी साक्ष्य स्वतंत्र रूप से दर्ज किए जाएं तथा गया दोनों मामलों के सबूतों में घालमेल नहीं हो।’’
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न्यायालय ने कहा, जस्टिस हम दैनिक आधार पर जांच की निगरानी के लिए एक भिन्न उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त करने के पक्ष में हैं और फिर देखते हैं कि अलग-अलग आरोप पत्र कैसे तैयार किए जाते हैं।' सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के दो पूर्व न्यायाधीशों- जस्टिस रंजीत सिंह और जस्टिस राकेश कुमार जैन के नामों का सुझाव दिया।
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उन्होंने कहा कि दोनों आपराधिक कानून के क्षेत्र में अनुभवी हैं और मामलों में आरोपपत्र दाखिल होने तक एसआईटी की जांच की निगरानी करेंगे। राज्य सरकार को इस संबंध में 12 नवंबर तक जवाब देना है। पुलिस इस मामले में अब तक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा समेत 13 आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है।
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